
पंजाब की राजनीति के 'भीष्म' सरदार प्रकाश सिंह बादल नेल्सन मंडेला के बाद दुनिया के दूसरे सबसे लंबे समय तक राजनीतिक कैदी रहने वाले नेता रहे. यही वजह है कि पीएम मोदी ने उन्हें भारत का नेल्सन मंडेला कहा था. 95 सालों की जिंदगी और 75 सालों की राजनीतिक जीवन यात्रा के दौरान नेल्सन मंडेला ने कई धूप छांव देखे. वे पांच बार पंजाब के मुख्यमंत्री बनकर शिखर पर पहुंचे तो उनकी सियासी जिंदगी के खाते में 17 साल जेल की रोटी भी दर्ज है.
इस 17 साल के रिकॉर्ड के साथ वे ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने जेल में बतौर राजनीतिक कैदी दुनिया में दूसरा सबसे लंबा वक्त गुजारा है. 27 साल के कारावास के साथ दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ जंग छेड़ने वाले नेल्सन मंडेला इस मामले में नंबर वन हैं.
प्रकाश सिंह बादल की जिंदगी उथल-पुथल और हैरानी की कहानियां से भरी है. 1980-90 के दौरान जब पंजाब में पंजाबियत और सिख पहचान को लेकर आंदोलन हो रहा था तो एक वक्त ऐसा आया था कि प्रकाश सिंह बादल गहरे विवादों में घिर गए. उन्होंने सार्वजनिक रूप से भारत के संविधान का पन्ना फाड़ा/जलाया. हालांकि बाद में इसके लिए उन्होंने खेद भी जताया और माफी मांगी. सबसे बड़ी विडंबना तो यही रही कि जिस संविधान के पन्ने को विरोध प्रदर्शन के दौरान उन्होंने जला दिया था. उसी संविधान की शपथ लेकर बाद में वे 4 बार पंजाब के मुख्यमंत्री बने.
पंथ, पंजाब और पंजाबियत की राजनीति करने वाले राजनीतिक के इस नायक का जिंदगी का सफर 25 अप्रैल 2023 को थम गया. 8 दिसंबर 1927 को जन्मे प्रकाश सिंह बादल ने आजादी के बाद पंजाब से जुड़े हर बड़े फैसले को प्रभावित किया. इसकी ये वजह रही कि 1947 में देश आजाद हुआ और 47 में ही पंजाब के लांबी गांव के बादल सक्रिय राजनीति में आए.
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पटवारी बनना चाहते थे सरपंच बन गए
जमीन-जायदाद वाले परिवार से आने वाले बादल अंग्रेजों के जमाने का पटवारी बनना चाहते थे. लेकिन किस्मत उन्हें सरपंची की ओर ले गई. बादल 25 साल की उम्र में 1952 में अपने गांव लांबी के सरपंच बन गए. सरपंची उनके खानदान में थी. उनके पिता रघुराज सिंह भी सरपंच ही थे. बाद में बादल लांबी ब्लॉक समिति के अध्यक्ष बने. आजादी के अगले 10 साल में प्रकाश सिंह बादल परिपक्व नेता बन चुके थे. 1957 में पहली बार वे कांग्रेस पार्टी के टिकट पर पंजाब विधानसभा में पहुंचे.

सबसे युवा और सबसे बुजुर्ग सीएम बनने का रिकॉर्ड
75 साल तक राजनीतिक की रपटीली राह पर योद्धा की तरह डटे रहने वाले बादल की जिंदगी रिकॉर्ड और 'मैनी फर्स्ट' का दस्तावेज है. 1970 में जब वे पहली बार पंजाब के मुख्यमंत्री बने तो वे उस समय देश के सबसे युवा मुख्यमंत्री थे. उस समय बादल की उम्र 43 साल थी. 2012 में जब वे आखिरी बार पंजाब के सीएम पद की शपथ ले रहे थे उस वक्त भी बादल रिकॉर्ड बना रहे थे. 84 साल की उम्र में सीएम पद की शपथ लेने वाले बादल देश के सबसे बुजुर्ग सीएम बन रहे थे. इस तरह से बादल के नाम देश का सबसे युवा और सबसे बुजुर्ग सीएम बनने का रिकॉर्ड है.
जब बादल ने जलाया संविधान का पन्ना...
