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AIMPLB चुनाव: सियासत से करीबी, बजरंग दल पर बोल... अरशद मदनी पर भारी पड़ रहे सैफुल्लाह

मुसलमानों के सबसे पावरफुल माने जाने वाले संगठन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष पद के चुनाव में कई मौलाना दावेदार माने जा रहे हैं. इसमें मौलाना खालिद सैफुल्लाह, मौलाना अरशद मदनी और मौलाना फजलुर्रहीम शामिल है. ऐसे में सबकी नजरें रिजल्ट पर है कि मौलाना राबे हसन नदवी की जगह कौन लेता है?

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मौलाना खालिद सैफुल्लाह, अरशद मदनी, फजलुर रहीम मुजद्दीदी
मौलाना खालिद सैफुल्लाह, अरशद मदनी, फजलुर रहीम मुजद्दीदी

देश में मुसलमानों के सबसे बड़े संगठन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष का चुनाव अगले महीने जून में है. मध्य प्रदेश के इंदौर में 3-4 जून को पर्सनल लॉ बोर्ड का दो दिवसीय सम्मेलन होगा, जिसमें अध्यक्ष के साथ दो उपाध्यक्ष के नामों पर फैसला लिया जाएगा.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष पद की रेस में बोर्ड के मौजूदा महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी, उपाध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी और मौलाना फजलुर्रहीम मुजद्दीदी शामिल हैं. तीनों ने मौलाना अध्यक्ष पद के लिए अपने-अपने तरीके से लॉबिंग शुरू कर दी है, लेकिन मौलाना खालिद सैफुल्लाह का पलड़ा भारी नजर आ रहा है.

राबे हसन नदवी की जगह कौन?
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड देश के मुसलमानों का संयुक्त संगठन है. पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष पद पर पिछले 21 साल से काबिज रहे मौलाना सैयद राबे हसनी नदवी का निधन पिछले महीने (13 अप्रैल) गया था, जिसके चलते चुनाव हो रहे हैं. 

मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी, जमीयत उलमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी और राजस्थान के मौलाना फजलुर्रहीम मुजददिदी बोर्ड के अध्यक्ष बनने की रेस में शामिल हैं. इसके अलावा भी बोर्ड से जुड़े हुए कई मौलाना शामिल है, लेकिन मुख्य रूप से इन्हीं तीनों मौलानाओं को प्रमुख दावेदार माना जा रहा है. 

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अरशद मदनी की राह क्यों मुश्किल?
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का गठन साल 1973 में  किया गया. 50 साल पुराने मुस्लिम संगठन के अध्यक्ष पद पर जिन तीनों नेताओं को दावेदार माना जा रहा है, उनमें मौलाना अरशद मदनी की राह में कई मुश्किलें हैं. मौलाना अरशद मदनी जिस तरह से इन दिनों राजनीतिक बयानबाजी कर रहे हैं, उसे लेकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का एक तबका नहीं चाहता है कि उन्हें अध्यक्ष बनाया जाए. इतना ही नहीं, उनका तर्क है कि मौलाना अरशद मदनी जब अपने संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद को एकजुट नहीं रख सके हैं तो पर्सलन लॉ बोर्ड को कैसे रख पाएंगे. 

मौलाना अरशद मदनी ने हाल ही में कहा है कि कांग्रेस कर्नाटक में बजरंग दल को बैन करें. मुस्लिमों ने कर्नाटक में कांग्रेस को वोट दिया है. बजरंग दल को बैन नहीं किया, तो मुसलमान कांग्रेस पर यकीन नहीं करेंगे. कांग्रेस को वापस से नेहरू की पार्टी बनना होगा और सांप्रदायिक ताकतों पर लगाम लगाना होगा. मदनी ने कहा था कि 1948 में गांधीजी की हत्या के बाद अगर सांप्रदायिकता को उसी समय कुचल दिया गया होता तो देश बर्बाद होने से बचाया जा सकता था. अरशद मदनी के इस बयान के बाद बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद के लोग विरोध भी कर रहे हैं. 

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मदनी के सियासी बयान बन रहे मुसीबत
अरशद मदनी ने इसी साल फरवरी में अपने भतीजे मौलाना महमूद मदनी के कार्यक्रम में अल्लाह और ओम को एक बता दिया था, जिसे लेकर कार्यक्रम के मंच पर ही जैन धर्म और हिंदू धर्म के लोगों ने एतराज जता दिया था. यही नहीं मौलाना मदनी पिछले 9 सालों से मोदी सरकार और बीजेपी को लेकर जिस तरह से सियासी बयानबाजी करते रहे हैं, उसके चलते मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के लोग उनके पक्ष में नहीं है. इसकी वजह यह भी है कि अभी तक जितने में लोग बोर्ड के अध्यक्ष रहे हैं, वो बहुत हार्डलाइन नहीं लेते रहे हैं. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से जुड़े एक शख्स ने नाम न छापने की शर्त पर बताया है कि कार्यक्रम में मौलाना अरशद मदनी को भाषण देने नहीं दिया जाएगा, क्योंकि वो क्या विवादित बयान दे दें किसी को कुछ भी नहीं पता. 

जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष एवं मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी काफी वरिष्ठ हैं. मुस्लिम समुदाय की समस्याओं को लेकर वो मुखर भी रहते हैं, लेकिन उनका दायरा मुसलमानों के एक तबके की नुमाइंदगी तक ही माना जाता है. देवबंद फिरके के लोगों के बीच ही उनकी पकड़ है, जिसके चलते शिया-बरेलवी स्कूल ऑफ थॉट के लोगों उन्हें स्वीकर नहीं करना चाहते हैं. कांग्रेसे और सियासत से करीबी होना मौलाना मदनी का कमजोर पक्ष माना जा रहा है. 

