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ममता बनर्जी की बैठक से पांच दलों ने किया किनारा, राष्ट्रपति चुनाव में किसका बनेंगे सहारा

राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष में शह-मात का खेल जारी है. ममता बनर्जी ने राष्ट्रपति चुनाव में साझा उम्मीदवार उतारने के लिए 22 दलों की बैठक बुलाई थी, जिसमें महज 17 दल ही शामिल हुए हैं. टीआरएस से लेकर बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, आम आदमी पार्टी ने ममता की बैठक से किनारा कर किया, लेकिन ये किसका सहारा बनेंगे?

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अखिलेश यादव, महबूबा मुफ्ती, ममता बनर्जी, शरद पवार, मल्लिकार्जुन खड़गे
अखिलेश यादव, महबूबा मुफ्ती, ममता बनर्जी, शरद पवार, मल्लिकार्जुन खड़गे
स्टोरी हाइलाइट्स
  • ममता बनर्जी की बैठक में कुल 17 दल के नेता शामिल हुए
  • केसीआर से लेकर केजरीवाल तक ने बनाए रखी दूरी
  • नवीन पटनायक और जगन रेड्डी नहीं खोल रहे पत्ते

राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष की सियासी गहमागहमी तेज हो गई है. टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति चुनाव में साझा उम्मीदवार उतारने के लिए बुधवार को दिल्ली में करीब 22 विपक्षी दलों की बैठक बुलाई थी. राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्षी एकजुटता की कोशिश को पहले ही दिन झटका लग गया. ममता बनर्जी की बुलाई गई बैठक से टीआरएस, आम आदमी पार्टी, बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस और अकाली दल ने किनारा बनाए रखा. ऐसे में सवाल उठता है कि ये पांचों विपक्षी दल राष्ट्रपति चुनाव में किसका सहारा बनेंगे? 

राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सोनिया गांधी ने डीएमके प्रमुख एम के स्टालिन, एनसीपी के मुखिया शरद पवार, सीपीएम के नेता सीताराम येचुरी से बातचीत किया. वहीं, ममता बनर्जी ने 22 विपक्षी दलों को पत्र लिखकर राष्ट्रपति चुनाव के संबंध में दिल्ली की बैठक में शामिल होने का न्योता दिया था. एनसीपी प्रमुख शरद पवार की अध्यक्षता में कंस्टीट्यूशन क्लब में विपक्षी दलों की बैठक हुई हुई, जिसमें कांग्रेस, वामदल और सपा सहित 17 दलों के नेता शामिल होकर ध्यान खींचा. लेकिन, पांच दलों ने ममता बनर्जी की बैठक में शामिल न होकर विपक्ष एकता को जोर का झटका दिया. 

वहीं, ममता बनर्जी के साथ मिलकर अक्सर बीजेपी को मात देने की हुंकार भरने वाले टीआरएस चीफ केसीआर ने सबसे बड़ा झटका दिया है. केसीआर को ममता के करीबियों में शुमार किया जाता है. इसी तरह से आम आदमी पार्टी के संयोजक व दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी भी इसमें शामिल नहीं हुई तो शिरोमणि अकाली दल ने भी कांग्रेस को बैठक में बुलाए जाने की वजह से इससे किनारा कर रखा. 

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राष्ट्रपति चुनाव में वोट के लिहाज से विपक्ष के इन पांच दलों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है. सत्तापक्ष के पास इतना वोट नहीं है कि अपने दम पर एनडीए के कैंडिडेट को जिता सके. वहीं, किसी तरह अगर समूचा विपक्ष एकजुट हो जाता है, तो उसका पलड़ा भारी है और मुकाबला दिलचस्प हो सकता है. एनडीए के पास करीब 48 फीसदी वोट है जबकि सारा विपक्ष का वोट मिलाकर 52 फीसदी वोट है. हालांकि, विपक्ष के वोट में ममता की टीएमसी, नवीन पटनायक की बीजेडी, जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस और कीसीआर की टीआरएस का वोट भी शामिल हैं. 

बीजेडी क्या रुख अपनाएगा

ममता बनर्जी की ओर से आमंत्रण मिलने के बाद भी ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की बीजेडी ने बैठक में शामिल होकर अपने सियासी संकेत दे दिए हैं. बीजेडी ने बीस सालों से किसी भी गठबंधन में शामिल नहीं रही है. नवीन पटनायक ने सेंट्रल पॉलिटिक्स से खुद को दूर रखे हुए, लेकिन तालमेल सत्तापक्ष से विपक्ष तक है. बीजेडी ने कहा कि चुनावी तस्वीर साफ होने के बाद ही हम कोई फैसला लेंगे. ऐसे में बीजेडी की नजर इस बात पर है कि एनडीए राष्ट्रपति पद के लिए किसे अपना उम्मीदवार बनाता है. 

