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मृत्यु की बहन लेकिन मोक्ष की देवी... पुराणों में गंगा से भी अधिक क्यों बताया गया है यमुना नदी का महत्व

यमुना जब प्रयागराज में गंगा से मिलती है तो इस स्थान यानी संगम क्षेत्र के महत्व को कई गुना बढ़ा देती है. तब यह एक स्थान उन दो नदियों का कृपा पात्र बन जाता है, जिनका अपना अलग-अलग महत्व है, लेकिन दोनों के महत्व का लाभ एक साथ मिल जाता है. महाकुंभ में जब संगम के जल में डुबकी लगाई जाती है तो आस्था कहती है कि गंगा-यमुना का दोनों का मिला हुआ यह जल उन्हीं ईश्वरीय तत्व के और निकट ले जाएगा.

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पुराणों में यमुना नदी का गंगा के ही समान बताया गया है महत्व
पुराणों में यमुना नदी का गंगा के ही समान बताया गया है महत्व

महाकुंभ के आयोजन से प्रयागराज में भक्ति और आस्था की अद्भुत छटा बिखरी हुई है. गंगा-यमुना और सरस्वती के संगम स्थल पर लगने वाला यह महामेला अपनी इन तीन नदियों के कारण भी सांस्कृतिक-पौराणिक तौर पर अधिक महत्व वाला बन जाता है. ये तीनों ही नदियां वेदों-पुराणों में बहुत महत्वपूर्ण बताई गई हैं और यह यह विशाल उपजाऊ मैदानी क्षेत्रों का निर्माण करने के साथ ही संस्कृतियों की, सभ्यताओं की और नगरीय विकास की जननी रही हैं. 

जहां सरस्वती विशुद्ध वैदिक नदी है जिसके किनारे वेद लिखे गए थे. वहीं गंगा, ब्र्हमा के कमंडल से निकली, भगवान विष्णु का चरणामृत और शिव महादेव की जटा में स्थान पाने वाली नदी है, जिसके किनारे-किनारे कई पौराणिक गाथाएं संपन्न हुई हैं. अब इसके बाद आती हैं यमुना नदी. कहते हैं कि यह गंगा से भी अधिक पौराणिक महत्व की नदी है और कई विवरणों में इसे गंगा से भी प्राचीन माना गया है. हालांकि यमुना नदी की पवित्रता और उसके निर्मल जल की मान्यता द्वापर युग में तब अधिक रही है, जब श्रीकृष्ण ने इस नदी को अपनी लीलाओं का साक्षी बनाया. 

कृष्ण की लीलाओं की साक्षी रही है यमुना
वह इसके किनारे बसे नगर में जन्म लेते हैं, इसके किनारे बसे वनों में पले-खेले, जिन भी गांवों से होते हुए यमुना नदी का जल गया वहां-वहां कृष्ण की मौजूदगी रही. गोकुल, वृंदावन, बरसाना, गोवर्धन जैसे तमाम ऐसे स्थल हैं जो आज पौराणिक महत्व के हैं और श्रीकृष्ण के जीवन-दर्शन के साक्षी हैं. यमुना नदी, कालिंदी नाम से श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में से एक हैं. इसी यमुना का प्रयागराज में गंगाजी के साथ मिलन होता है और यह स्थल तीर्थराज के नाम से जाना जाता है. 

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यमुना

हिमालय के कलिंद पर्वत से निकली है यमुना
हिमालय की कलिंद पर्वत शृंखला से निकलने वाली यमुना नदी का एक नाम कालिंदी भी है. पुराणों में इसे सूर्य देव की पुत्री और यम की बहन कहा गया है. कहते हैं कि पहले उनका जन्म मानवी रूप में हुआ था, लेकिन बाद की परिस्थितियों के कारण वह नदी में परिवर्तित हो गई थीं. ऋग्वेद के संवाद सूक्त में यमुना का जिक्र यम के साथ किया गया है, जहां उनका असली नाम यमी बताया गया है.
ऋग्वेद के संवाद सूक्त में यम और उनकी बहन यमुना (यमी) के बीच होने वाली बातचीत भी दर्ज है. ये संवाद सूक्त भारतीय व्यवस्था में परिवार के मूल्यों को बताता है और इसके साथ ही भाई-बहन के बीच रिश्तों की जो पवित्रता होती है उसे भी अंडरलाइन भी करता है. 

