'वन नेशन, वन इलेक्शन' (एक देश,एक चुनाव) पर विचार करने के लिए बनी उच्च स्तरीय समिति ने बताया कि इस प्रस्ताव को लेकर 32 राजनीतिक पार्टियों ने समर्थन दिया, जबकि 15 पार्टियों ने इसका विरोध किया. इस उच्च स्तरीय समिति की अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने की थी. रामनाथ कोविंद ने अक्टूबर में 7वें लाल बहादुर शास्त्री स्मृति व्याख्यान के दौरान कहा कि विरोध करने वाली 15 पार्टियों में से कई ने पहले कभी न कभी 'वन नेशन, वन इलेक्शन' के विचार का समर्थन किया था.
गुरुवार को केंद्रीय कैबिनेट ने 'वन नेशन, वन इलेक्शन' को लागू करने के लिए बिलों को मंजूरी दे दी. इन बिलों को संसद के चल रहे शीतकालीन सत्र में पेश किए जाने की संभावना है. समिति ने अपनी रिपोर्ट मार्च में राष्ट्रपति को सौंपी थी.
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रिपोर्ट के अनुसार कुल 47 पार्टियों ने 'वन नेशन, वन इलेक्शन' पर अपने विचार रखें, जिनमें से 32 पार्टियों ने एक साथ चुनाव कराने के विचार का समर्थन किया. इन पार्टियों ने इसे संसाधनों को बचाने, सामाजिक सौहार्द बनाए रखने और आर्थिक विकास को गति देने वाला बताया.
15 पार्टियों ने कहा कि यह संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन कर सकता है, लोकतंत्र और संघीय ढांचे के खिलाफ हो सकता है, क्षेत्रीय पार्टियों को कमजोर कर सकता है और राष्ट्रीय पार्टियों के दबदबे को बढ़ा सकता है. कुछ ने इसे राष्ट्रपति प्रणाली की ओर बढ़ने वाला कदम बताया.
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राष्ट्रीय पार्टियों में BJP और National People’s Party (NPP) ने प्रस्ताव का समर्थन किया, जबकि कांग्रेस, AAP, BSP और CPI(M) ने विरोध किया. राज्य स्तरीय पार्टियों में DMK, तृणमूल कांग्रेस, AIMIM, और समाजवादी पार्टी ने इसका विरोध किया. वहीं AIADMK, शिवसेना, BJD और JD(U) ने इसे अपना समर्थन दिया.
अन्य दलों में भारत राष्ट्र समिति, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, जम्मू एंड कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस, जनता दल (सेक्युलर), झारखंड मुक्ति मोर्चा, केरल कांग्रेस (एम), नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, रेवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट, तेलुगु देशम पार्टी, और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ने अपनी राय नहीं दी.
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बता दें कि 2019 की ऑल पार्टी मीटिंग में कुल 19 पार्टियां शामिल हुई थीं. उनमें से 16 ने एक साथ चुनाव के पक्ष में राय दी थी. केवल CPI(M), AIMIM और RSP ने इसका विरोध किया था.