नए कृषि कानूनों को वापस लेने और फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे किसान पीछे हटने को तैयार नहीं हैं. पंजाब और हरियाणा से आए हजारों किसान पिछले 4 दिन से दिल्ली बॉर्डर पर डटे हुए हैं. किसानों ने बुराड़ी जाने से मना कर दिया और वो दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करना चाहते हैं. किसान आंदोलन से दिल्ली की सियासी तपिश बढ़ती नजर आ रही है. ऐसे ही 32 साल पहले किसानों ने दिल्ली के बोट क्लब पर हल्ला बोल कर दिल्ली को ठप कर दिया था. किसानों ने एक बार फिर ठान लिया है कि जब तक सरकार कानून को वापस नहीं लेगी वे डिगेंगे नहीं.
बता दें कि करीब 32 साल पहले 25 अक्टूबर 1988 को किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में भारतीय किसान यूनियन के लोग अपनी मांगों को लेकर दिल्ली में बोट क्लब पर रैली करने वाली थे. किसान बिजली, सिंचाई की दरें घटाने और फसल के उचित मूल्य सहित 35 सूत्री मांगों को लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश से बड़ी संख्या में दिल्ली आ रहे थे, उनको दिल्ली के लोनी बॉर्डर पर पुलिस प्रशासन के द्वारा बल पूर्वक रोकने की कोशिश की गई. किसान नहीं रुके पुलिस ने लोनी बॉर्डर पर फायरिंग की और दो किसानों की जान चली गई. पुलिस की गोली लगने से कुटबी के राजेंद्र सिंह और टिटौली के भूप सिंह की मौत हो गई थी. इसके बावजूद किसान दिल्ली पहुंचे थे.
14 राज्यों के 5 लाख किसान जुटे थे
देश के 14 राज्यों के 5 लाख किसानों ने दिल्ली के वोट क्लब पर पहुंचकर दिल्ली को पूरी तरह से ठप कर दिया था. केंद्र सरकार के खासमखास विभागों की इमारतों के बीच हरे-भरे बोट क्लब पर किसानों का जमघट लग गया था, जिसकी वजह से पूरी दिल्ली ठप सी हो गई थी. इंडिया गेट, विजय चौक और बोट क्लब पर किसान ही किसान नजर आ रहे थे. किसानों ने अपनी बैल गाड़ियां और ट्रेक्टरों को बोट क्लब पर खड़ा कर दिया.
दिल्ली के बोट क्लब पर उन दिनों पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी की पुण्य तिथि (31 अक्टूबर) के अवसर पर होने वाली रैली के लिए रंगाई-पुताई का काम चल रहा था. इस कार्यक्रम के लिए जो मंच बनाया गया था, उस पर भी किसानों ने कब्जा कर जमा लिया था. किसानों ने लुटियंस इलाके में जिस तरह से कब्जा जमाया था, उससे मंत्री से लेकर आधिकारी तक परेशान हो गए थे. महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में 12 सदस्यीय कमेटी ने राष्ट्रपति और लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ से मुलाकात की, कोई निर्णय नहीं हो सका.
किसानों की मांग के आगे झुकी सरकार
महेंद्र सिंह टिकैत ने केंद्र की तत्कालीन राजीव गांधी सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि सरकार उनकी बात नहीं सुन रही इसलिए वे यहां आए हैं. राजपथ से किसानों को हटाने के लिए पुलिस ने 30 अक्टूबर,1988 की रात में किसानों पर जिस तरह लाठी चार्ज कर दिया. इसके बाद महेंद्र सिंह टिकैत ने कहा था, 'किसान बदला नहीं लेता, वह सब सह जाता है, वह तो जीने का अधिकार भर चाहता है, पुलिस ने जो ज़ुल्म किया है, उससे किसानों का हौसला और बढ़ा है. प्रधानमंत्री ने दुश्मन सा व्यवहार किया है. किसानों की नाराजगी सरकार को सस्ती नहीं पड़ेगी.'