ऋग्वेद में है यमुना का वर्णन
ऋग्वेद में यम-यमी की इस कथा को लेकर वेद पंडितों में कई तरह के विरोधाभास भी हैं. असल में एक बार यमराज, यमी के घर जाते हैं. यमी और यम के पिता विवस्वान यानी सूर्यदेव ही हैं, लेकिन अपने भाई से हमेशा अलग रही यमी उन्हें प्रेमी मान लेती है. जब यम, यमी के घर पहुंचते हैं तो वह उनसे अपने प्रेम का प्रस्ताव रखती है. तब यम उसे बताते हैं कि हम एक ही पिता और एक ही मां की संतानें हैं. तुम्हारी माता संध्या ही मेरी भी माता हैं. इसलिए आप मुझसे प्रेम का प्रस्ताव मत रखिए. यम की बात सुनकर यमी को बहुत निराशा होती है और वह पश्चाताप करने लगती हैं. ऋग्वेद में यम के इस निर्णय को बहुत ही महानता के साथ देखा गया है और यही कहानी भाई-बहन के बीच संबंधों की मर्यादा का उदाहरण भी बनती है.  

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ओ चित्सखायं सख्या ववृत्यां तिरः पुरू चिदर्णवं जगन्वान्
पितुर्नपातमा दधीत वेधा अधि क्षमि प्रतरं दीध्यानः ।। 1 ।।

न ते सखा सख्यं वष्ट्येतत्सलक्ष्मा यद्विषुरूपा भवाति
महस्पुत्रासो असुरस्य वीरा दिवो धर्तार उर्विया परि ख्यन् ।। 2 ।।

उशन्ति घा ते अमृतास एतदेकस्य चित्त्यजसं मर्त्यस्य
नि ते मनो मनसि धाय्यस्मे जन्युः पतिस्तन्व१मा विविश्याः ।। 3 ।।

न यत्पुरा चकृमा कद्ध नूनमृता वदन्तो अनृतं रपेम
गन्धर्वो अप्स्वप्या च योषा सा नो नाभिः परमं जामि तन्नौ ।। 4 ।।

यम और यमी कि इस कथा को पुराणों में भी अलग-अलग संदर्भों में बताया गया है. विष्णुपुराण के मुताबिक, यम एक दिन अपनी बहन यमी के घर पहुंचे. भागवत कथा के अनुसार जिसके दरवाजे यम (यानी मृत्यु) खुद पहुंच जाए तो वह कहां खुश होता है, लेकिन इसके उलट यमी अपने भाई को देखकर बहुत प्रसन्न हुई. यमी ने यम को बहुत आदर से आसन दिया. उसे पकवान बनाकर खिलाए और उसे भोजन आदि से बहुत संतुष्ट किया.

पहली बार अपनी ऐसी आवभगत देखकर यम बहुत प्रसन्न हुए और यमी से वर मांगने के लिए कहा. यमी ने अपने लिए कुछ नहीं मांगा बल्कि कहा कि जो भी बहन आज के दिन अपने भाई को इस तरह भोजन कराए, उसका अपने घर में स्वागत करे उसे काल का डर कभी न लगे. यम ने भी कहा जो भी भाई, आज के दिन अपनी बहन के घर जाकर उसे आदर-सत्कार देंगे और उसका ख्याल रखेंगे उन्हें अकाल मृत्यु का भय नहीं लगेगा.

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ऐसे नदी में बदल गई यमुना
पुराणों में यमुना नदी के बनने की कहानी भी यम-यमी के इस मिलन से ही निकलती दिखती है. जब यम ने यमी को बताया कि वह उसका भाई है और इसलिए वह यमी का प्रेम नहीं अपना सकता तो यमी को बहुत दुख होता है. वह पछतावा करने लगती है. धीरे-धीरे उसकी देह गलकर जल में बदलती जाती है और इसी जल की धारा से यमुना नदी निकलती है. यमुना नदी की प्राचीनता गंगा से बहुत पुरानी है. यम-यमी की इस कथा के बाद दीपावली के बाद पड़ने वाली यम द्वितीया के दिन का काफी महत्व है. इस दिन भाई-बहन के एक साथ यमुना स्नान का महत्व है और नदी किनारे ही कुछ भोजन बनाकर खिलाने की मान्यता है. उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में ये परंपरा चली आ रही है. 

ब्रज संस्कृति की जननी है यमुना नदी
भुवनभास्कर सूर्य इसके पिता, मृत्यु के देवता यम इसके भाई और भगवान श्री कृष्ण इसके पति स्वीकार्य किये गये हैं. जहां भगवान श्री कृष्ण ब्रज संस्कृति के जनक कहे जाते हैं, वहीं यमुना इसकी जननी मानी जाती है. इस प्रकार यह सच्चे अर्थों में ब्रजवासियों की माता है. अतः ब्रज में इसे यमुना मैया कहते हैं. ब्रह्म पुराण में यमुना के आध्यात्मिक स्वरूप का स्पष्टीकरण करते हुए विवरण प्रस्तुत किया है - "जो सृष्टि का आधार है और जिसे लक्ष्णों से सच्चिदनंद स्वरूप कहा जाता है, उपनिषदों ने जिसका ब्रह्म रूप से गायन किया है, वही परमतत्व साक्षात् यमुना है. गौड़िय विद्वान श्रीरूप गोस्वामी ने यमुना को साक्षात् चिदानंदमयी बताया है. चिदानंदमयी का अर्थ है, जिसके दर्शन करने भर से आत्मा को सच्चा आनंद प्राप्त होता है. यमुना नदी को गंगा के ही समान माता का दर्जा मिला हुआ है. 

