scorecardresearch
 

फैज ने कब और क्यों लिखी वो नज्म, जिसके एंटी हिंदू होने की जांच करेगी IIT

नागरिकता संशोधन एक्ट के खिलाफ जारी प्रदर्शनों में इस कविता का इस्तेमाल हो रहा है, इस बीच आईआईटी कानपुर ने एक जांच कमेटी बनाई है.

Advertisement
X
हम देखेंगे पर विवाद
हम देखेंगे पर विवाद

  • फैज अहमद फैज की नज्म पर विवाद बढ़ा
  • IIT कानपुर करेगी एंटी हिंदू होने की जांच
  • जिया उल हक के विरोध में लिखी थी नज्म

पाकिस्तानी शायर फैज़ अहमद फैज़ की नज्म ‘हम देखेंगे’ पर इन दिनों काफी विवाद हो रहा है. नागरिकता संशोधन एक्ट के खिलाफ जारी प्रदर्शनों में इस कविता का इस्तेमाल हो रहा है, इस बीच आईआईटी कानपुर ने एक जांच कमेटी बनाई है. ये कमेटी इस बात को जांचेगी कि क्या फैज़ की ये नज्म हिंदू विरोधी है या नहीं? ये जांच नज्म की ‘बस नाम रहेगा अल्लाह का...’ की पंक्ति की वजह से हो रही है. जानें कि फैज ने ये कविता क्यों लिखी थी...

फैज अहमद फैज की नज्म, शायरी और गजरों में बगावती सुर दिखते हैं. बंटवारे के बाद जब पाकिस्तान में सियासत उभरने लगी तो शुरुआत से ही आम लोगों पर जुल्म होने लगा, तभी से फैज पाकिस्तान की सत्ता के खिलाफ लिखते रहे. लेकिन साल 1977 में जब पाकिस्तान में तख्तापलट हुआ और सेना प्रमुख जियाउल हक ने सत्ता को अपने कब्जे में ले लिया तब फैज़ की कलम से ‘हम देखेंगे’ निकली.

Advertisement

बता दें कि फैज़ अहमद फैज़ के पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ अच्छे संबंध थे, जब वह विदेश मंत्री बने तो उन्हें लंदन से वापस लाया गया. इसके बाद पाकिस्तान में उन्हें कई बड़ी जिम्मेदारियां दी गईं, जिनका संबंध लिटरेचर से था. उन्हें कल्चरल एडवाइज़र भी बनाया गया. लेकिन जब 1977 में तत्कालीन आर्मी चीफ जिया उल हक ने वहां तख्ता पलट किया तो फैज़ अहमद फैज़ काफी दुखी हुए.

जिया उल हक को तब हिरासत में लिया गया, उसके बाद काफी वक्त तक वह जेल में ही रहे. कुछ समय बाद वो बाहर निकले तो चुनाव की तैयारियां शुरू हुईं, लेकिन जिया उल हक देश में चुनाव की तारीखों को टालते रहे. कुछ साल बाद 1979 में जुल्फीकार अली भुट्टो को फांसी दे दी गई. जब फैज ने 'हम देखेंगे' को कागज पर उतारा.

यहां पढ़ें फैज अहमद फैज की नज्म...

इकबाल बानो ने अमर कर दी फैज की नज्म

फैज अपने जाने के बाद और भी ज्यादा पढ़े गए. उनकी जिस नज्म पर हिंदुस्तान में सवाल हो रहे हैं वह नज्म उनकी मौत के एक साल बाद पाकिस्तान में जुल्मी हुकूमत के खिलाफ बगावत और प्रतिरोध का नारा बन गई थी. लाहौर के स्टेडियम में पाकिस्तान की मशहूर गजल गायिका इकबाल बानो ने 50 हजार लोगों की मौजूदगी में 'हम देखेंगे' नज्म को गाकर इसे अमर कर दिया था. तब से लेकर आज तक इसे हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनों मुल्कों के कई गायक अपनी आवाज दे चुके हैं.

Advertisement
Advertisement