अयोध्या भूमि विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच सुनवाई कर रही है. सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से शुक्रवार को जफरयाब जिलानी ने निर्मोही अखाड़ा की मिल्कियत का दावा खारिज किया. जिलानी ने कहा कि 22-23 दिसंबर की रात 1949 में गुंबबद के नीचे मूर्तियां रखे जाने के बाद मजिस्ट्रेट को विवादित इमारत से मूर्तियां हटाने का आदेश दिया गया था. मजिस्ट्रेट ने इस पर अमल करने से साफ इनकार करते हुए कहा कि अब ये मुमकिन नहीं है, सिर्फ अदालत के हुक्म से ही ये मुमकिन है.
जफरयाब जिलानी ने कहा कि 1949 के बाद विवादित स्थल को प्रशासन ने अपने संरक्षण में रखा. ये गलत फैसलों पर लगातार अमल जारी रखने की वजह से हुआ है. 1949 तक विवादित ढांचे में हर शुक्रवार लगातार नमाज़ अदा की जाती रही. सारी जानमाज उस इमारत में नहीं रखी जाती थीं लेकिन शुक्रवार को लाई जरूर जाती थीं.
उधर सुनवाई के 22वें दिन गुरुवार को मुस्लिम पक्ष की तरफ से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने पक्ष रखा. राजीव धवन ने मुख्य मामले की सुनवाई से पहले अपनी कानूनी टीम के क्लर्क को धमकी की जानकारी कोर्ट को दी और कहा कि ऐसे गैर-अनुकूल माहौल में बहस करना मुश्किल हो गया है.
राजीव धवन ने कोर्ट को बताया कि यूपी में एक मंत्री ने कहा है कि अयोध्या हिंदुओं का है, मंदिर उनका है और सुप्रीम कोर्ट भी उनका है. मैं अवमानना के बाद अवमानना दायर नहीं कर सकता. उन्होंने पहले ही 88 साल के व्यक्ति के खिलाफ अवमानना दायर की है.
इस पर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि कोर्ट के बाहर इस तरह का व्यवहार निंदनीय है. देश में ऐसा नहीं होना चाहिए. हम इस तरह के बयानों की निंदा करते हैं. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि दोनों पक्ष बिना किसी डर के अपनी दलीलें अदालत के समक्ष रखने के लिए स्वतंत्र हैं.