ओडिशा में बीजेडी के साथ भाजपा का गठबंधन हो सकता है. जल्द ही पार्टी नेता इसकी घोषणा कर सकते हैं. सूत्रों के मुताबिक, सीट-बंटवारे का फॉर्मूला इस बात पर आधारित होगा कि बीजेपी को लोकसभा में सीटों का बड़ा हिस्सा मिलेगा, जबकि बीजेडी को विधानसभा में अधिक सीटें मिलने की उम्मीद है. कुल 21 में से बीजेडी के लिए 7 सीटों के साथ बीजेपी की नजर 14 लोकसभा सीटों पर है.
बीजेपी के सूत्र बताते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में वोट का अंतर केवल 4% था (बीजेडी ने 12 सीटें जीतीं और बीजेपी ने 8 सीटें जीतीं). राज्य के भाजपा नेताओं ने आलाकमान को बताया था कि दोनों दलों के बीच चल रही 'मौन समझ' जमीनी स्तर पर पार्टी को नुकसान पहुंचा सकती है. जिससे कार्यकर्ताओं को भ्रमित करने वाले संकेत मिल रहे हैं.
बीजेपी का ग्राफ बढ़ता गया
बीजेडी ने साल 2009 के चुनाव से पहले बीजेपी से गठबंधन तोड़ने का ऐलान किया था. 2009 में बीजेपी को 15.1 फीसदी वोट शेयर के साथ छह सीटों पर जीत मिली थी और तब से अब तक, चुनाव दर चुनाव पार्टी का ग्राफ बढ़ा है. बीजेडी 2009 में 38.9 फीसदी वोट शेयर के साथ 146 सदस्यों वाली विधानसभा में 103 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन 2014 और 2019 चुनाव के एक ट्रेंड ने पटनायक की पार्टी की टेंशन बढ़ा दी. बीजेपी का ग्राफ चुनाव दर चुनाव चढ़ा है. 2014 और 2019 के ओडिशा चुनाव के आंकड़ों पर गौर करें तो बीजेडी का वोट शेयर बढ़ा जरूर है लेकिन मामूली ही सही, सीटें घटी हैं.
लोकसभा चुनाव में कैसा रहा आंकड़ा
बीजेडी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में 44.8 फीसदी वोट शेयर के साथ 21 में से 20 सीटें जीती थीं. तब बीजेपी 21.9 फीसदी वोट शेयर के साथ एक सीट ही जीत सकी थी. 2019 में बीजेडी का वोट शेयर 43.3 फीसदी पर आ गया और पार्टी को 2014 के मुकाबले आठ सीट का नुकसान उठाना पड़ा वहीं इसके ठीक उलट बीजेपी का वोट शेयर बढ़कर 38.9 फीसदी पहुंच गया और पार्टी की सीटें भी एक से बढ़कर आठ हो गईं. तब से अब तक बहुत कुछ बदल चुका है. बीजेडी में नवीन पटनायक के बाद कौन? उत्तराधिकार का सवाल और गहरा हुआ है.