उत्तर प्रदेश में उत्तर भारत में किसान आंदोलन और संगठन के प्रणेता चौधरी महेंद्र सिंह की पुण्यतिथि के मौके पर भारतीय किसान यूनियन में दो फाड़ हो गए. नरेश टिकैत और राकेश टिकैत वाली भारतीय किसान यूनियन से जुड़े कई किसान नेताओं ने अलग होकर एक नया संगठन भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक बनाया है. किसान आंदोलन का हिस्सा रहे भारतीय किसान यूनियन के दो फाड़ क्यों हुए? क्या होगा इस नए संगठन का भविष्य. किन बातों पर बिगड़ी बात और अलग हो गए 33 साल के पुराने साथी, आइए समझते हैं.
महेंद्र सिंह टिकैत की पुण्यतिथि के दिन बगावत
पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर लखनऊ तक किसानों के मसीहा कहे जाने वाले महेंद्र सिंह टिकैत की आज पुण्यतिथि है. इसे पुण्यतिथि पर लखनऊ में किसान नेताओं ने बगावत का ऐलान कर नए संगठन का ऐलान कर दिया. भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक के नाम का संगठन अब किसानों की समस्याओं के लिए लड़ाई लड़ेगा. चौधरी राजेंद्र सिंह मलिक की अध्यक्षता और अनिल तालान के संचालन के बीच इस नए संगठन के गठन की घोषणा की गई.
राजेश सिंह चौहान को इसका राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया राजेंद्र सिंह मलिक को संरक्षक बनाया गया. इस संगठन में बिंदु कुमार, कुंवर परमार सिंह, बलराम सिंह, नितिन सिरोही, विक्रम सैनी, सुरेंद्र वर्मा, विमल तोमर, योगेश प्रधान, आदर्श चौधरी, धर्मेंद्र सिंह, महेंद्र रंधावा, सुनील सिंह, राज कुमार गौतम, प्रीतम सिंह, राजेंद्र सिंह, दीपक, नीरज बालियान बलबीर सिंह, पुष्पेंद्र सिंह, शैलू आर्य जैसे कई जाने-माने चेहरे साथ थे.
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राकेश टिकैत ने प्रचार किया
भारतीय किसान यूनियन राजनैतिक के नए अध्यक्ष राजेश सिंह चौहान ने कहा की किसान आंदोलन के बाद उत्तर प्रदेश में हुए चुनाव में संगठन के नेता भागीदारी करने लगे, ईवीएम की सुरक्षा की बात करने लगे, जिसका संगठन के सिद्धांतों से कोई लेना-देना नहीं था. राकेश टिकैत चुनाव के दौरान घूम घूम कर एक पार्टी का प्रचार करने लगे और दूसरी पार्टी का विरोध करने लगे. पार्टी के नेताओं ने राकेश टिकैत अन्य नेताओं के इस राजनैतिक बयान और कदम पर विरोध जताया, लेकिन किसी ने बात नहीं सुनी.
राजेश सिंह चौहान ने आरोप लगाया कि भारतीय किसान यूनियन परिवार की पार्टी बन गई. राष्ट्रीय कार्यकारिणी में 33 साल तक काम करने वाले कार्यकर्ता नहीं परिवार के लोग ही गुपचुप तरीके से शामिल कर लिए गए. वहीं दूसरी तरफ इसमें संगठन के संयोजक हरनाम सिंह वर्मा ने आरोप लगाया कि 13 महीने के किसान आंदोलन में किसानों को कुछ नहीं मिला. चुनाव के दौरान हमारे नेता विपक्षी दल का चेहरा बन गए. घूम घूम कर एक पार्टी के लिए प्रचार कर रहे थे. जबकि यह सभी राजनीतिक बयान और क्रियाकलाप महेंद्र सिंह टिकैत के सिद्धांतों के विपरीत है.
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'जिनकी आस्था नहीं है वह जाएं'
चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश के अफसरों पर सवाल खड़े किए गए. सभी जिलों के डीएम और एसपी को भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता के तौर पर बताया गया जो दुखद था. इस वजह से ही एक अलग संगठन बनाना पड़ा. वहीं दूसरी तरफ राकेश टिकैत ने इसे सरकार के द्वारा करवाया गया काम बताया. राकेश टिकैत का कहना है कि भारतीय किसान यूनियन से टूटकर उत्तर प्रदेश में 8 से 10 संगठन बन चुके हैं जिनकी आस्था नहीं है वह जाने को स्वतंत्र. हैं 15 मई को फिर कुछ लोगों ने सरकार के सामने सरेंडर किया है.
महत्वाकांक्षा की लड़ाई?
दरअसल यह पूरा झगड़ा महत्वाकांक्षाओं का नजर आता है. किसान आंदोलन के दौरान राकेश टिकैत राष्ट्रीय पटल पर बड़ा कद बने और उत्तर प्रदेश के चुनाव में घूम घूम कर बीजेपी के विरोध में दिए गए बयान से भारतीय किसान यूनियन का राजनीतिकरण होता हुआ दिखा. वहीं चर्चा है कि लखीमपुर हिंसा मामले में जिस ताकत के साथ भारतीय किसान यूनियन को लखीमपुर के किसानों के साथ लड़ना चाहिए था वह नहीं लड़ पाई. लखीमपुर में भी कई बार राकेश टिकैत के पहुंचने पर पीड़ित किसानों के परिवारों ने आरोप लगाए. घटना से लेकर केस की पैरवी पर तक सवाल किए.
सरकार का विरोध
ऐसे में भारतीय किसान यूनियन का पूरा केंद्र राकेश टिकैत के इर्द-गिर्द सिमट कर रह गया, दूसरे नेता चर्चा से बाहर हो गए. उत्तर प्रदेश में हुए चुनाव में दोबारा बीजेपी की सरकार आई और यही वजह थी कि नई सरकार के गठन के डेढ़ महीने बाद ही भारतीय किसान यूनियन में टूट हो गई. यह कहते हुए टूट हो गई कि राकेश टिकैत ने चुनाव के दौरान प्रदेश की नौकरशाही पर सवाल खड़े किए, सभी जिलों के डीएम को भारतीय जनता पार्टी का एजेंट बताकर उसकी निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए. लिहाजा अब किसान हितों के लिए भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक नया संगठन आगे की लड़ाई लड़ेगा, जिसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं होगा.