पाकिस्तान की पावरफुल खुफिया एजेंसियों पर पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और उनकी पार्टी से संबंधित मामलों में मनमुताबिक फैसले हासिल करने के लिए अदालत पर दबाव बनाने के आरोप लगे हैं. इस संबंध में कोर्ट ने प्रधानमंत्री कार्यालय को निर्देश जारी किया है. कोर्ट ने कहा है कि पीएम यह सुनिश्चित करे कि आईएसआई, मिलिट्री इंटेलिजेंस और इंटेलिजेंस ब्यूरो जैसी एजेंसियां अपने मुताबिक फैसले हासिल करने के लिए अदालत पर दबाव न बनाएं.
दरअसल, कई जजों ने ऐसी घटनाओं की शिकायत की है, जहां इन एजेंसियों ने विभिन्न तरीकों से न्यायिक परिणामों को प्रभावित करने की कोशिश की, जिसमें उन पर या उनके परिवार के सदस्यों पर दबाव डालना भी शामिल है.
खुफिया एजेंसियां पीएम के अधीन
आरोपों के जवाब में, लाहौर हाई कोर्ट ने प्रधानमंत्री कार्यालय को निर्देश जारी किए हैं, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि खुफिया एजेंसियां प्रधानमंत्री के अधीन आती हैं और उन्हें न्यायिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.
कोर्ट ने एटीसी जजों को अपने फोन पर कॉल-रिकॉर्डिंग एप्लिकेशन का इस्तेमाल करने का भी निर्देश दिया है ताकि कानूनी कार्यवाही को प्रभावित करने के लिए खुफिया एजेंसियों द्वारा की गई कोशिशों का डॉक्यूमेंटेशन किया जा सके.
चीफ जस्टिस को जजों ने लिखी चिट्ठी
लगभग सभी - इस्लामाबाद हाई कोर्ट के आठ में से छह जज - और पंजाब के आतंकवाद विरोधी कोर्ट के कुछ जजों ने पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश और लाहौर हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को चिट्ठी लिखकर उनका ध्यान इस घटना पर आकर्षित किया है. कोर्ट ने कहा कि इन दबवों की वजह से जज न्याय देने में बाधा आ रही है.
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ये कार्रवाई विभिन्न जजों और राजनीतिक हस्तियों द्वारा ज्यूडिशियरी में बाहरी हस्तक्षेप और राजनीतिक लाभ के लिए कानूनी निर्णयों में हेरफेर करने की कोशिशों के बारे में उठाई गई चिंताओं के बीच की गई है. इन मामलों का खुलासा होने के बाद कुछ लोगों ने इन कार्रवाइयों को न्याय देने बाधा डालने की एक जानबूझकर की गई रणनीति बताया है.