कर्नाटक हाई कोर्ट ने मंगलवार (9 दिसंबर) को एक अंतरिम आदेश में 20 नवंबर को जारी उस सरकारी अधिसूचना पर रोक लगा दी जिसमें पेड मेंस्ट्रुअल लीव देना अनिवार्य किया गया था. सरकारी अधिसूचना के मुताबिक, विभिन्न कानूनों के तहत रजिस्टर्ड औद्योगिक प्रतिष्ठानों को सभी स्थायी, कॉन्ट्रैक्ट और आउटसोर्स महिला कर्मचारियों को प्रति माह एक दिन का सवेतन मासिक धर्म अवकाश (Paid Menstrual Leave) देना था. यह याचिका बेंगलुरु होटल्स एसोसिएशन की तरफ से दायर की गई थी.
कर्नाटक सरकार ने इसी साल अक्टूबर में 'मासिक धर्म अवकाश नीति, 2025' (Menstrual Leave Policy 2025) को मंजूरी दी थी. इस नीति के तहत, महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान प्रति माह एक सवेतन अवकाश का अधिकार होगा. यह नीति राज्यभर में सरकारी कार्यालयों, गारमेंट उद्योगों, मल्टीनेशनल कंपनियों, आईटी कंपनियों और अन्य निजी क्षेत्र के संगठनों में काम करने वाली महिलाओं पर लागू होगी.
सरकार ने आधिकारिक रूप से इस नीति की घोषणा कर दी थी और यह तुरंत प्रभाव से लागू भी हो गई थी.
मासिक धर्म के अवकाश को लेकर सबसे पहले 2024 में प्रस्ताव आया था. प्रारंभिक प्रस्ताव में साल में 6 मासिक धर्म अवकाश देने का सुझाव था, लेकिन वर्तमान नीति में इसे बढ़ाकर 12 सवेतन अवकाश प्रति वर्ष कर दिया गया है.
कर्नाटक के श्रम मंत्री संतोष लाड ने इस नीति को लेकर कहा था, 'हमने महिलाओं के लिए मासिक धर्म अवकाश को मंजूरी दी है. यह सबसे प्रगतिशील नया कानून है. महिलाएं साल में 12 स्वीकृत अवकाश ले सकती हैं, चाहे हर महीने एक बार या जरूरत के हिसाब से एक साथ. यह महिला कल्याण के प्रति सोच रखने वाली प्रगतिशील सरकार की उपलब्धि है.'
कर्नाटक के अलावा केरल, बिहार और ओडिशा में पेड मेंस्ट्रुअल लीव मिलती है. केरल में आईटीआई की महिला ट्रेनी के लिए प्रति माह 2 दिनों का पेड मेंस्ट्रुअल लीव दी जाती है वहीं, बिहार और ओडिशा में राज्य कर्मचारियों के लिए साल में 12 दिनों का पेड मेंस्ट्रुअल लीव दिया जाता है.