साल था 2015, जनवरी का एक सर्द दिन. उस दिन पीएम मोदी हरियाणा के पानीपत में एक बड़ी जनसभा की और इसी दौरान उन्होंने मंच से बड़ा नारा दिया, 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ'. यह सिर्फ पीएम मोदी की योजना भर नहीं थी, बल्कि उनका एक संकल्प था, एक वादा था कि हर बेटी न सिर्फ इस दुनिया में कदम रखेगी, बल्कि सम्मान के साथ जिएगी और बढ़ेगी भी. यह सपना था कि परिवार बेटी के जन्म से न डरें न घबराएं और न ही उनके प्रति कोई क्रूर कदम उठाएं, बल्कि समाज उन्हें बेटों के बराबर माने, और उसे वह हक मिले जिसकी वह हकदार है.
मकसद साफ था- हर साल लिंगानुपात में कम से कम दो अंकों की बढ़ोतरी हो, लोगों की सोच बदले और भारत की बेटियों को उनका उज्ज्वल भविष्य मिले. लेकिन आज जब इस नारे को दस साल बीत चुके हैं और जब इस ओर नजर जाती है, तब भी ये वादा खोखला सा दिखाई देता है. हरियाणा में बेटियां आज भी गायब हो रही हैं, और यह कोई प्राकृतिक संकट नहीं है, बल्कि एक मूक नरसंहार है.
पहले आंकड़ों पर बात कर लेते हैं. 2024 में हरियाणा में 5,16,402 बच्चे पैदा हुए, लेकिन इनमें से सिर्फ 47.64 प्रतिशत ही बेटियां थीं. यह आंकड़ा सिर्फ एक संख्या नहीं, बल्कि एक चेतावनी है. 2019 में जन्म के समय हरियाणा का लिंगानुपात 923 बेटियां प्रति 1,000 बेटों का था. 2024 आते-आते यह घटकर 910 पर आ गया. हर साल गायब होती ये बेटियां एक सवाल छोड़ती हैं, क्या यह मानव-निर्मित संहार है या कोई स्वास्थ्य संकट? हमने इसकी जड़ तक जाने का फैसला किया. "इंडिया टुडे" की विशेष जांच टीम ने हरियाणा के गांवों, कस्बों और शहरों में दो हफ्ते बिताए, ताकि सच सामने लाया जा सके. जो कहानियां हमें मिलीं, वे दिल दहलाने वाली हैं.
हरियाणा में बेटियों की गूंजती चुप्पी
हरियाणा के आंकड़े डरावने हैं. हर गायब बेटी एक चुराया हुआ भविष्य है. यह सिर्फ संख्याओं की बात नहीं, बल्कि उन सपनों की है जो पैदा होने से पहले ही कुचल दिए जाते हैं. हमने पूजा सोनी से बात की, एक ऐसी महिला, जो इस टूटती व्यवस्था की शिकार हैं. पूजा की कहानी निजी है, दर्दनाक है, और उस सच को उजागर करती है जिससे हम मुंह नहीं मोड़ सकते.

पूजाः एक मूक त्रासदी
पूजा की शादी 2015 में हुई, ठीक उसी साल जब "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" की शुरुआत हुई. ये एक कड़वी विडंबना है कि वह उस अभियान की मिसाल बन गईं, जो बेटियों को बचाने और पढ़ाने का वादा करता था. लेकिन उनकी जिंदगी उम्मीद और निराशा के बीच झूलती रही. उनकी कहानी उस व्यवस्था की खामियों को उजागर करती है, जो उनकी रक्षा के लिए बनी थी.
हिसार पीएनडीटी टीम के प्रमुख डॉ. प्रभु दयाल ने हमें पूजा से मिलने की सलाह दी. दिल्ली से 178 किलोमीटर दूर हिसार में हम उनसे मिले. पूजा एक शर्मीली, चुपचाप रहने वाली लड़की थीं, समाज के उस ढांचे में ढली, जो महिलाओं को बोलने की आजादी नहीं देता. 2015 में उनके माता-पिता ने उनकी शादी के लिए 25 लाख रुपये खर्च किए. उनके पति धर्मेंद्र, जिसे लोग "भोली" भी कहते थे, उसकी हर मांग पूरी की गई. दहेज में एक ह्यूंडई ईओएन कार भी दी गई, जो पहले पूजा के पिता के नाम थी, लेकिन बाद में धर्मेंद्र ने कार अपने नाम करवाने की जिद की, जो आगे चलकर विवाद का कारण बनी. उस वक्त किसी ने इसे खतरे की घंटी नहीं समझा.
