पिछले दो साल से अधिक समय से जातीय हिंसा की घटनाओं को लेकर चर्चा में रहा मणिपुर अब राजनीतिक वजहों से सुर्खियों में है. इसी साल फरवरी में मुख्यमंत्री पद से एन बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था. अब पूर्वोत्तर के इस हिंसाग्रस्त राज्य में सरकार गठन की कवायद फिर से शुरू होती नजर आ रही है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के विधायक थोकचोम राधेश्याम सिंह की अगुवाई में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के 10 विधायकों के डेलिगेशन ने राज्यपाल अजय कुमार भल्ला से मुलाकात की है और 44 विधायकों के समर्थन का दावा करते हुए कहा है कि हम सरकार बनाने के लिए तैयार हैं.
राज्यपाल से मुलाकात के बाद बीजेपी विधायक थोकचोम राधेश्याम सिंह ने पत्रकारों से बात करते हुए सरकार गठन के दावे को लेकर सवाल पर कहा कि इस पर फैसला पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को करना है. हलांकि, यह बताना कि हम सरकार बनाने के लिए तैयार हैं, दावा पेश करने जैसा ही है. उन्होंने यह भी कहा कि विधानसभा स्पीकर ने एक-एक कर और समूह में, दोनों तरीके से 44 विधायकों से मुलाकात की है. किसी ने भी नई सरकार के गठन का विरोध नहीं किया है. बीजेपी विधायक ने कहा कि सरकार के अभाव में लोगों को बहुत अधिक परेशानी हो रही है.
अचानक सरकार गठन की कवायद के पीछे क्या
मणिपुर में लागू राष्ट्रपति शासन के बीच अब अचानक सरकार गठन के कवायद की खबर आई है, तो इसके पीछे क्या है? अब चर्चा इसे लेकर शुरू हो गई है. मणिपुर बीजेपी या बीजेपी नेतृत्व, किसी की भी तरफ से इसे लेकर अभी कोई बयान नहीं आया है. राजनीति के जानकार इस कवायद के पीछे मणिपुर का सेंटीमेंट टेस्ट करने की रणनीति को वजह बता रहे हैं. पूर्वोत्तर की पत्रकारिता में वर्षों से सक्रिय जोसफ लेप्चा ने कहा कि धीरे-धीरे ही सही, मणिपुर में हालात पहले के मुकाबले काफी सुधरे हैं. हो सकता है कि बीजेपी की सोच सरकार गठन को लेकर किसी पहल से पहले जनता के मिजाज को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हो लेने की हो.
नया सीएम कौन? बीरेन सिंह या कोई और
मणिपुर में विधानसभा चुनाव 2027 में होने हैं. ऐसे में बीजेपी अगर फिर से सरकार बनाती है, तो पूर्व मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ही सीएम बनेंगे या कोई और? चर्चा इसे लेकर भी हो रही है. जोसफ लेप्चा ने इस पर कहा कि बीरेन सिंह के सीएम बनेंगे, मुझे ऐसा नहीं लगता. राज्यपाल से मिले डेलिगेशन पर गौर करें तो इसकी अगुवाई थोकचोम राधेश्याम सिंह ने की. मीडिया से बा करने भी वही आए. राधेश्याम सिंह भी बीरेन सिंह की ही तरह मैतेई समुदाय से ही हैं. मैतेई विधायकों की संख्या अधिक है और आबादी भी. मैतेई ही बीजेपी के कोर वोटर भी हैं. ऐसे में हो सकता है कि पार्टी इस समाज को नाराज करने का खतरा मोल ना लेकर किसी अंडररेटेड नेता को सीएम बना दे, जिसके संबंध गैर-मैतेई आबादी में भी ठीक हों.
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मणिपुर के अगले सीएम के लिए एक विकल्प गैर मैतेई, गैर कूकी सीएम का भी है. लेकिन ऐसा होगा, इसके आसार ना के बराबर ही हैं. हिंसा की शुरुआत से ही कूकी संगठन सरकार पर एक वर्ग के पक्ष में काम करने का आरोप लगाते आए हैं. अलग-अलग संगठन भी मणिपुर में शांति के लिए बीरेन सिंह के इस्तीफे की मांग करते रहे. बीरेन सिंह तमाम विरोध और खराब हालात के बावजूद सीएम पद पर बने रहे, तो इसके पीछे मैतेई वोटबैंक की ताकत को ही वजह बताया जाता है.
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मणिपुर में सबसे ज्यादा मैतेई विधायक
60 सदस्यों वाली मणिपुर विधानसभा की वर्तमान स्ट्रेंथ 59 विधायकों की है. एक विधायक के निधन के कारण एक सीट रिक्त है. बीजेपी की अगुवाई वाले गठबंधन के 44 विधायक हैं. जातीय हिंसा का दंश झेल रहे मणिपुर में जाति-वर्ग के नजरिये से देखें तो बीजेपी की अगुवाई वाले गठबंधन के कुल विधायकों में 32 मैतेई, तीन मणिपुरी मुस्लिम और नौ नगा विधायक हैं. इस गठबंधन से सात कूकी भी विधानसभा चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थो, जिन्होंने जातीय हिंसा के बाद अपने दल से किनारा कर लिया था. कांग्रेस के सभी पांच विधायक मैतेई वर्ग से हैं. बाकी तीन विधायक कूकी हैं. इस तरह देखें तो मणिपुर विधानसभा में 37 मैतेई विधायक हैं. यह नंबर बहुमत के लिए जरूरी 31 के जादुई आंकड़े से छह अधिक है.