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नई संसद में अब होंगी ज्यादा सीटें, लोकसभा-राज्यसभा में सदस्य संख्या बढ़ाने की क्या है प्रक्रिया

Parliament Building Innugauration: नई संसद की बिल्डिंग इन दिनों चर्चा में है. चार मंजिला यह इमारत अपने डिजाइन, आर्किटेक्ट और अपनी भव्यता के कारण काफी अनोखी है. पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) 28 मई को इस बिल्डिंग का उद्घाटन करेंगे. पुराने भवन की तुलना में नई बिल्डिंग में सांसदों के बैठने के लिए करीब 150 फीसदी ज्यादा सीटें बनाई गई हैं.

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पीएम नरेंद्र मोदी 28 मई को करेंगे उद्घाटन (फाइल फोटो)
पीएम नरेंद्र मोदी 28 मई को करेंगे उद्घाटन (फाइल फोटो)

New Parliament Building: दिल्ली के दिल में बनी हमारी संसद देश की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक संस्था है. आज से करीब 96 साल पहले यानी 1927 को यह इमारत बनकर तैयार हुई थी. तब अंग्रेजों ने 'काउंसिल हाउस' के रूप में इसे बनवाया था लेकिन आजादी के बाद सरकार ने इसे संसद भवन बना दिया. पिछले 72 सालों से इसी भवन से देश चलाया जा रहा है लेकिन अब 28 मई से संसद की नई बिल्डिंग से देश चलेगा.

संसद की यह नई बिल्डिंग अपने आर्किटेक्ट के अलावा स्पेस, सिक्योरिटी सिस्टम और हाईटेक होने के साथ-साथ कई और मायनों में पुराने संसद भवन से काफी अलग और बेहतर है. सबसे बड़ी बात यह है कि इस बिल्डिंग में सांसदों के बैठने के लिए कुर्सियों की संख्या पहले से कहीं ज्यादा है. 

ऐसे में अब इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि क्या लोकसभा और राज्यसभा सांसदों की संख्या बढ़ने वाली है? आइए जानते हैं कि नई संसद में सीटों की संख्या बढ़ाने के क्या नियम हैं?  इस बदलाव के लिए संविधान में क्या कहा गया है. लेकिन इससे पहले यह जानते हैं कि नई संसद में उच्च सदन और निचले सदन में बैठने के लिए कितनी सीटें बढ़ाई गई हैं.

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नई संसद में सांसदों के बैठने की क्षमता से ज्यादा है व्यवस्था

लोकसभा में 888 तो राज्यसभा में 384 सदस्य

देश में जब 1951 में पहली बार संसदीय चुनाव हुए तब लोकसभा की 489 सीटें थीं लेकिन बढ़ती आबादी और काम के बोझ के चलते सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 543 कर दी गई है. इसी तरह राज्य सभा में अभी 245 सीटें हैं. वहीं अगर नए संसद भवन की बात करें तो इसमें निचले सदन (लोक सभा) के 888 सदस्यों और उच्च सदन (राज्य सभा) के 384 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था की गई है. इसके अलावा संयुक्त अधिवेशन के लिए 1272 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था की गई है.

संख्या बढ़ने की इसलिए हो रही चर्चा

सांसदों की संख्या बढ़ने की चर्चा अचानक नहीं शुरू हुई. इसके पीछे 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार का एक फैसला वजह है. उस समय सरकार ने 84वां संविधान संशोधन किया था. इसके तहत 1971 की जनगणना के आधार पर लोकसभा में विभिन्‍न राज्‍यों को आवंटित सीटों की कुल संख्‍या तब तक अपरिवर्तित रहेगी, जब तक वर्ष 2026 में बाद पहली जनगणना न की जाती है यानी 2026 या उसके बाद नई जनगणना के आधार पर परिसीमन कराया जाएगा. अगर परिसीमन होता है तो सीटों की संख्या बढ़नी तय है. वैसे नई जनगणना के नतीजे 2021 में आ जाने थे लेकिन सरकार ने अभी तक जनगणना ही शुरू नहीं कराई. ऐसे में अब यह भी कहा जा रहा है कि सरकार 2031 या इसके बाद परिसीमन कर सकती है.

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लोकसभा

पूर्व राष्ट्रपति ने कहा था- 1000 सीटें होनी चाहिए 

1973 में जब लोकसभा का परिसीमन किया गया था, तब देश की आबादी 54.80 करोड़ थी यानी तब एक सांसद पर करीब 10 लाख लोगों की जिम्मेदारी थी. अब भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश हो गया है. जनसंख्या करीब 143 करोड़ हो गई है यानी 50 साल में आबादी ढाई गुना से भी ज्यादा हो गई है. ऐसे में अब एक सांसद को करीब 25 लाख की आबादी संभालनी पड़ रही है, इसलिए देश को व्यवस्थित तरीके से चलाने के लिए सांसदों की संख्या बढ़ाने की जरूरत महसूस होने लगी है. भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 2019 में पूछा था कि आखिर कोई सासंद कितने लोगों की आबादी का प्रतिनिधित्व कर सकता है? उन्होंने लोकसभा में 1000 सीट करने की मांग की थी. 

