भारत में प्रतिबंधित पीएफआई के नेताओं और कैडरों द्वारा रची गई आपराधिक साजिश से संबंधित मामले में आगे की जांच पूरी होने पर, युवाओं को भर्ती करने, उन्हें आतंक और हिंसा की घटनाओं को अंजाम देने के लिए हथियार-प्रशिक्षण देने के लिए, राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने एक सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर की है. निजामाबाद पीएफआई मामले में एनआईए की विशेष अदालत में पांच आरोपियों के खिलाफ 16 मार्च को चार्जशीट दाखिल की गई.
शेख रहीम उर्फ अब्दुल रहीम, शेख वाहिद अली उर्फ अब्दुल वहीद अली, जफरुल्ला खान पठान, शेख रियाज अहमद और अब्दुल वारिस नाम के 5 आरोपियों पर आईपीसी की धारा 120बी, 153ए और धारा 13(1)(बी) और यूए (पी) अधिनियम, 1967 के 18, 18 ए और 18 बी के तहत चार्जशीट दाखिल की गई है. बता दें कि इससे पहले 2022 में, एनआईए ने तेलंगाना पुलिस से मामले की जांच अपने हाथ में लेने के बाद दिसंबर में मामले में 11 आरोपियों के खिलाफ अपनी पहली चार्जशीट दायर की थी.
आरोपी प्रशिक्षित पीएफआई कैडर हैं, जो मुस्लिम युवाओं को भड़काने और कट्टरपंथी बनाने, उन्हें पीएफआई में भर्ती करने और विशेष रूप से आयोजित पीएफआई प्रशिक्षण शिविरों में हथियारों का प्रशिक्षण देने में शामिल पाए गए थे. इसका उद्देश्य 2047 तक देश में इस्लामिक शासन स्थापित करने की साजिश को आगे बढ़ाते हुए हिंसक आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देना था. इन पीएफआई कैडरों ने धार्मिक ग्रंथों की गलत व्याख्या की और घोषणा की कि भारत में मुसलमानों की पीड़ा को कम करने के लिए जिहाद का हिंसक रूप आवश्यक है.
पीएफआई में भर्ती होने के बाद, मुस्लिम युवाओं को आरोपी पीएफआई कैडरों द्वारा आयोजित प्रशिक्षण शिविरों में भेजा जाता था, जहां उन्हें घातक हथियारों के इस्तेमाल का प्रशिक्षण दिया जाता था, ताकि वे किसी के महत्वपूर्ण शरीर के अंगों जैसे गले, पेट, सिर पर हमला करके उनको मार सकें. विभिन्न राज्य पुलिस इकाइयों और राष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा की गई जांच के दौरान हिंसक गतिविधियों में शामिल होने के बाद पीएफआई और इसके कई सहयोगियों को सितंबर 2022 में गृह मंत्रालय द्वारा एक 'गैरकानूनी संघ' घोषित कर बैन कर दिया गया था.