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'वारिस पंजाब दे' संगठन क्या है? दीप सिद्धू की मौत के बाद जिसका मुखिया बना था अमृतपाल

फरवरी 2022 में दीप सिद्धू की मौत हो गई इसके बाद सब कुछ बदल गया. दीप सिद्धू की मौत से उसके समर्थक निराश हो गए और खुद को अकेला महसूस करने लगे. इस हालात का अमृतपाल सिंह ने फायदा उठाया. अमृतपाल के खालिस्तानी हमदर्दों के बीच मशहूर होने की एक बड़ी वजह यह थी कि उसने अपने अलगाववादी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए पंजाब को आधार बनाया था.

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अमृतपाल सिंह-फाइल फोटो
अमृतपाल सिंह-फाइल फोटो

खालिस्तानी समर्थक और 'वारिस पंजाब दे' (Waris Punjab De) का मुखिया अमृतपाल सिंह शनिवार को पकड़ा गया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पंजाब पुलिस ने उसे नकौदर के पास से हिरासत में लिया. हालांकि पुलिस अधिकारियों ने हिरासत में लिए जाने के सवाल पर चुप्पी साधी हुई है. इससे पहले अमृतपाल के 6 साथियों को पुलिस ने पकड़ा था. तब अमृतपाल फरार हो गया था, जिसकी तलाश में पुलिस की कई टीम अलग-अलग इलाकों में दबिश दे रही थी. फिलहाल पंजाब के कई जिलों में रविवार रात 12 बजे तक इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं.

इस खबर में हम आपको बता रहे हैं 'वारिस पंजाब दे' संगठन क्या है? और अमृतपाल के उदय की कहानी कि वह कैसे सुर्खियों में आया?

'वारिस पंजाब दे' का क्या है एजेंडा?
'वारिस पंजाब दे' पंजाब के अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ाई का दावा करता है. इस संगठन के जरिए दीप सिद्धू ने पंजाब के हक की लड़ाई को आगे बढ़ाना का मकसद बताया था. और यह भी कहा था कि 'वारिस पंजाब दे' संगठन किसी राजनीतिक एजेंडे पर नहीं चलेगा. लेकिन सियासत से इसके संबंध और खालिस्तान की मांग करने वाले लोग इससे जुड़े रहे. लोकसभा सीट संगरूर पर हुए उपचुनाव में सिमरनजीत सिंह ने जीत दर्ज की थी. सिमरनजीत खालिस्तान के लिए आवाज उठाते रहते हैं.

अचानक कैसे सुर्ख़ियों में आया अमृतपाल सिंह
अमृतपाल सिंह अमृतसर में अपने करीबी सहयोगी लवप्रीत तूफान की गिरफ्तारी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करके सुर्खियां में आया था. 30 वर्षीय अलगाववादी नेता पंजाब के अमृतसर के जल्लूपुर गांव का रहने वाला है. फरवरी 2022 तक अमृतपाल पश्चिमी देशों के जीवन शैली से प्रभावित था और वह पगड़ी भी नहीं पहनता था. वह दुबई में अपने रिश्तेदार के साथ उनका ट्रांसपोर्ट बिजनेस देखता था और अपना अधिकांश समय सोशल मीडिया पर बिताता था.

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फरवरी 2022 में दीप सिद्धू की मौत और अमृतपाल का उदय
फरवरी 2022 में दीप सिद्धू की मौत हो गई इसके बाद सब कुछ बदल सा गया. दीप सिद्धू की मौत से उसके समर्थक निराश हो गए और खुद को अकेला महसूस करने लगे. इस हालात का अमृतपाल सिंह ने फायदा उठाया और सिद्धू की मौत के बाद खालीपन को भरने की कोशिश में उसने खुद को 'वारिस पंजाब दे' का नया मुखिया घोषित कर दिया.

इस समूह का गठन दीप सिद्धू द्वारा किया गया था, जब उसे प्रदर्शनकारी किसान संघों द्वारा मंच साझा करने से रोक दिया गया था. सिद्धू के परिवार ने शुरू में अमृतपाल सिंह के संगठन का मुखिया बनने पर आपत्ति जताई थी.

अमृतपाल के खालिस्तानी हमदर्दों के बीच मशहूर होने की एक बड़ी वजह यह थी कि उसने अपने अलगाववादी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए पंजाब को आधार बनाया था. जबकि गुरपतवंत पन्नू जैसे कई अलगाववादी विदेशों से अपना कारोबार चला रहे थे, अमृतपाल ने भारत से अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने का प्लान किया.

अमृतपाल का भारत विरोधी एजेंडा
अमृतपाल जरनैल सिंह भिंडरावाले से प्रभावित रहा और उसी के नक्शेकदम पर चलते हुए अमृतपाल ने युवा लोगों के साथ मिलकर अपने संगठन के क्षेत्र का विस्तार किया. वह भिंडरावाले की तरह कपड़े पहनता है और उसी के अंदाज में तस्वीरें क्लिक करवाता है.

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हिंदुओं और सिखों के बीच सांप्रदायिक विभाजन और नफरत पैदा करके उसने यह एजेंडा फैलाया कि सिख धर्म खतरे में है और सिख गुलाम हैं. जबकि कई लोगों का मानना है कि वह सिख धर्म को बढ़ावा दे रहा है. हालांकि बड़ी संख्या में सिख विद्वानों का कहना है कि वह धर्म को नुकसान पहुंचा रहा था और पाकिस्तान के आईएसआई के एजेंडे का पालन कर रहा था.

अमृतपाल सिंह के टारगेट में भारत में हिंदी भाषी आबादी
अमृतपाल सिंह का प्रमुख लक्ष्य भारत में हिंदी भाषी आबादी है. कम समय में लोकप्रियता हासिल करने के बावजूद, अमृतपाल विभिन्न सिख प्रचारकों और नेताओं के निशाने पर भी आ गया. गुरुद्वारे के फर्नीचर जलाने सहित कई सिख संगठनों ने उसकी गतिविधियों पर आपत्ति जताई.

PM मोदी, अमित शाह को चुनौती
अमृतपाल खालिस्तान बनाने की मांग को सही ठहराते हुए कहता है कि अगर कट्टरपंथी हिंदू हिंदू राष्ट्र की मांग कर सकते हैं, तो सिख राष्ट्र की मांग करने में क्या गलत है? वह अक्सर अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए बेअंत सिंह की हत्या का हवाला देता है. उसने यह भी कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने खालिस्तान पर आपत्ति जताने की "कीमत चुकाई" और पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और पंजाब के सीएम भगवंत मान सहित मौजूदा नेतृत्व उन्हें खालिस्तान की मांग करने से नहीं रोक सकता.
 

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