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खालिद सैफुल्लाह का पलड़ा क्यों भारी?
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मौजूदा महासचिव हैदराबाद के मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी इस्लामिक कानून के मामले में पूरे एशिया में बड़ी शख्सियत माने जाते हैं. हैदराबाद में उनकी इस्लामिक फिक्ह एकेडमी संचालित होती है, जो लोगों की शरीयत की रोशनी में रहनुमाई करती है. इसके अलावा मौलाना सैयद राबे हसनी नदवी के वो काफी करीबी माने जाते रहे हैं. उनका सबसे मजबूत पक्ष मौलाना राबे हसनी नदवी की तर्ज पर मुस्लिम समुदाय के मसलकी विवादों और सियासत से दूरी बनाए रखना है. 

सैफुल्लाह रहमानी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की लीगल काउंसिल के सदस्य और इस्लामिक फिक्ह अकादमी के महासचिव हैं. इतना ही नहीं, उनके साथ मजबूत विरासत भी जुड़ी हुई है. उनके दादा मौलाना अब्दुल अहद जलावी प्रसिद्ध इस्लामिक विद्वान और मौलाना रशीद अहमद गंगुही, महमूदुल हसन और मौलाना अशरफ अली थानवी के साथी रहे हैं. उनके पिता मौलाना जैनुल आबिदैन इस्लामिक विद्वान और उनके चाचा मौलाना मुजाहिदुल इस्लाम कासमी प्रसिद्ध इस्लामिक विद्वान रहे हैं. यही वजह है कि मौलाना सैफुल्लाह को मुस्लिम पर्सलन लॉ बोर्ड के अध्यक्ष पद के लिए सबसे प्रबल और मजबूत दावेदार माना जा रहा है. 

मौलाना मुजद्दीदी भी दावेदार 
मु्स्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष पद के लिए तीसरे दावेदार के रूप में मौलाना फजलुर्रहीम मुजददिदी को माना जा रहा है. राजस्थान के जयपुर में दीनी तालीम और आधुनिक शिक्षा के मैदान में खिदमात के लिए जाने जाते हैं. दिल्ली से लेकर जयपुर तक वो कई शिक्षण संस्थानों को संचालित करते हैं. दीनी शिक्षा के साथ ही आधुनिक शिक्षा भी दी जाती है, लेकिन पर्सनल लॉ बोर्ड में उनकी पकड़ उस तरह नहीं है, जिसके सहारे अध्यक्ष पद का चुनाव जीत सके. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में उन्हें उपाध्यक्ष और महासचिव के तौर पर ताजपोशी हो सकती है. 

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मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कैसे बना?
बता दें कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का गठन 7-8 अप्रैल 1973 को हुआ था. ये बोर्ड ऐसे वक्त में बनाया गया था जब भारत सरकार समानांतर कानून के जरिए भारतीय मुसलमानों पर लागू होने वाले शरिया कानून को खत्म करने की कोशिश कर रही थी. इस दौरान दत्तक ग्रहण विधेयक संसद में पेश किया गया था. इस विधेयक को समान नागरिक संहिता की दिशा में पहला कदम कहा गया.

हजरत मौलाना कारी तैय्यब कासमी, मौलाना सैयद शाह मिन्नतुल्लाह रहमानी, मौलाना सैयद निजामुद्दीन, मौलाना अली मियां और मौलाना सैयद निजामुद्दीन सहित देश भर के मुस्लिम उलेमा ने एकजुट होकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का गठन किया. स्थापना का मकसद देश में पर्सनल लॉ की हिफाजत करना और देश में मुसलमानों के मुद्दों को सरकार के सामने रखना है.

पर्सनल लॉ बोर्ड के चार अध्यक्ष
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के पहले अध्यक्ष मौलाना मोहम्मद तैय्यब, दूसरे अध्यक्ष मौलाना अली मियां. इसके बाद मुजाहिदुल इस्लाम और फिर अध्यक्ष मौलाना सैय्यद मोहम्मद राबे हसनी नदवी बने. राबे हसन नदवी 2002 से लगातार 21 साल से मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष थे. इस तरह पिछले करीब 21 साल से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष थे और अब उनकी जगह नए अध्यक्ष की तलाश हो रही है, जिसका चुनाव इंदौर में होगा. 

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मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का ढांचा
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में कुल 251 सदस्य हैं. इसके 102 संस्थापक सदस्य है. इसके साथ ही 149 आम सदस्य होते हैं. बोर्ड में 30 महिला सदस्य भी हैं. इन सदस्यों के चुनाव के लिए हर 3 साल बाद चुनाव कराए जाते हैं. बोर्ड को एक अध्यक्ष, 5 उपाध्यक्ष, एक महासचिव, 4 सचिव, एक कोषाध्यक्ष और 39 सदस्य मिलकर चलाते हैं.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड मुसलमानों का सबसे शक्तिशाली संगठन कहा जाता है. मुसलमानों से जुड़े जितने भी फिरके हैं, वो सभी एक साथ एक मंच पर हैं. इसमें न सिर्फ सुन्नी के सभी संप्रदाय एक साथ हैं बल्कि शिया भी  साथ जुड़े  हैं. ऐसे में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष बनने के लिए अरशद मदनी से लेकर मौलाना सैफुल्लाह रहमानी तक दौड़ में है, लेकिन मदनी के बयान उनकी राह के कांटे बन गए हैं.

 

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