यूपी में अधिकारियों को परेशान करने का यह पहला मामला नहीं है. दुर्गा शक्ति नागपाल के अलावा प्रदेश में और भी कई नौकरशाह और पुलिस अधिकारी हैं, जिन्हें नेताओं की तुनकमिजाजी का खामियाजा भुगतना पड़ा.
मध्यम दर्जे के अधिकारियों जैसे इंस्पेक्टर, एसडीएम और शहर दंडाधिकारियों आदि को पिंग पॉन्ग की बॉल की तरह एक पद से उठाकर दूसरे पद पर डाला जाता रहा है.
अखिलेश यादव सरकार की ओर से जारी तबादला आदेश पर नजर डालें तो पता चलता है कि पिछले 18 महीनों में 2000 सीनियर पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के तबादले हुए हैं. युवा पुलिस अधिकारी शलभ माथुर जैसे ने 6 महीने में 4 तबादले देख लिए हैं. कई विभागों में अधिकारियों को बिना वजह बताए सस्पेंड कर दिया गया है.
एक नाराज वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने आईएएनएस को बताया, 'जब कोई नई सरकार आती है, हममें से हर कोई जानता है कि शीर्ष पद के लिए कौन खास पसंद होगा और किसी और पार्टी के सत्ता में आने पर किसे ऊंचा ओहदा मिलेगा.'
मंत्रीजी के दामाद जी पर नहीं गिरी गाज
उन्होंने लखनऊ के जिला दंडाधिकारी अनुराग यादव के मामले का उदाहरण दिया. राज्य मुख्यालय में कई सांप्रदायिक दंगे होने के बाद भी उन्हें किसी संकट का सामना नहीं करना पड़ा. क्योंकि वह समाजवादी पार्टी के एक कद्दावर नेता और मंत्री के दामाद हैं. नाराज आईएएस ने बताया, 'सरकार की इस चेतावनी के बावजूद कि दंगा होने पर जिला दंडाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक निलंबित किए जाएंगे, वह खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं.'
सामाजिक कार्यकर्ता नूतन ठाकुर ने कहा 'सरकार के दोहरे मानदंड हैं.' पिछले तीन महीनों के दौरान सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव और उनके मंत्रियों ने अधिकारियों को सीमा में रहने, पार्टी कार्यकर्ताओं की सुनने या नतीजे भुगतने की धमकी दी है.
सूचना विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पद का मापदंड प्रदर्शन नहीं 'राजभक्ति' है. उन्होंने कहा कि सेवा नियमों की धज्जियां उड़ाई जाती हैं और पूर्वाग्रह के आधार पर प्रमोशन दिए जाते हैं.