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गोधरा कांड के 23 साल बाद जुवेनाइल कोर्ट ने 3 दोषियों को भेजा रिमांड होम, घटना के वक्त थे नाबालिग

27 फरवरी, 2002 को अयोध्या से लौट रहे 59 'कारसेवकों' की उस वक्त मौत हो गई थी, जब गोधरा स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में भीड़ ने आग लगा दी थी.

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गोधरा कांड (फाइल फोटो)
गोधरा कांड (फाइल फोटो)

गोधरा ट्रेन अग्निकांड के दो दशक से ज्यादा वक्त के बाद, गुजरात के पंचमहल जिले में किशोर न्याय बोर्ड ने मंगलवार को तीन व्यक्तियों को सांप्रदायिक दंगे भड़काने वाली आगजनी में शामिल होने के लिए रिमांड होम में तीन साल के लिए रहने की सजा सुनाई है. घटना के वक्त वे नाबालिग थे. कोर्ट ने पांच नाबालिग आरोपियों में से तीन को दोषी ठहराया है. उन्हें तीन साल की सजा सुनाई गई है. बचे दो आरोपियों में से एक को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया है और दूसरे आरोपी की पहले ही मौत हो चुकी है. तीनों दोषी किशोर अभियुक्तों को सुरक्षा गृह में रखा जाएगा.

गोधरा में जेजेबी के अध्यक्ष के एस मोदी ने तीनों को तीन साल के लिए रिमांड होम भेज दिया और उन पर 10-10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया. बोर्ड ने मामले में आरोपी दो अन्य लोगों को बरी कर दिया, जो इस घटना के समय नाबालिग थे. उनके वकील सलमान चरखा ने बताया कि जेजेबी ने दोषियों को आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील करने की अनुमति देने के लिए उनकी सजा को 30 दिनों के लिए निलंबित कर दिया है.

आरोपी पक्ष के वकील एस.एस.चरखा ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि इस पर हम विचार करके अपील में जाएंगे. अभी आज कोर्ट ने फैसला सुनाया है, उनमें से दो आरोपी पहले ही पांच साल की सजा काट चुके हैं.

दोषियों पर क्या आरोप लगे थे?

अभियोजन पक्ष के मुताबिक, तीनों आरोपी उस भीड़ का हिस्सा थे, जिसने साजिश रचने के बाद अयोध्या से आ रही साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच पर पथराव किया और आग लगा दी. उन पर हत्या, आपराधिक साजिश, हत्या की कोशिश, जानबूझकर चोट पहुंचाने आदि से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया. अन्य दो आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया.

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27 फरवरी, 2002 को अयोध्या से लौट रहे 59 'कारसेवकों' की उस वक्त मौत हो गई थी, जब गोधरा स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में भीड़ ने आग लगा दी थी. ट्रेन में हुए इस नरसंहार के बाद राज्य में व्यापक सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे, जिसमें 1,000 से ज्यादा लोग मारे गए थे, जिनमें से ज्यादातर अल्पसंख्यक समुदाय के थे.

मामले में आरोपी के रूप में नामित छह किशोरों के खिलाफ अलग-अलग आरोपपत्र दाखिल किए गए. चरखा ने कहा कि सभी आरोपपत्रों को एक साथ मिलाकर सुनवाई की गई. बोर्ड के समक्ष मामले के लंबित रहने के दौरान छह आरोपियों में से एक की मौत हो गई.

यह भी पढ़ें: 'लोग उत्सुकतावश घटना देखने आ जाते हैं...' सुप्रीम कोर्ट ने गोधरा के बाद हुए दंगों के केस में 6 को किया बरी

31 आरोपी ठहराए गए थे दोषी

गोधरा की एक कोर्ट ने 2011 में इस मामले में 31 आरोपियों को दोषी ठहराया था और 63 अन्य को बरी कर दिया था. ट्रायल कोर्ट ने 11 दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी, जबकि 20 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. बाद में, गुजरात हाई कोर्ट ने 31 आरोपियों को दोषी ठहराने के ट्रायल कोर्ट के फ़ैसले को बरकरार रखा, लेकिन 11 की मौत की सज़ा को आजीवन कारावास में बदल दिया.

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गुजरात हाई कोर्ट के अक्टूबर 2017 के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कई अपीलें दायर की गई हैं. राज्य सरकार ने 11 दोषियों की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील के साथ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. वहीं, कई दोषियों ने भी अपनी सजा को बरकरार रखने वाले उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी है.

(Inputs: Jayendra Kumar Balvantbhai Bhoi)

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