Meghalaya: Operation continues to rescue the miners who have been trapped in a mine at Ksan near Lyteiñ River in East Jaintia Hills, one body has been recovered. The miners are trapped since 13th December. #meghalayaminers pic.twitter.com/trqWsHmzwc
— ANI (@ANI) January 17, 2019
बता दें कि जिले के लमथारी में 370 फुट गहरी अवैध सान खदान में पास की नदी से पानी चले जाने के बाद से 13 दिसंबर से 15 खदान मजदूर फंसे हुए हैं. खदान में पास की लितेन नदी का पानी भरने से खदान में काम कर रहे मजदूर अंदर ही फंस गए.
इस रेस्क्यू ऑपरेशन में भारतीय वायुसेना (Indian Air Force), भारतीय नौसेना (Indian Navy) के गोताखोर और नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स (NDRF) की टीम काम कर रही हैं. ओडिशा फायर सेफ्टी टीम के अलावा थाइलैंड की फुटबॉल टीम के रेस्क्यू के लिए पंप और कुछ जरूरी साजो-सामान मुहैया कराने वाली प्राइवेट कंपनी किर्लोस्कर की टीम मौके पर है.
दावा किया जाता है कि जयंतिया पहाड़ियों के आसपास करीब 70 हजार बच्चे रैट माइनिंग का काम करते हैं. राज्य में कोयला खनन की शुरुआत 19वीं सदी के मध्य में हो गई थी, लेकिन साल 1970 में कोयला खनन को सरकार ने अपने हाथों ले लिया था.
तब मेघालय में कोयला खदानों के निजी दावेदारों को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था, लेकिन सरकारी निगरानी में लापरवाही के चलते रैट माइनिंग का अवैध काम चलता रहा है. इस गोरखधंधे को रोकने के लिए साल 2014 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने मेघालय में रैट होल माइनिंग पर बैन लगाया था, लेकिन ये बैन भी महज दिखावा साबित हुआ. मेघालय में रैट होल माइनिंग आज भी धड़ल्ले से की जा रही है.
सुप्रीम कोर्ट ने मेघालय सरकार से पिछले हफ्ते कहा था कि 13 दिसंबर से अवैध कोयला खदान में फंसे 15 मजदूरों को निकालने के लिए अब तक उठाए गए कदम संतोषजनक नहीं है. उन्हें बचाने के लिए 'शीघ्र, तत्काल और प्रभावी' अभियान चलाने की जरूरत है क्योंकि यह जिंदगी और मौत का सवाल है.
अदालत ने यह भी कहा कि लगभग तीन हफ्ते से खदान फंसे लोगों के लिए 'हर मिनट कीमती' है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो जिंदा हैं या मर गए हैं, उन्हें हर हाल में बाहर निकाला जाना चाहिए.
साथ ही बेंच ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से शुक्रवार तक सरकार के प्लान से अदालत को अवगत कराने का आदेश दिया था. बेंच ने कहा, 'वहां फंसे लोगों के लिए, प्रत्येक मिनट की कीमत है. तत्काल कदम उठाने की जरूरत है.'
मौके पर पहुंचे माइनिंग एक्सपर्ट और अवार्ड विनर जसवंत सिंह गिल ने प्रदेश सरकार और बचाव एजेंसी के बीच तालमेल की कमी होने पर दुख जताया था. उनके मुताबिक, प्रदेश सरकार और केंद्रीय एजेंसियों के बीच तालमेल की कमी के कारण रेस्क्यू पर असर पड़ा है.
फंसे हुए खनिकों को निकालने में नाकामयाबी के चलते मेघालय सरकार के खिलाफ प्रदर्शन भी किए गए. कांग्रेस की महिला कार्यकर्ताओं द्वारा शिलांग स्थित पार्टी के प्रदेश मुख्यालय में कोनराड संगमा की अगुवाई वाली सरकार के खिलाफ सांकेतिक प्रदर्शन कर फंसे खनिकों के बचाव कार्य में ढीला रवैया अपनाने का आरोप लगाए जा चुके हैं.