शादी का दर्दनाक सच
पूजा की शादीशुदा जिंदगी शुरू से ही तकलीफों से भरी थी. उनकी सास अपने बेटे को छोटी-छोटी बातों पर भड़का कर पूजा को उनके पति से पिटवाती थीं. उनके वैवाहिक जीवन में प्यार का नामोनिशान नहीं था. उनकी एकमात्र उम्मीद थी कि वह एक बेटे को जन्म देंगी. लेकिन शादी के एक साल बाद उनकी पहली बेटी पैदा हुई. दूसरी गर्भावस्था में मारपीट और बढ़ गई. उनके शरीर पर पड़े निशान उस दर्द की गवाही देते हैं. तीसरी गर्भावस्था में उन्हें लिंग परीक्षण के लिए मजबूर किया गया.
एक अपमानजनक और अमानवीय मांग
2022 में उनके पति उन्हें एक खेत के पास जर्जर झोपड़ी में ले गए. वहां किसी ने टेस्ट किया और बताया कि वह फिर बेटी को जन्म देने वाली हैं. पति गुस्से में उन्हें वापस लाया और उनकी मां को साफ कह दिया या तो पूजा को हटाओ या इस बच्ची को खत्म करो. पहली बार पूजा ने हिम्मत दिखाई. अपनी दूसरी बेटी को लेकर वह थाने पहुंचीं, लेकिन वहां पति ने पुलिस से सौदा कर लिया और उनकी बेटी छीन ली गई. फिर भी वह नहीं रुकीं. भारी गर्भावस्था के बावजूद वह बस से रोहतक होते हुए हिसार अपने मायके पहुंचीं. वहां उन्होंने मुस्कान को जन्म दिया, मुस्कान... ऐसा नाम, जो खुशी और उम्मीद का प्रतीक होना चाहिए था.
मुस्कान के साथ जिंदगी की नई शुरुआत
हिसार में उनके छोटे से मकान में हम मिले. वहां उनकी डेढ़ साल की बेटी की किलकारी गूंज रही थी. वह छोटे से घर में दौड़ती-खेलती थी, इस बात से अनजान कि उसे जन्म देने के लिए उसकी मां ने कितना कष्ट सहा है. अपने पति और ससुराल वालों के बर्ताव से पूजा पूरी तरह टूट चुकी थीं, पड़ोस की महिलाएं उनके साथ थीं, जो चाहती थीं कि मीडिया उनकी आवाज बने. पूजा कमजोर और उदास दिख रही थीं. हमें पता चला कि एक हफ्ते पहले उनके पति ने तलाक का नोटिस भेजा था. यह उनकी पहले से बिखरी जिंदगी पर एक और आघात था.

हरियाणा पीएनडीटी विभाग ने उनकी शिकायत पर कार्रवाई की. उनके पति और अल्ट्रासाउंड ऑपरेटर को गिरफ्तार किया गया, लेकिन दोनों को जमानत मिल गई. आज पूजा अकेली हैं. उनके हाथों पर टैटू हैं, एक पर पति का नाम "भोली" और दूसरे पर उनका. ये टैटू उनकी मासूमियत और दर्द का प्रतीक हैं. पड़ोस की महिलाएं चाहती थीं कि वह बोलें, लेकिन पूजा सिर्फ रोती रहीं. अपनी बेटी को देखकर वह फुसफुसाईं, "मैं चाहती हूं कि उन्हें सबसे सख्त सजा मिले." उनकी आवाज टूटी हुई थी, लेकिन उसमें घुला-मिला दर्द, गुस्सा और न्याय की उम्मीद के लिए कातर स्वर को महसूस किया जा सकता था.
