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बंगाल में SIR का विरोध करके ममता बनर्जी ने क्या बड़ी गलती कर दी है?

ममता बनर्जी बीच में एसआईआर को लेकर थोड़ी नरम हो गईं थीं. पर जिस तरह पिछले कुछ दिनों से एसआईआर को फिर से टार्गेट करना शुरू किया है, उससे लगता है कि अगले विधानसभा चुनावों में यह सबसे बड़ा मुद्दा बनने वाला है. पर क्या इससे टीएमसी को फायदा होगा? या ये राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा की तरह मिस-फायर होगा?

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 बंगाल में एसआईआर का मुद्दा जोर पकड़ रहा है.
बंगाल में एसआईआर का मुद्दा जोर पकड़ रहा है.

पश्चिम बंगाल की राजनीति में घुसपैठियों का मुद्दा कोई नया नहीं है. चुनाव आयोग के स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) को जो लोग इसे सिर्फ प्रशासनिक प्रक्रिया समझ रहे हैं वे भूल कर रहे हैं. बंगाल में वोटर लिस्ट का मुद्दा हमेशा से ही सत्ता की कुंजी रहा है. 

टीएमसी नेताओं का कहना है कि SIR अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को हटाने का एक बहाना है जिसके आधार पर चुनाव आयोग उनके वोट बैंक को सीधा निशाना बना रहा है. यही कारण है कि ममता बनर्जी लगातार SIR का विरोध कर रही हैं, वो इसे वोटबंदी और बीजेपी की साजिश बता रही हैं. साथ ही में प्रदेश की जनता से वादा कर रही हैं कि राज्य से किसी को भी बाहर नहीं जाने दिया जाएगा. 

पर सवाल यह है कि जिस तरह लगातार प्रदेश में एसआईआर मुद्दा बन रहा है उससे फायदा किसका है? अब यह तय है कि इस बार के विधानसभा चुनावों में यह बहुत बड़ा मुद्दा बनने वाला है. बिहार में राहुल गांधी ने एसआईआर को मुद्दा बनाने की कोशिश की थी पर तेजस्वी यादव ने इस मुद्दे को कभी फोकस में नहीं रखा. पर बंगाल की परिस्थितियां बिहार से अलग हैं. बंगाल में 7 करोड़ से अधिक वोटर हैं, और यदि 5-10% नाम हटते हैं तो TMC के मुस्लिम वोट बैंक पर गहरा असर पड़ना तय है. 

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1-पिछले चुनावों में टीएमसी और बीजेपी का वोट पर्सेंटेज 

बंगाल में जिस तरह लगातार बीजेपी मजबूत हो रही है उससे तो यही लगता है कि इस बार अगर कुछ परसेंट वोट में इजाफा कर लिया तो टीएमसी की सरकार का जाना तय हो सकता है. 2021 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने खेला होबे का नारा देकर बीजेपी को 77 सीटों  ( 38 परसेंट वोट) पर रोक दिया था, जबकि टीएमसी 48 परसेंट वोटों के साथ 215 सीटें जीतने में सफल साबित हुई. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 12 सीटें जीतकर और वोट शेयर 38.7% तक पहुंचाकर साफ संकेत दे दिया था कि हिंदू मतदाताओं में असंतोष बढ़ रहा है. अब, SIR के चलते अगर अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को निशाना बनाया जाता है तो यह तय है कि TMC के वोट बैंक को नुकसान होगा.

दूसरे अगर यह मुद्दा 2026 के विधानसभा चुनावों का प्रमुख मुद्दा बन गया, तो TMC को कमजोर होने से कोई रोक नहीं पाएगा. SIR का दूसरा चरण 4 नवंबर 2025 से शुरू हो चुका है, जिसमें BLO (बूथ लेवल ऑफिसर) घर-घर जाकर वोटर लिस्ट सत्यापित कर रहे हैं. बंगाल में 7 करोड़ से अधिक वोटर हैं, और यदि 5-10% नाम हटते हैं (जैसा बिहार में हुआ), तो TMC के मुस्लिम वोट बैंक पर गहरा असर पड़ना तय है.

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2- SIR का ऐतिहासिक संदर्भ 

बंगाल में वोटर लिस्ट हमेशा से विवादास्पद रही है. पश्चिम बंगाल में वोटर लिस्ट की समस्या 1970 के दशक से चली आ रही है, जब बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के बाद लाखों शरणार्थी अवैध रूप से राज्य में आकर बस गए. CPM सरकार (1977-2011) ने इन्हें वोट बैंक बनाया.  2002 के आखिर में SIR के तहत 28 लाख नाम हटे थे. बीजेपी नेताओं का कहना है कि तब ममता ने इसका स्वागत किया था. जाहिर है कि ममता बनर्जी ने धीरे-धीरे सीपीएम के वोटर्स पर कब्जा कर लिया. जो लोग पहले सीपीएम के लिए काम करते थे अब वो ममता बनर्जी के लिए काम करने लगे हैं. 

जाहिर है कि अब बीजेपी चाहती है एसआईआर के तहत अवैध वोटर्स के नाम हटाए जाएं जबकि ममता कतई नहीं चाहती हैं कि ऐसा हो. एसआईआर अब बीजेपी के लिए बंगाल में हथियार है. पर जिस तरह 2002 में ममता को अवैध वोटर्स को हटाने के समर्थन के नाम पर सहानुभूति मिली थी वो इस बार बीजेपी के साथ भी हो सकता है. क्योंकि यह मुद्दा इतना संवेदनशील है कि कोई भी नागरिक इससे समझौता नहीं करना चाहता है.