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यमुना

जिस तरह से स्नान, स्तुति और आचमन के लिए गंगा जल का महत्व है, ठीक उसी तरह यमुना नदी भी अपना खास महत्व रखती है. गंगा की ही तरह यह भी तीर्थों की नगरी का केंद्र रही है. इसके अलावा विष्णु अवतार श्रीकृष्ण की लीलाओं में सहयोगी-साक्षी रहने के कारण इसका भी जल हरि चरणामृत के समान माना गया है. पुराणों में इसे कई स्थानों पर वंदनीय कहा गया है.
“नमामि यमुनां देवीं सुरासुरनमस्कृताम्।
पापहारिणीं पुण्यां लोकानां त्राणकारिणीम्।"

स्कंदपुराण में यमुना की वंदना करते हुए कहा गया है कि, यमुना में स्नान करने वाले व्यक्ति को भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है और सभी पाप समाप्त हो जाते हैं.
"कालिंद्या वरदा गंगा त्रिपथगा विष्णुपादवी।
स्नातं यत्र हरिः स्वायं धर्मं तत्र करोति सः।"

वहीं पद्मपुराण में भी इस नदी को पाप नाशिनी, शोक हारिणी और कल्याणी कहा गया है. यमुना के जल का संपर्क व्यक्ति के सभी दुःखों को समाप्त करता है। इसे स्मरण मात्र से भी पापों का नाश होता है.

"यमुना जगत् त्राण कारणं कलिमलापहम्।
स्नानमात्रेण पापघ्नीं नमामि हरिणीं शुभाम्।"
“यमुनाजलसम्पर्कात् यो भवेद्दुःखमोक्षणम्।
स्मरन्ति यमुनां भक्त्या पापानामाशु नाशनम्।”

स्कंदपुराण में ही एक स्थान पर यमुना को गंगा से भी अधिक पवित्र माना गया है. इसमें कहा गया है कि गंगा के दर्शन से पाप नष्ट होते हैं, स्पर्श से पातक समाप्त होते हैं, लेकिन यमुना में स्नान से तो सीधा मोक्ष की प्राप्ति होती है.

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“गङ्गायां दर्शनात् पापं स्पर्शनात् पातकं भवेत्।
यमुनायां तु यत्स्नानं मुक्तिः साक्षात् भवेद् ध्रुवम्।”

महाभारत में भी हुआ है उल्लेख
महाभारत के वनपर्व में यमुना को पवित्रता की देवी और समस्त जीवों के उद्धार का स्रोत कहा गया है. यह भी उल्लेख है कि यमुना के तट पर तपस्या करने वाले ऋषियों को महान पुण्य की प्राप्ति हुई. यमुना नदी न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और इतिहास का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है. इसके महत्व को ऐसे समझा जा सकता है कि पहाड़ों में बसे चार धामों से एक प्रमुख धाम यमुना नदी का उद्गम स्थल है. जिसे यमुनोत्री धाम कहा जाता है.

यह इसलिए भी है, क्योंकि गंगा के ही समान यमुना भी भारतीय जीवन पद्धति की जीवन रेखा है. इसके किनारे हरियाणा के प्रमुख शहर हैं. देश की राजधानी दिल्ली इसके ही जल से सिंचित है. उत्तर प्रदेश के इतिहास का प्रमुख शहर आगरा जहां किला और ताजमहल हैं, वह इसके किनारे ही स्थित हैं.  

यही वजह है कि यमुना जब प्रयागराज में गंगा से मिलती है तो इस स्थान यानी संगम क्षेत्र के महत्व को कई गुना बढ़ा देती है. तब यह एक स्थान उन दो नदियों का कृपा पात्र बन जाता है, जिनका अपना अलग-अलग महत्व है, लेकिन दोनों के महत्व का लाभ एक साथ मिल जाता है. महाकुंभ में जब संगम के जल में डुबकी लगाई जाती है तो आस्था कहती है कि गंगा-यमुना का दोनों का मिला हुआ यह जल उन्हीं ईश्वरीय तत्व के और निकट ले जाएगा. उनकी काया को शुद्ध कर देगा और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति दिला देगा. इसी के साथ घाटों पर हर-हर गंगे, जय यमुना मैया का स्वर गूंजता रहता है.

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