राज्यसभा

क्या संविधान संशोधन की पड़ेगी जरूरत

हमारे संविधान में अनुच्छेद-81 है. इसमें लोकसभा की संरचना के बारे में बताया गया है. इसमें कहा गया है कि सदन में 550 से अधिक निर्वाचित सदस्य नहीं होंगे, जिनमें से राज्यों के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से 530 से ज्यादा और संघशासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करने के लिए 20 से अधिक सदस्य नहीं होंगे.

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अनुच्छेद 81 कहता है कि किसी राज्य को आवंटित लोकसभा सीटों की संख्या ऐसी होगी कि उस संख्या और राज्य की जनसंख्या के बीच का अनुपात हो. इसके अलावा अनुच्छेद-331 के अनुसार, राष्ट्रपति दो सदस्य मनोनीत कर सकता है. इस प्रकार लोकसभा सदस्यों की अधिकतम संख्या 552 निश्चित की गई है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या सांसदों की संख्या बढ़ाने के लिए है संविधान में संशोधन करना पड़ेगा?

संयुक्त अधिवेशन कक्ष

पुरानी और नई संसद की बनावट में है अंतर

आज से 102 साल पहले जब संसद भवन का निर्माण शुरू किया गया था, तब उसकी क्षमता उस समय की जरूरत के हिसाब से पर्याप्त थी लेकिन अगर परिसीमन किया जाता है तो आज पुराना भवन सांसदों के बैठने के लिए छोटा पड़ा जाएगा. आज भी कई मौकों पर सासंदों के लिए अलग से कुर्सियां लगानी पड़ती हैं लेकिन नई संसद में पर्याप्त स्पेस है. इस इमारत में 2000 लोग प्रत्यक्ष और 9000 अप्रत्यक्ष रूप से बैठ सकेंगे.  

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- मौजूदा संसद भवन को बने करीब 100 साल का समय पूरा होने जा रहा है. इसमें कई जगहों पर मरम्मत की जरूरत है. वेंटीलेशन सिस्टम, इलेक्ट्रिसिटी सिस्टम, ऑडियो-वीडियो सिस्टम जैसी कई चीजों में सुधार की दरूरत है. इसके अलावा मौजूदा संसद भवन भूकंप रोधी भी नहीं है. ऐसे में सरकार ने नया संसद भवन बनाने का फैसला लिया.

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जेड सुरक्षा से लैस

- 2020 में तत्कालीन सचिव (आवास और शहरी मामले) डीएस मिश्रा ने बताया था कि अगल 250 को ध्यान में रखते हुए संसद की नई बिल्डिंग का निर्माण किया जा रहा है.

- नई संसद की बिल्डिंग को भूकंप रोधी बनाया गया है. इसे सेस्मिक जोन-5 को ध्यान में रखकर बनाया गया है जबकि दिल्ली जोन-4 में आती है यानी जोन-5 में जम्मू और कश्मीर का हिस्सा (कश्मीर घाटी), हिमाचल प्रदेश का पश्चिमी हिस्सा, उत्तराखंड का पूर्वी हिस्सा, गुजरात में कच्छ का रण, उत्तरी बिहार का हिस्सा, भारत के सभी पूर्वोत्तर राज्य, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं. ये इलाके भूकंप के लिहाज से देश में सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं यानी संसद की नई बिल्डिंग सबसे ज्यादा सुरक्षित है.

बिजली की होगी बचत

तो क्या पुरानी इमारत ढहा दी जाएगी?

मार्च 2021 में केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने राज्यसभा में कहा था कि जब संसद की नई इमारत बनकर तैयार हो जाएगी, तो पुरानी इमारत की मरम्मत करनी होगी और वैकल्पिक तौर पर इसका इस्तेमाल करना होगा, लेकिन पुरानी संसद भवन का क्या इस्तेमाल किया जाएगा, इस पर कोई व्यापक विचार नहीं किया गया.

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सरकार के मुताबिक, पुराने संसद भवन को ढहाया नहीं जाएगा. इसे संरक्षित रखा जाएगा क्योंकि यह देश की पुरातात्विक संपत्ति है. संसद से जुड़े कार्यक्रमों के आयोजन के लिए इस इमारत का इस्तेमाल किया जाएगा. 2022 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पुरानी संसद भवन को संग्रहालय में तब्दील किया जा सकता है. 

बहुत बड़े एरिया में बनी है इमारत

उद्घाटन कार्यक्रम को लेकर विवाद

पीएम नरेंद्र मोदी ने 10 दिसंबर 2020 को नए संसद भवन के निर्माण कार्य का शिलान्यास किया था. अब वह 28 मई को इस भवन का उद्घाटन करने जा रहे हैं. दरअसल इस कार्यक्रम को लेकर विपक्ष का कहना है कि उद्घाटन पीएम से नहीं बल्कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से कराया जाना चाहिए. उनका कहना है कि यह संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से उद्घाटन न कराना, उनके पद का अपमान है. कांग्रेस समेत 16 दलों ने इस कार्यक्रम का बहिष्कार कर दिया है. हालांकि बीजेपी समेत 25 दलों ने उद्घाटन समारोह को ऐतिहासिक बनाने का फैसला किया है. वहीं राष्ट्रपति को न बुलाने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. आज इस मामले में कोर्ट में सुनवाई भी है.
 

 

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