एनडीए अगर ओडिशा से किसी नेता को राष्ट्रपति का अपना कैंडिडेट बनाता है तो फिर बीजेडी के लिए उनके खिलाफ वोट करना मुश्किल होगा. इसीलिए पटनायक अभी न तो अपना पत्ता खोल रहे हैं और न ही किसी खेमे के साथ खड़े होना चाहते हैं. हालांकि, 2017 में उनकी पार्टी ने बीजेपी उम्मीदवार के पक्ष में वोट किया था और भी कई मौके पर मोदी सरकार के साथ खड़ी नजर आई है. हाल ही में नवीन पटनायक और पीएम मोदी के बीच मुलकात हुई थी. इस मुलाकात को राष्ट्रपति चुनाव से जोड़कर देखा गया था. वोटों के नंबरगेम को देखते हुए भी बीजेडी शायद ही एनडीए के खिलाफ जाने का कदम उठाए. 

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केसीआर नहीं खोल रहे अपने पत्ता

राष्ट्रपति चुनाव को लेकर ममता बनर्जी के द्वारा बुलाई गई बैठक में तेलगांना के मुख्यमंत्री केसीआर की पार्टी टीआरएस भी शामिल नहीं हुई. टीआरएस ने साफ तौर पर कहा है कि कांग्रेस के साथ मंच साझा करने का सवाल ही नहीं उठता. कांग्रेस को बुलाए जाने के चलते टीआरएस ने दूरी बनाए रखा. वहीं, बीजेपी नेता भी केसीआर पर लगातर हमलावर है, उससे लगता है कि बीजेपी भी टीआरएस को खास तवज्जे देने के मूड में नहीं है. ऐसे में केसीआर कांग्रेस और बीजेपी दोनों से बराबर की दूरी बनाए रखना चाहते हैं. इसीलिए टीआरएस का कहना है कि विपक्ष को पहले किसी उम्मीदवार पर विचार करना चाहिए औैर उसकी सहमति लेने के बाद बैठक करनी चाहिए. इस तरह से टीआरएस की नजर विपक्ष के कैंडिडेट पर है. 

जगन मोहन रेड्डी क्या कदम उठाएंगे

ममता की बाठक से आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस ने भी दूरी बनाकर रखा. वाईएसआर कांग्रेस के पास करीब 40 हजार से ज्यादा वोट हैं. ऐसे में राष्ट्रपति पद के चुनाव में वाईएसआर कांग्रेस की भूमिका सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों के लिए अहम है. ऐसे में सभी की निगाहें जगन मोहन रेड्डी पर है कि वो क्या कदम उठाएंगे. रेड्डी एनडीए के नेताओं के संपर्क में हैं. जगन रेड्डी ने हाल ही में दिल्ली में पीएम मोदी से मुलाकात की थी, जिसे राष्ट्रपति चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है. हालांकि, वाईएसआर कांग्रेस की तरफ से अभी तक ये घोषणा नहीं की गई है कि राष्ट्रपति चुनाव में किसके साथ देंगे. 

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केजरीवाल वेट एंड वाच के मूड में

ममता बनर्जी की बुलाई गई मीटिंग में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी शामिल नहीं हुई. आम आदमी पार्टी भले ही बीजेपी के साथ न खड़ी हो, लेकिन कांग्रेस के साथ भी दूरी बनाए रखना चाहती है. ऐसे में केजरीवाल राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार घोषित होने के बाद ही अपना स्टैंड साफ करेंगे. एनडीए और विपक्ष के कैंडिडेट घोषित होने के बाद केजरीवाल सारे नफा नुकसान तौलकर अपना कदम उठाना चाहते हैं. हालांकि, आम आदमी पार्टी की ओर से शरद पवार का नाम राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए उछाला गया था, लेकिन पवार के कदम खींचने के बाद अब केजरीवाल वेट एंड वाच के मूड में है. 

अकाली दल का स्टैंड साफ नहीं

विपक्षी दलों के बैठक में शिरोमणि अकाली दल भी शामिल नहीं हुई. अकाली दल ने कांग्रेस के साथ मंच शेयर न करने का तर्क दिया है. अकाली दल ने कहा कि कांग्रेस को विपक्ष दल की बैठक में बुलाए जाने के चलते वो शामिल नहीं हुई. ऐसे में साफ है कि कांग्रेस के चलते भले ही अकाली दूरी बना रखी हो, लेकिन एनडीए को लेकर अभी अपना स्टैंड साफ नहीं कर रही है. ऐसे में अकाली दल भी राष्ट्रपति चुनाव में सत्तापक्ष और विपक्ष का प्रत्याशी घोषित होने के बाद समर्थन की घोषणा करेगी. 

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