वन रैंक, वन पेंशन की हाई कोर्ट के जजों की काफी समय से लंबित मांग पूरी होने जा रही है. सरकार की इस विसंगति को दूर करने के लिए एक विधेयक लाने की योजना है.
सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही सुनाया था फैसला
मौजूदा कानून के अनुसार बार से चुने जाने वाले जजों को राज्य न्यायिक सेवाओं से पदोन्नत होने वाले जजों की तुलना में कम पेंशन मिलती है. हाई कोर्ट जज (वेतन और सेवा शर्त) अधिनियम, 1954 में संशोधन का प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट के इस तरह की अनियमितता को दूर करने का फैसला सुनाने के एक साल से अधिक समय बाद आ रहा है. विधि मंत्रालय की 21 जुलाई से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में इस विधेयक को लाने की योजना है.
बार के अनुभव को समान माना जाए
शीर्ष अदालत के फैसले के अनुसार अगर न्यायिक अधिकारी की सेवा को पेंशन निर्धारित करने के लिए गिना जाता है तो इस बात का कोई वैध कारण नहीं है कि क्यों इस उद्देश्य के लिए बार के अनुभव को समान नहीं माना जाए. कोर्ट ने कहा, ‘ हम याचिकाकर्ताओं के दावे को स्वीकार करते हैं और इस बात की घोषणा करते हैं कि पेंशन लाभों के लिए अधिवक्ता के तौर पर 10 साल के वकालत के अनुभव को बार से न्यायाधीश बनाने के लिए क्वालिफाइंग सेवा बनाया जाए.’
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को किया जा रहा लागू
तत्कालीन चीफ जस्टीस पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की पीठ ने 31 मार्च 2014 को अपना फैसला सुनाया था, जिसमें यह भी कहा गया था कि वन रैंक, वन पेंशन संवैधानिक पदों के मामले में मानदंड होना चाहिए. सरकार के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, ‘ संशोधन विधेयक सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आधारित है. हम सिर्फ फैसले को लागू कर रहे हैं.’
इनपुट- भाषा