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एक ने मांगा था इस्तीफा तो दूजे ने छोड़ा था 17 साल पुराना साथ... नायडू-मोदी-नीतीश के रिश्तों की कहानी

2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को 292 सीटें मिली हैं. लगातार तीसरी बार एनडीए की सरकार तो बनने जा रही है. लेकिन बीजेपी बहुमत से दूर है. इसलिए एनडीए की सरकार पांच साल चलाने के लिए अब प्रधानमंत्री मोदी को चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी और नीतीश कुमार की जेडीयू के साथ की जरूरत होगी.

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पीएम मोदी, चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार. (फाइल फोटो)
पीएम मोदी, चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार. (फाइल फोटो)

नरेंद्र मोदी को बतौर प्रधानमंत्री पांच साल सरकार चलानी है तो उन्हें चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के साथ की जरूरत होगी. वो इसलिए क्योंकि 2014 और 2019 में अपने दम पर बहुमत लाने वाली बीजेपी इस बार 272 का आंकड़ा पार नहीं कर सकी. 

543 सीटों वाली लोकसभा में सरकार में बने रहने के लिए कम से कम 272 सीटें चाहिए. बीजेपी के पास इस बार 240 सीटें ही हैं. हालांकि, एनडीए के पास 292 सीटें हैं, जो बहुमत से 20 ज्यादा है.

एनडीए में सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी है. इसके बाद चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) है, जिसके 16 सांसद हैं. तीसरे नंबर पर नीतीश कुमार की जेडीयू है, जिसके पास 12 सीट हैं. यानी, नायडू और नीतीश के पास कुल 28 सांसद हैं. लिहाजा, एनडीए की सरकार बनी रहे, इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दोनों का साथ बहुत जरूरी है.

अभी तक तो टीडीपी और जेडीयू, दोनों ही एनडीए के साथ होने की बात कह रहे हैं. नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू, दोनों ही एनडीए की बैठक में भी हैं.

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एन चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार, दोनों के ही रिश्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं. दोनों ही एनडीए का साथ छोड़ चुके थे और लोकसभा चुनाव से ऐन पहले ही वापस गठबंधन में शामिल हुए थे. ऐसे में जानते हैं कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के पीएम मोदी से कैसे रिश्ते रहे हैं.

मोदी-नीतीश की जोड़ी

मोदी और नीतीश के बीच रिश्ते काफी पहले से ही उतार-चढ़ाव भरे रहे थे. नीतीश को डर बना रहता था कि मोदी का साथ उनके वोटरों को नाराज न कर दे. इसलिए 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान नीतीश कुमार ने बिहार में मोदी को प्रचार करने के लिए आने नहीं दिया था. इसके बाद 2010 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी नीतीश ने मोदी को बिहार में प्रचार करने नहीं दिया था.

जून 2010 में पटना में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक होनी थी. इससे पहले पटना के अखबारों में विज्ञापन छपे, जिसमें नरेंद्र मोदी को नीतीश कुमार के साथ हाथ मिलाते हुए दिखाया गया था. इससे नीतीश इतने नाराज हुए कि उन्होंने बीजेपी नेताओं के लिए डिनर का प्रोग्राम कैंसिल कर दिया था. इतना ही नहीं, इसके बाद नीतीश ने कोसी बाढ़ राहत के लिए गुजरात सरकार से मिला पांच करोड़ रुपये का चेक भी लौटा दिया था.

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नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के खट्टे रिश्ते खुलकर 2013 में सामने आए थे. सितंबर 2013 में बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया तो नीतीश इससे नाराज हो गए.

(फाइल फोटो-PTI)

जून 2013 में नीतीश कुमार ने एनडीए का साथ छोड़ दिया. बीजेपी और जेडीयू 17 साल से साथ थे. गठबंधन से अलग होने का ऐलान करते हुए नीतीश ने कहा था कि हम अपने मूल सिद्धांतों से समझौता नहीं कर सकते. उन्होंने ये भी कहा था कि उन्हें गठबंधन से अलग होने के लिए मजबूर किया गया.

2014 का लोकसभा चुनाव नीतीश ने अकेले लड़ा. इससे नीतीश की जेडीयू को खासा नुकसान पहुंचा. हार की जिम्मेदारी लेते हुए नीतीश ने मई 2014 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद 2015 का विधानसभा चुनाव उन्होंने लालू यादव की आरजेडी के साथ मिलकर लड़ा था. नीतीश-लालू की जोड़ी चल पड़ी और बिहार मे जेडीयू-आरजेडी की सरकार बनी. लेकिन दो साल बाद ही जुलाई 2017 में नीतीश पलटी मारते हुए दोबारा एनडीए में आ गए.