1980 के दशक में पंजाब के लिए स्वायतत्ता की मांग को लेकर कई आंदोलन हुआ. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या से पहले पंजाब अशांति के दौर से गुजर रहा था. इसी दौरान पंजाब में नहरों का पानी हरियाणा के साथ बांटने को लेकर हंगामा चल रहा था. प्रकाश सिंह बादल इसके सख्त खिलाफ थे. 6 अक्टूबर 1983 से पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू था.
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प्रकाश सिंह बादल सिखों के धार्मिक पहचान को लेकर चल रहे आंदोलन में शामिल थे. प्रकाश सिंह बादल ने संविधान के पन्ने फाड़ने/जलाने की इस कहानी को आज से 19 साल पहले बठिंडा में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए बताया था. इसकी रिपोर्ट पंजाब के अखबार ट्रिब्यून इंडिया में है. ट्रिब्यून इंडिया के इस रिपोर्ट के अनुसार प्रकाश सिंह बादल ने कहा था कि उन्होंने दिल्ली में शिरोमणि अकाली दल के तत्कालीन अध्यक्ष हरचंद सिंह लोंगोवाल के 'दबाव' में संविधान के अनुच्छेद-25 की प्रतियां जलाई थी.
इसके बारे में बताते हुए ट्रिब्यून इंडिया लिखता है, "प्रकाश सिंह बादल ने कार्यकर्ताओं को कहा कि वे संविधान की कॉपी जलाने के पक्ष में नहीं थे. लेकिन संत लोगोंवाल द्वारा ऐसा करने के लिए उनपर दवाब डाला गया ताकि पांच सदस्यों की कमेटी द्वारा लिए गए फैसले को कार्यान्वित किया जा सके. उन्होंने कहा कि अन्य चार सदस्यों ने स्वयं को बचाने के लिए चंडीगढ़ में खुद को गिरफ्तार करवा दिया जबकि संत लोंगोवाल के आदेश को अमली जामा उन्होंने पहनाया."

प्रकाश सिंह बादल ने सैकड़ों अकाली कार्यकर्ताओं के साथ 27 फरवरी, 1984 को दिल्ली में ऐतिहासिक बंगला साहिब गुरुद्वारे के बाहर संविधान के अनुच्छेद 25 के एक क्लॉज की प्रति जलाई. प्रकाश सिंह बादल समेत अकाली दल इस क्लॉज को बदलने की मांग कर रहे थे ताकि संविधान में सिखों को अलग पहचान मिल सके. इस घटना के बाद प्रकाश सिंह बादल को गिरफ्तार कर लिया गया था.
इस कार्यक्रम में बादल ने कहा था कि वह संत लोंगोवाल के आदेशों को लागू कराने के लिए अपना रंग बदलकर पंजाब से दिल्ली पहुंचे थे. उन्होंने कहा कि एसजीपीसी के पूर्व प्रमुख गुरचरण सिंह टोहरा, जो खुद भी दिल्ली भी पहुंचने वाले थे, ने चंडीगढ़ में अपनी गिरफ्तारी दे दी.
इस कार्यक्रम में प्रकाश सिंह बादल ने कहा था कि घटना के पहले भारत के दिवंगत राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने उन्हें फोन किया और उन्हें यह कदम नहीं उठाने की सलाह दी थी. इस पर उन्होंने कहा था कि उन्होंने ज्ञानी जैल सिंह को संत लोंगोवाल से बात करनी चाहिए. तभी वह (बादल) संविधान के पन्ने जलाने के अपने कार्यक्रम को छोड़ सकते थे.
1997 में उसी संविधान की शपथ लेकर CM बने बादल
विडंबना ये है कि प्रकाश सिंह बादल जिस संविधान के पन्नों को जलाया था. लगभग 12 साल बाद उसी संविधान की शपथ लेकर वे पंजाब के सीएम बने. ये मौका आया 1997 में . 12 फरवरी 1997 को बादल बीजेपी के सहयोग से पंजाब के सीएम बने और पूरे पांच साल यानी कि 2002 तक राजकाज संभाला. 2202 में पंजाब में कांग्रेस सत्ता में आई लेकिन 2007 में कांग्रेस पार्टी की सत्ता से विदाई हो गई.
2007 में बादल एक बार फिर से उसी संविधान की शपथ लेकर पंजाब के सीएम बने. ये मौका 2012 में भी आया जब वे पांचवीं बार संविधान की शपथ लेकर सीएम बन रहे थे.
1984 में संविधान के पन्नों को जलाने से पहले भी प्रकाश सिंह बादल दो बार 1970 और 1977 में सीएम पद की शपथ ले चुके थे.