3- SIR बंगाल में बीजेपी का हथियार बन गया है

ECI ने SIR को 1950 के प्रतिनिधित्व कानून के तहत चलाया है, ताकि डुप्लिकेट, मृत और अवैध नाम हटें. बिहार के पहले चरण में 8 करोड़ वोटरों की जांच हुई, और कई अवैध नाम पकड़े गए. बंगाल में, सीमावर्ती जिलों (मुर्शिदाबाद, मालदा, उत्तर दिनाजपुर) में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा पुराना है.जिस तरह SIR से हजारों अवैध प्रवासी हाकिमपुर बॉर्डर पर भागते दिख रहे हैं वह दिखाता है कि बंगाल में बड़े पैमाने पर अवैध बांग्लादेशी घुसे हुए हैं. 

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 BJP इसे अवैध घुसपैठ हटाओ का नैरेटिव बना रही है, जबकि TMC इसे मुस्लिम वोटरों को निशाना बता रही है. यह टीएमसी के लिए एक तरह से सही है तो दूसरी ओर पार्टी को बहुत बड़ा नुकसान भी होने वाला है.

ममता का विरोध 20 नवंबर 2025 को चरम पर पहुंचा, जब उन्होंने CEC को पत्र लिखकर SIR रोकने की मांग की, BLO की मौतों का हवाला देकर. लेकिन BJP नेता सुवेंदु अधिकारी ने इसे ECI को कमजोर करने की साजिश बताया. यह मुद्दा 2026 चुनाव को प्रभावित करेगा, क्योंकि वोटर लिस्ट 7 फरवरी 2026 को फाइनल होगी.

4-डेमोग्रेफी इफेक्ट, मुस्लिम वोट डिलीट हुए तो नुकसान तय

यदि SIR से 20-30 लाख नाम हटे, तो TMC के 85-90% मुस्लिम वोट प्रभावित होंगे. 2011 जनगणना में बंगाल में मुस्लिम 27%, लेकिन अनुमानित 31-33% अब. मुस्लिम-बहुल जिलों (मुर्शिदाबाद 70%, मालदा 55%) में TMC को 90% वोट मिलते हैं. SIR इन क्षेत्रों में अवैध नाम हटाएगा, जो TMC के लिए घातक है.मटुआ समुदाय (बांग्लादेशी हिंदू शरणार्थी) CAA के चलते BJP की ओर खिसक चुका है. क्योंकि ममता बनर्जी बार-बार कहती हैं कि वो राज्य में सीएए लागू नहीं होने देंगी. जाहिर है कि SIR मटुआ वोटरों को वैध बनाएगा, लेकिन अवैध मुस्लिम नाम हटाने से TMC को नुकसान होगा.

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अगर ऐसा होता है तो सीमावर्ती जिलों में TMC को कम से कम 100 सीटों पर इस बार काफी मुश्किल आने वाली है. BJP की रणनीति भी यही है कि SIR को हथियार बनाकर मिशन 160 प्लस का नारा दिया जाए.  SIR को अवैध घुसपैठ हटाओ कैंपेन से जोड़ा जा रहा है. सुवेंदु अधिकारी जैसे नेता SIR को लोकतंत्र का रक्षक बता रहे हैं. 

5-कोई समुदाय बाहरी लोगों को बर्दाश्त नहीं करता

ममता जिस तरह  से बांग्लादेशियों को रोकने का ऐलान कर रही हैं . ये उल्टा पड़ सकता है . क्योंकि कोई भी समुदाय बाहरी लोगों को बर्दाश्त नहीं करता है. बंगाल के पुराने बाशिंदे चाहे वो खुद मुसलमान क्यों न हों वो नहीं चाहते हैं कि बाहर के लोग आकर उनका हक मारें. यहां तक कि हिंदू भी नहीं चाहते कि बाहर से आकर हिंदू उनके आसपास बसें. पिछले साल राजस्थान में पाकिस्तान से आए हिंदुओं के साथ वहां के लोकल्स ने बहुत खराब बर्ताव किया था. कई ऐसे उदाहररण हैं 

 ममता ने 25 नवंबर 2025 को बोंगांव रैली में कहा कि TMC भाजपा की SIR साजिश को नहीं होने देगी और कोई नागरिक नहीं निकाला जाएगा. लेकिन यह ऐलान उल्टा पड़ सकता है, क्योंकि कोई भी समुदाय बाहरी लोगों को बर्दाश्त नहीं करता, चाहे वे एक ही धर्म या जाति के हों. स्थानीय निवासी संसाधनों, नौकरियों और संस्कृति पर बाहरी दबाव से असुरक्षित महसूस करते हैं.

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बंगाल के पुराने बाशिंदे, चाहे मुस्लिम हों या हिंदू, बाहर से आने वाले लोगों को अपना हक मारते उन्हें भी अच्छा नहीं लगता है. हिंदू भी पाकिस्तान से आए हिंदुओं को पसंद नहीं करते हैं. पिछले साल राजस्थान में पाकिस्तान से आए हिंदू प्रवासियों के साथ लोकल हिंदू समुदाय ने खराब बर्ताव किया था. बाहर से आने वाले हिंदुओं का भी आरोप रहा है कि लोकल्स ने उन्हें संसाधनों का हिस्सा देने से मना किया, जिससे कई वापस पाकिस्तान लौट गए. यह दिखाता है कि एक ही समुदाय के होने पर भी, स्थानीय पहचान बाहरी लोगों को अस्वीकार कर देती है. अपने देश में ही बड़े महानगरों में दूसरे राज्यों से आए मजदूरों के साथ बहुत खराब व्यवहार किया जाता है.

बंगाल में अभी तक हिंदू समुदाय SIR का समर्थन करता दिख रहा है. यदि यह बैकफायर हुआ, तो 2026 चुनावों में TMC की हार तय हो सकती है. 

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