दो बेटियां अभी भी पति के परिवार के पास
पूजा खुद को दोष देती हैं. अपनी सौम्य प्रकृति के बावजूद, उन्होंने अपनी बेटियों को बचाने के लिए सब सहा. लेकिन दुखद यह है कि उनकी दो बेटियां पति के परिवार के पास हैं, जिन्हें वह देख भी नहीं सकतीं. दस साल बाद भी "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" का वादा उनके लिए सच नहीं हुआ. उनके माता-पिता ने जो सपने देखे थे, वे चूर-चूर हो गए. पूजा की कहानी सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि उन तमाम बेटियों की है, जिन्हें यह अभियान बचाने में नाकाम रहा.
1994 का प्री-कन्सेप्शन एंड प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक्स (पीसी-पीएनडीटी) एक्ट भ्रूण हत्या रोकने के लिए बनाया गया था. यह लिंग परीक्षण को अपराध मानता है. पहली बार अपराध करने पर 3 साल और दोबारा करने पर 5 साल की सजा का प्रावधान है. लेकिन इसका लागू होना कमजोर है. मुकदमे सालों-साल चलते हैं, पर सजा कम ही मिलती है. 2015 से फरवरी 2025 तक हरियाणा में 1,248 मामले दर्ज हुए. 2001 से 2023 तक 522 मामले कोर्ट में हैं, जिनमें से 299 का फैसला अभी बाकी है. 223 मामलों में से सिर्फ 67 में सजा हुई, 107 में बरी हुए. सजा दर सिर्फ 12 प्रतिशत है. सिस्टम की खामियां अपराधियों को बचाती हैं, जिससे यह धंधा फलता-फूलता है.
हरियाणा की बेटियों को कौन बचा रहा?
"बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" के तहत हरियाणा में छापों पर 6 करोड़ रुपये खर्च हुए. जागरूकता अभियानों पर भी भारी राशि लगाई गई. फिर भी बेटियां गायब हो रही हैं. सरकार, पुलिस और कोर्ट होने के बावजूद यह अपराध क्यों नहीं रुक रहा? इसे बचाने वाला कौन है? हमारी विशेष जांच टीम ने जवाब ढूंढने की ठानी. हमने छिपकर इस काले सच को उजागर करने की कोशिश की. जो सामने आया, वह चौंकाने वाला था.

बेटियों को मिटाने का काला धंधा
हरियाणा में सरकार के छापों और पुलिस की कार्रवाई के बावजूद कुछ लोग अब भी सक्रिय हैं. डॉ. अनंत राम ऐसा ही एक नाम है. वह पांच बार लिंग परीक्षण के आरोपी रहे हैं. जेल गए, फिर छूट गए. 2023 में उनके खिलाफ नई FIR हुई. उन्होंने जमानत मांगी, दावा किया कि उन्होंने लिंग नहीं बताया और मशीन उनके नाम पर नहीं थी. लेकिन कोर्ट ने जमानत खारिज कर दी और 2024 में उनकी गिरफ्तारी हुई. फिर भी, वह जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) से चुनाव लड़े. उनका आपराधिक रिकॉर्ड सवाल उठाता है, ऐसे लोग सत्ता में कैसे पहुंचते हैं? हमारी टीम ने एक छापे की CCTV फुटेज देखी, जिसमें एक विधायक आरोपी को बचाते दिखे. यह हरियाणा का सच है.
गवाह रहित अपराध
भ्रूण हत्या ऐसा अपराध है, जिसमें न सबूत मिलता है, न गवाह. अपराधी कभी कबूल नहीं करते. पीड़ित, वह अजन्मी बेटी, अपनी कहानी कभी नहीं सुना सकती. लेकिन हमारी टीम यह सच सामने लाएगी. हमने उन गलियों में कदम रखा, जहां सौदे होते हैं, जहां अल्ट्रासाउंड मशीनें हथियार बनती हैं, जहां बेटियां सांस लेने से पहले मिटा दी जाती हैं. जो हमने देखा, वह आपको हिला देगा.
अगला भाग: लिंग परीक्षण का काला बाजार
यह काला धंधा कैसे चलता है? सख्त कानूनों के बावजूद दलाल और डॉक्टर कैसे काम करते हैं? उन्हें कौन बचा रहा है? "बेटियों का गायब होना" के दूसरे भाग में हम इस काले बाजार का खुलासा करेंगे. सच सामने आएगा. इसके लिए हमारे साथ बने रहें.