नक्सलियों की ओर से सुझाए गए तीन लोगों में से दो ने उनकी ओर से मध्यस्थता करने से इंकार कर दिया है. वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि जब तक छत्तीसगढ़ के जिला कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन उनके बंधन में हैं वह उनकी ओर से मध्यस्थता नहीं कर सकते, वहीं जनजातीय नेता मनीष कुंजम ने राजनीतिक कारण बताए. नक्सलियों ने सोमवार शाम को उनकी ओर से मध्यस्थता के लिए सुप्रीम कोर्ट के वकील और टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य प्रशांत भूषण, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष बी.डी. शर्मा और अखिल भारतीय आदिवासी महासभा के अध्यक्ष मनीष कुंजम का नाम आगे बढ़ाया था.
कुंजम ने संवाददाताओं से कहा कि उनके फैसले के पीछे राजनीतिक कारण और स्थानीय परिस्थितियां हैं. उन्होंने कहा, 'सूची में दो और नाम हैं. हम व्यक्तिगत रूप से इन लोगों से मध्यस्थता करने का अनुरोध करते हैं और हम उन्हें हर तरह की सहायता देंगे.'
भूषण ने कहा कि वह निर्दोष जनजातियों को रिहा करने और ऑपरेशन ग्रीन हंट समाप्त करने की नक्सलियों की मांग को न्यायसंगत मानते हैं, लेकिन जब तक वे मेनन को बंधक बनाए रखेंगे, वह उनकी ओर से मध्यस्थता नहीं करेंगे. भूषण ने हालांकि कहा, 'वह निर्दोष के जीवन को बंधक बनाकर मध्यस्थता नहीं कर सकते.' उन्होंने कहा, 'उन्हें मेनन को बिना शर्त रिहा करना चाहिए और उसके बाद यदि वे चाहेंगे कि मैं उनकी ओर से सरकार के साथ मध्यस्थता करूं, तो मैं करुंगा.'
सिर्फ शर्मा ने कहा कि वह वार्ता को आगे बढ़ाने के लिए तैयार हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि वह पहले राज्य सरकार की प्रतिक्रिया जानना चाहेंगे. शर्मा ने कहा, 'कल मध्य रात में मुझे पता चला कि मेरा नाम सूची में है. वार्ता को आगे बढ़ाने के लिए किसी को आगे बढ़ना होगा. लेकिन मैं राज्य सरकार की प्रतिक्रिया जानना चाहूंगा.'
बत्तीस वर्षीय मेनन 2006 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी हैं. वह शनिवार को वन क्षेत्र में जनजातियों से बात कर रहे थे, तभी नक्सलियों ने उन्हें बंदूक की नोक पर अगवा कर लिया. नक्सलियों ने उनके दो सुरक्षाकर्मियों को गोली मार दी थी.