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मराठा आरक्षण पर देवेंद्र फडणवीस क्यों अलग थलग पड़ गए हैं?

छत्तीसगढ़ में इस बार रमन सिंह क्यों बीजेपी का चेहरा नहीं बन पाए, मराठा आरक्षण पर देवेंद्र फडणवीस क्यों अलग थलग पड़ गए हैं और पिछले साल सड़क हादसों में बढ़ोतरी किन वजहों से हुई? सुनिए 'आज का दिन' में.

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इस महीने जिन 5 राज्यों में चुनाव है, उनमें से छत्तीसगढ़ भी एक है. छत्तीसगढ़ की सभी 90 विधानसभा सीटों पर दो फेज में मतदान होगा. एक 7 नवंबर को और दूसरा 17 नवंबर को. भाजपा पूरी कोशिश तो कर रही है कि राज्य में उसकी सत्ता लौटे लेकिन बहुत सारे बदलावों के साथ. 2003 से लेकर 2018 तक बीजेपी राज्य की सत्ता में रही है. इस दौरान मुख्यमंत्री थे डॉक्टर रमन सिंह. लेकिन छत्तीसगढ़ की राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले कहते हैं कि 2018 के बाद से रमन सिंह का कद पार्टी में घटा है. यही वजह है कि पार्टी उनके घोषित चेहरे के बिना ही चुनाव में जाना चाहती है. लेकिन एक सच ये भी है कि राज्य में बीजेपी के पास ऐसा चेहरा भी नहीं है जो रमन सिंह के बराबर का हो. पेशे से आयुर्वेदिक चिकित्सक रह चुके रमन राज्य में सबसे ज्यादा समय मुख्यमंत्री रह चुके हैं. छह बार के विधायक हैं और इस बार राजनन्दगाँव से बीजेपी के प्रत्याशी. कांग्रेस और बीजेपी में से किसका पाला मजबूत है ये तो वक्त बताएगा, लेकिन रमन सिंह के कद में ये कमी की बात कितनी सही है और अगर ये सही है तो क्यों हुआ है ऐसा? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें.  


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महाराष्ट्र मराठा आरक्षण आंदोलन में आया उबाल सरकार के सामने संकट बनकर खड़ा है. प्रदेश के अनेक हिस्सों में हालात संगीन हो गए हैं. दो हफ्ते में 28 लोग सुसाइड कर चुके हैं. कल मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने सर्वदलीय बैठक भी बुलाई थी. हालांकि अभी इस मामले का हल क्या होगा, ये कह पाना किसी के लिए मुश्किल ही है क्योंकि इसमें अदालती पेंच से लेकर राजनीतिक पेंच भी है.  

एक नाम जो आंदोलन करने वालों के निशाने पर शुरू से रहा है वो हैं महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस. सोशल ऐक्टिविस्ट मनोज जरांगे पाटिल जो आरक्षण की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर हैं, उन्होंने फडणवीस से इस्तीफा तक मांगा है लेकिन इसी के बरक्स मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और अजित पवार पर बहुत ज्यादा हमलावर नहीं हुए. सवाल है  क्यों सरकार में तीन दलों और तीन बड़े नेताओं के बीच केवल फडणवीस ही आंदोलन करने वाले लोगों के टारगेट बन गए हैं? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें.  
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बीते साल 2022 में कोविड से उबरने के बाद फिर से रुकी हुई चीजों ने रफ्तार पकड़ी. कई आंकड़ों में इजाफा हुआ जिसे खुशखबरी कहा जा सकता है. लेकिन एक और इजाफे की खबर है और ये चिंताजनक है. खबर ये है कि भारत में सड़क दुर्घटना में होने वाली मौतों में 9.4 प्रतिशत और घायलों की संख्या में 15.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. और देश भर में ओवराल सड़क दुर्घटनाओं में लगभग 12 परसेंट का उछाल आया है.  ये आँकड़े  देश के सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने दिए हैं. शहर जिनमें दुर्घटनाओं की संख्या ज्यादा है, पहले नंबर पर आती है उसमें दिल्ली. फिर बेंगलोर. नेशनल हाइवे जिसपर सबसे ज्यादा ऐक्सीडेंट्स हुए हैं, उसमें तमिलनाडु के नेशनल हाइवेज टॉप पर हैं. सड़क दुर्घटनाओं में ये बढ़ोतरी कितनी बड़ी चिंता है और इनके कारण क्या दिखाई देते हैं? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें.  

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