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SYL पर पंजाब-हरियाणा CM की बैठक बेनतीजा, खट्टर बोले- सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं मान रही भगवंत सरकार

सतलुज यमुना लिंक (SYL) नहर का मसला सुलझता नजर नहीं आ रहा है. इस मसले पर बातचीत के लिए बुधवार को दिल्ली में पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों की बैठक हुई, जिसकी अध्यक्षता केंद्रीय जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने की. हालांकि, इस बैठक में भी कोई नतीजा नहीं निकल सका.

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बैठक के दौरान केंद्रीय जल संसाधन मंत्री के साथ हरियाणा और पंजाब के मुख्यमंत्री.
बैठक के दौरान केंद्रीय जल संसाधन मंत्री के साथ हरियाणा और पंजाब के मुख्यमंत्री.

सतलुज यमुना लिंक (SYL) के मसले पर बुधवार को पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और हरियाणा के सीएम मनोहरलाल खट्टर ने मुलाकात की. दिल्ली के श्रम शक्ति भवन में हुई इस बैठक की अध्यक्षता केंद्रीय जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने की.

बैठक के बाद मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि इस मीटिंग में कोई सहमति नहीं बन सकी. उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा है कि एसवाईएल नहर का निर्माण होना चाहिए, लेकिन पंजाब के मुख्यमंत्री और उनके अधिकारियों की टीम इस विषय को एजेंडे पर ही लाने को तैयार नहीं है.

सीएम खट्टर ने आगे कहा कि वे (पंजाब) पानी नहीं होने की बात कह रहे हैं और पानी के बंटवारे पर बात करने को कह रहे हैं, जबकि पानी बंटवारे के लिए अलग से ट्रिब्यूनल बनाया गया है. ट्रिब्यूनल के हिसाब से जो सिफारिश होगी उस हिसाब से पानी बांट लेंगे. 

हरियाणा के मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि पंजाब सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भी स्वीकार नहीं कर रही है, जिसमें 2004 में पंजाब सरकार द्वारा लाए गए एक्ट को निरस्त कर दिया गया है. पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान का कहना है कि 2004 का एक्ट अभी भी मौजूद है, जो कि पूरी तरह से असंवैधानिक है.

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सीएम मनोहर लाल ने कहा कि एसवाईएल नहर बननी चाहिए और हरियाणा इस बारे में सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराएगा. सुप्रीम कोर्ट को बताया जाएगा कि पंजाब एसवाईएल नहर निर्माण के लिए तैयार नहीं है. उन्होंने कहा कि इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट जो निर्णय देगा वो हमें स्वीकार होगा.

मनोहर लाल खट्टर ने स्पष्ट किया कि एसवाईएल हरियाणावासियों का हक है और उन्हें पूरी आशा है कि उन्हें यह हक जरूर मिलेगा. उन्होंने कहा कि हरियाणा के लिए एसवाईएल नहर का पानी बेहद जरूरी है. अब इस मामले में एक टाइम लाइन तय होना जरूरी है, ताकि प्रदेश के किसानों को पानी की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके.

उन्होंने कहा कि सर्वविदित है कि सर्वोच्च न्यायालय के दो फैसलों के बावजूद पंजाब ने एसवाईएल का निर्माण कार्य पूरा नहीं किया है. सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों को लागू करने की बजाए पंजाब ने वर्ष 2004 में समझौते निरस्तीकरण अधिनियम बनाकर इसके क्रियान्वयन में रोड़ा अटकाने का प्रयास किया.

खट्टर ने बताया कि पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के प्रावधान के अंतर्गत भारत सरकार के 24 मार्च 1976 के आदेश के मुताबिक हरियाणा को रावी-ब्यास के फालतू पानी में से 3.5 एमएएफ जल का आबंटन किया गया था. एसवाईएल कैनाल का निर्माण कार्य पूरा न होने की वजह से हरियाणा केवल 1.62 एमएएफ पानी का इस्तेमाल कर रहा है. पंजाब अपने क्षेत्र में एसवाईएल कैनाल का निर्माण कार्य पूरा न करके हरियाणा के हिस्से के लगभग 1.9 एमएएफ जल का गैर-कानूनी ढंग से उपयोग कर रहा है.

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हरियाणा के मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब के इस रवैये के कारण हरियाणा अपने हिस्से का 1.88 एमएएफ पानी नहीं ले पा रहा है. पंजाब और राजस्थान हर साल हरियाणा के लगभग 2600 क्यूसिक पानी का प्रयोग कर रहे हैं. यदि यह पानी हरियाणा में आता तो 10.08 लाख एकड़ भूमि पर सिंचाई होती, प्रदेश की प्यास बुझती और लाखों किसानों को इसका लाभ मिलता. इस पानी के न मिलने से दक्षिणी-हरियाणा में भूजल स्तर भी काफी नीचे जा रहा है. एसवाईएल के न बनने से हरियाणा के किसान महंगे डीजल का प्रयोग करके और बिजली से नलकूप चलाकर सिंचाई करते हैं, जिससे उन्हें हर वर्ष 100 करोड़ रुपये से लेकर 150 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ता है.

सीएम खट्टर ने कहा कि पंजाब क्षेत्र में एसवाईएल के न बनने से हरियाणा में 10 लाख एकड़ क्षेत्र को सिंचित करने के लिए सृजित सिंचाई क्षमता बेकार पड़ी है. हरियाणा को हर वर्ष 42 लाख टन खाद्यान्नों की भी हानि उठानी पड़ती है. यदि 1981 के समझौते के अनुसार 1983 में एसवाईएल बन जाती, तो हरियाणा 130 लाख टन अतिरिक्त खाद्यान्नों व दूसरे अनाजों का उत्पादन करता. 15 हजार प्रति टन की दर से इस कृषि पैदावार का कुल मूल्य 19,500 करोड़ रुपये बनता है.

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वहीं, मीटिंग के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के दफ्तर से बयान जारी किया गया कि राज्य के पास हरियाणा के साथ साझा करने के लिए पानी की एक बूंद भी नहीं है. मुख्यमंत्री ने कहा कि जब नहर के लिए यह पंजाब विरोधी समझौता हुआ था, उस समय राज्य को 18.56 एमएएफ पानी मिल रहा था, जो अब घटकर 12.63 एमएएफ हो गया है. उन्होंने कहा कि अब हमारे पास किसी भी राज्य के साथ साझा करने के लिए अतिरिक्त पानी नहीं है. भगवंत मान ने कहा कि हरियाणा को वर्तमान में सतलुज, यमुना और अन्य नदियों से 14.10 एमएएफ पानी मिल रहा है, जबकि पंजाब को केवल 12.63 एमएएफ पानी मिल रहा है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि क्षेत्रफल में छोटा होने के बावजूद हरियाणा को पंजाब से ज्यादा पानी मिल रहा है और विडंबना यह है कि वह पंजाब की कीमत पर ज्यादा पानी की मांग कर रहा है. भगवंत मान ने कहा कि हम हरियाणा को पानी कैसे दे सकते हैं, जब हमारे ही खेत पानी के लिए तरस रहे हैं.

 

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