पाकिस्तान ने अपना ग्वादर पोर्ट चीन को सौंप दिया है. यानी चीन ने समंदर में हिंदुस्तान को चौतरफा घेर लिया है. ग्वादर पोर्ट रहेगा तो पाकिस्तान का, लेकिन उस पर कब्जा और काम-धाम चीन का ही होगा.
अब चीन ग्वादर पोर्ट का इस्तेमाल बीजिंग के लिए आर्थिक हब और मिलिट्री पोस्ट में करेगा. इस्लामाबाद में हुए इस समझौते का बाकायदा टीवी पर प्रसारण किया गया. मौके पर मौजूद पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने कहा कि ग्वादर पोर्ट पाकिस्तान और चीन ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए कारोबार का अड्डा बनेगा.
पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह पर चीन के कब्जे की खबर तो पहले से आ रही थी. अब उसपर पाकिस्तान ने ही मुहर लगा दी है. पोर्ट पाकिस्तान का है, कब्जा और काम-धाम चीन का होगा. चीन का कहना है कि उसने खाडी़ देशों से तेल के लिए ग्वादर को अपना ठिकाना बनाया है, मगर ये तो बहाना है. कारोबार की आड़ में चीन अरब सागर से लेकर हिंद महासागर तक अपनी नौसैनिक ताकत को बढ़ाना चाहता है.
कहां है ग्वादर पोर्ट
अरब सागर के किनारे मौजूद ग्वादर पोर्ट को स्ट्रेट ऑफ हॉर्मज के करीब है. स्ट्रेट ऑफ हॉर्मज, ओमान और फारस की खाड़ी के बीच की वो जगह है, जहां से दुनिया के 20 फीसदी तेल का कारोबार होता है. चीन का कहना है कि ग्वादर बंदरगाह से होते हुए हिंद महासागर से होकर वो ऑयल शिपिंग लेन बनाना चाहता है. लेकिन ग्वादर में ही चीन के नौसेना बेस से भारत की चिंता बढ़ गई है.
यूं तो लेह-लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक चीन सरहद पर माहौल बिगाड़ने से बाज नहीं आता. लेकिन पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह पर कब्जा जमाकर चीन समंदर में भी भारत को घेरने की तैयारी कर रहा है. अपनी इस नई चाल के साथ हिंद महासागर में भी कई अहम ठिकानों पर चीन बैठ चुका है.
चीन के कदम सरहद का सम्मान करना नहीं जानते...
याद कीजिए कि कैसे लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक चीन हमारी जमीन हड़पने की फिराक में रहता है. कैसे वो सिक्किम से लेकर दूसरे इलाकों तक सरहद के पास फौजी बेस बना रहा है. और तो और, तिब्बत और शिन्च्यांग में एंटी बैलेस्टिक मिसाइल भी तैनात कर रखा है चीन ने. अब सवाल उठता है कि क्या जरूरत है सीमा पर मिसाइल की. लेकिन अब तो समंदर में भी हिंदुस्तान को घेरने की उसकी तैयारी पूरी हो गयी है.
भारत को समंदर के रास्ते घेरने की तैयारी
भारत को समंदर के रास्ते घेरने के लिए चीन ने मोतियों का हार अब मुकम्मल तैयार कर लिया है. पाकिस्तान का ग्वादर पोर्ट, उसके बाद अरब सागर में काफी नीचे उतरते जाइए तो मालदीव का मराओ एटॉल, फिर श्रीलंका का हंबनटोटा, इसके बाद बांग्लादेश का चटगांव और म्यांमार का सिट्वे पोर्ट. हिंद महासागर में हिंदुस्तान को घेरने की चीन की पूरी तैयारी साफ झलकती है. हिमालय के उस पार से कोई भी आहट खतरे की घंटी बजाती है, लेकिन अब तो वो खतरा समंदर की लहरों पर तैरता नजर आ रहा है.
ग्वादर पोर्ट को बेचने का प्लान
अरब सागर की लहरों को छूता ग्वादर पोर्ट पाकिस्तान की खराब माली हालत को सुधारने में मददगार हो सकता था, लेकिन उधार की जिंदगी जीने की आदत पाकिस्तान को इस हाल में ले आई. उसने उस पोर्ट को चीन के नाम कर दिया, जो आर्थिक और सामरिक लिहाज से पाकिस्तान के लिए सबसे ज्यादा अहमियत रखता है.
ग्वादर पोर्ट को बेचने का प्लान पाकिस्तान ने तब बनाया, जब परवेज मुशर्रफ राष्ट्रपति थे. 2007 में परवेज मुशर्रफ ने ग्वादर बंदरगाह को सिंगापुर अथॉरिटी को दिया. इस बंदरगाह को बनाने में करीब 1331 करोड़ रुपये का खर्च आया, लेकिन इसमें से 75 फीसदी यानी करीब एक हजार करोड़ रुपये लगाकर चीन ने इस पर अपना हक जमा लिया है. इस बंदरगाह का काम इस वक्त रुका हुआ है और आखिरी बार यहां पिछले साल नवंबर में कोई जहाज आया था.
वैसे तो भारत सरकार को भी इसका पता है. लेकिन वो इस मामले को तुल देना नही चाहती. विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद का कहना है कि दूसरे की आवाज में अगर पाकिस्तान अपने ग्वादर पोर्ट को सिंगापुर से लेकर चीन को देता है, तो इस पर ज्यादा प्रतिक्रिया करने की जरूरत नहीं है.
जानकारों की मानें तो चीन की चाहतों की चादर सिर्फ ग्वादर तक ही सिमटी हुई नहीं है. बल्कि हिंदुस्तान का हव्वा खड़ा करके वो पाकिस्तान से उसके दूसरे बंदरगाह ऐंठने के बारे में भी सोच सकता है.