सप्ताह भर से ज्यादा तक किसानों ने राजपथ को अपने कब्जे में रखा था. आखिरकार सरकार को किसानों के आगे नतमस्तक होना पड़ा. तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के किसानों के 35 मांगों पर फैसला लेने के आश्वासन देने के बाद वोट क्लब का धरना 31 अक्टूबर 1988 को खत्म हुआ. हालांकि, किसान रैली के चलते राजीव गांधी को अपनी मां इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि की रैली का स्थान बदलना पड़ा. रैली को बोट क्लब के बजाय लालकिला के पीछे वाले मैदान में करनी पड़ी थी.
32 साल पुराना इतिहास दोहरा रहा किसान
दिलचस्प बात है कि 32 साल बाद इतिहास फिर दोहराया जा रहा है. किसान अपनी मांगों को लेकर एक बार फिर दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करना चाहते हैं, लेकिन सरकार ने उन्हें बाहरी दिल्ली के बुराड़ी मैदान में रैली करने की अनुमित दी है. किसान संगठन बिना शर्त सरकार से बातचीत चाहता है. उन्होंने कहा कि बुराड़ी ओपन जेल की तरह है और वह आंदोलन की जगह नहीं है. किसानों ने कहा कि हमारे पास पर्याप्त राशन, हम 4 महीने तक हम रोड पर बैठ सकते हैं. किसानों ने कहा कि हम दिल्ली के 5 मेन इंट्री प्वाइंट को अवरुद्ध करके दिल्ली का घेराव करेंगे.
भारतीय किसान यूनियन के महासचिव धर्मेंद्र सिंह मलिक ने aajtak.in से कहा कि सरकार ने पिछले कुछ बरसों में किसान संगठनों की ताकत को काफी हल्के में लेना शुरू कर दिया था. इसकी वजह भी थी कि पिछले धरने-प्रदर्शनों में किसानों की उतनी ताकत दिख नहीं रही थी, लेकिन दिल्ली के दरवाजे पर पहुंची इस यात्रा में किसानों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही. हम दिल्ली के जंतर मंतर पर रैली करके अपनी बात रखेंगे. किसान तीनों कानून को वापस ले और एमएसपी की गारंटी दे. इससे हम पीछे हटने वाले नहीं है.
किसान दिल्ली को ठप करने की चेतावनी
भारतीय किसान यूनियन के पंजाब अध्यक्ष सुरजीत सिंह फूल ने कहा, 'हमने तय किया है कि हम किसी भी राजनीतिक दल के नेता को अपने मंच पर बोलने की अनुमति नहीं देंगे, चाहे वह कांग्रेस, भाजपा, आप या अन्य दल से हों. हमारी समिति उन संगठनों को बोलने की अनुमति देगी जो हमारा समर्थन करते हैं. उन्हें हमारे नियम का पालन करना होगा.'
बता दें कि मोदी सरकार ने इसी साल सितंबर में कृषि से जुड़े हुए तीन कानून बनाए. सरकार इसे कृषि सुधार में अहम कदम बता रही है, लेकिन किसान संगठन इसके खिलाफ हैं. पीएम नरेंद्र मोदी कह चुके हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य और सरकारी खरीद जारी रहेगी, लेकिन किसानों को इस पर विश्वास नहीं हो रहा है. किसानों को लग रहा है सरकार उनकी कृषि मंडियों को छीनकर कॉरपोरेट कंपनियों को देना चाहती है. इसी के विरोध में किसान पिछले दो महीने से पंजाब में आंदोलन कर रहे हैं और अब वे दिल्ली आकर अपनी आवाज बुलंद करना चाहते हैं. हालांकि, सरकार की ओर से बातचीत करने का प्रस्ताव दिया गया है, जिसे किसानों ने खारिज कर दिया है.