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'रोहिंग्याओं को पूरा सम्मान दो, 50 लाख मुआवजा और रहने की परमिट भी...', SC में जनहित याचिका दायर

सुप्रीम कोर्ट में दायर नई रिट याचिका में याचिकाकर्ता ने दावा किया कि पुलिस ने 43 रोहिंग्या शरणार्थियों को गिरफ्तार कर लिया, जिसके बाद भारत सरकार ने उन्हें जबरन पोर्ट ब्लेयर के रास्ते म्यांमार भेज दिया. याचिकाकर्ता ने मांग की है कि रोहिंग्याओं को वापस बुलाकर सम्मान, 50 लाख रुपये मुआवजा और भारत में रहने का परमिट दिया जाए.

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सुप्रीम कोर्ट. (फाइल फोटो)
सुप्रीम कोर्ट. (फाइल फोटो)

देश में रोहिंग्या शरणार्थियों का मुद्दा जोर पकड़ता जा रहा है. इसी बीच सुप्रीम कोर्ट में एक नई रिट याचिका दायर की गई है, जिसमें दावा किया गया है कि पुलिस ने 43 रोहिंग्या शरणार्थियों को हिरासत में ले लिया और भारत सरकार ने उन्हें जबरन पोर्ट ब्लेयर के रास्ते म्यांमार भेज दिया. साथ ही याचिकाकर्ता ने पीड़ितों को वापस बुलाकर सम्मान देने, 50 लाख का मुआवजा और उनके रहने की परमिट देने की भी मांग की है. 

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, याचिका में कहा गया है कि भारत सरकार द्वारा डिपोर्ट किए गए शरणार्थियों में महिला, बच्चे और बुजुर्ग शामिल हैं. जिन्हें म्यांमार के पास अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा के पास छोड़ दिया गया.

31 जुलाई को होगी मामले की सुनवाई

याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग (UNHCR) कार्डधारी शरणार्थियों के एक ग्रुप को 7 मई की देर रात पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और 8 मई को मामले की सुनवाई होने के बावजूद उन्हें डिपोर्ट कर दिया. हालांकि, अदालत ने कोई अंतरिम निर्देश पारित किए बिना मामले को 31 जुलाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया.

न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की सुप्रीम कोर्ट की पीठ वर्तमान में रोहिंग्या शरणार्थियों के निर्वासन और उनके रहन-सहन की स्थिति से संबंधित मामलों की सुनवाई कर रही है.

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वहीं, दिल्ली में दो रोहिंग्या शरणार्थियों ने एक नई जनहित याचिका दायर की है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि उनके समूह के कुछ शरणार्थियों को दिल्ली पुलिस ने बायोमेट्रिक डेटा एकत्र करने के बहाने गिरफ्तार किया था.

अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा पर छोड़े शरणार्थी

गिरफ्तारी के बाद उन्हें विभिन्न पुलिस थानों में रखा गया. इसके बाद उन्हें पोर्ट ब्लेयर ले जाया गया, जहां उन्हें जबरन नौसेना के जहाजों पर चढ़ा दिया गया. उनके हाथ बांध दिए गए और आंखों पर पट्टी बांध दी गई. उनमें महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग शामिल हैं. 

याचिका में आरोप लगाया गया है कि शरणार्थियों को म्यांमार के पास अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा के पास छोड़ दिया गया था. जिससे शरणार्थियों को तैरकर किनारे पर जाने को मजबूर होने पड़ा.

लाइव लॉ के अनुसार, याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि जबरन निर्वासन के दौरान बच्चों को उनकी मां से अलग कर दिया गया और परिवारों के सदस्यों को बांट दिया गया.

50 लाख का मुआवजा देने की मांग

याचिकाकर्ताओं ने अन्य बातों के अलावा भारत सरकार को निर्देश देने की मांग की है कि वह UNHCR कार्ड वाले रोहिंग्या को गिरफ्तार या हिरासत में न ले, उनके साथ सम्मान और गरिमा के साथ पेश आए और ये सुनिश्चित करें कि किसी भी तरह से उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन न हो.

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उन्होंने रोहिंग्या निर्वासितों में से प्रत्येक को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने और घरेलू शरणार्थी नीति के अनुसार यूएनएचसीआर कार्डधारकों को निवास परमिट जारी करने की फिर से शुरुआत करने की भी मांग की है.

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