महाराष्ट्र में पिछले तीन हफ्तों से भाषा को लेकर बड़ी राजनीतिक हलचल चल रही है. यह विवाद 2020 में एक समिति के गठन के साथ शुरू हुआ था, जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर से पहली से छठी कक्षा तक हिंदी और मराठी को अनिवार्य करने का फैसला लिया गया था. अप्रैल 2022 में लागू किए गए इस सरकारी प्रस्ताव (जीआर) को लेकर अब सवाल उठ रहे हैं कि इसे वापस लेने की नौबत क्यों आई?