एनडीए में आने के बाद 2019 का लोकसभा और 2020 का विधानसभा चुनाव उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा. 2020 में बिहार में एनडीए की सरकार बनी, लेकिन फिर अगस्त 2022 में उन्होंने पलटी मारी और आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बनाई.

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इसी साल जनवरी में नीतीश कुमार ने यूटर्न लेते हुए आरजेडी का साथ छोड़ा और फिर एनडीए में आ गए.

मोदी-नायडू की दोस्ती

नीतीश की तरह ही मोदी और चंद्रबाबू नायडू की दोस्ती भी उतार-चढ़ाव भरी रही है. 2018 तक नायडू की टीडीपी एनडीए का हिस्सा थी. एनडीए से अलग होने के बाद नायडू की टीडीपी ने मार्च 2018 में मोदी सरकार के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव भी पेश किया था. हालांकि, ये प्रस्ताव गिर गया था.

2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी और नायडू के बीच कई बार तीखी बयानबाजी भी हुई थी. गठबंधन से अलग होने के कारण पीएम मोदी ने नायडू को 'यूटर्न बाबू' कहा था.

इतना ही नहीं, 2002 के गुजरात दंगों के बाद नायडू उन नेताओं में से एक थे, जिन्होंने सबसे पहले नरेंद्र मोदी से इस्तीफा मांगा था. तब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और गुजरात दंगों के कारण उन पर इस्तीफे का दबाव बढ़ गया था. 

(फाइल फोटो-PTI)

2002 के गुजरात दंगों का जिक्र करते हुए 2019 की एक चुनावी रैली में नायडू ने कहा था, 'मैं पहला व्यक्ति था, जिसने उनका इस्तीफा मांगा था. इसके बाद कई देशों ने उनकी एंट्री पर बैन लगा दिया था. प्रधानमंत्री बनने के बाद वो एक बार फिर अल्पसंख्यकों पर हमला करने की कोशिश कर रहे हैं.'

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हालांकि, 2019 के लोकसभा और आंध्र विधानसभा चुनाव में हार के बाद नायडू ने कई बार कथित रूप से एनडीए में शामिल होने की कोशिश की थी. माना जाता है कि नायडू ने जो कुछ भी बयानबाजी की थी, उसे लेकर मोदी टीडीपी को एनडीए में लाना नहीं चाहते थे. लेकिन एक्टर से राजनेता बने पवन कल्याण मोदी और नायडू को करीब लेकर आए. आखिरकार चुनाव से ऐन पहले मार्च में टीडीपी एनडीए में शामिल हो गई. 

मोदी को नायडू-नीतीश की जरूरत क्यों?

सरकार में बने रहने के लिए 272 सीटें जरूरी हैं. बीजेपी की 240, टीडीपी की 16 और जेडीयू की 12 सीटें मिलाकर 268 का आंकड़ा पहुंचता है. बाकी 24 सीटें दूसरी पार्टियों की हैं. अगर एक भी पार्टी साथ छोड़ती है तो एनडीए के पास बहुमत तो रहेगा, लेकिन सरकार कमजोर हो जाएगी.

अगर टीडीपी साथ छोड़ती है तो एनडीए के पास 276 सांसद बचेंगे. सरकार बहुमत में तो रहेगी, लेकिन जादुई आंकड़े से कुछ सीटें ही ज्यादा बचेंगी.

इसी तरह अगर नीतीश की जेडीयू अलग होती है तो एनडीए के पास 280 सीटें बचेंगी. ऐसी स्थिति में भी एनडीए के पास ही बहुमत रहेगा, लेकिन सरकार कमजोर और विपक्ष और मजबूत हो जाएगा.

लेकिन अगर दोनों पार्टियां साथ छोड़ देती हैं तो एनडीए सरकार बहुमत खो देगी. टीडीपी और जेडीयू के पास 28 सांसद हैं और दोनों के जाने का मतलब होगा एनडीए के पास 264 सीटें बचना. यानी, बहुमत से चार सीटें कम.

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बहरहाल, नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है. चुनाव नतीजे आने के बाद बुधवार को एनडीए की बैठक हो रही है. नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू भी इसमें शामिल होंगे. इसी बैठक में सरकार चलाने की आगे की रणनीति पर चर्चा होगी.

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