स्कॉटलैंड से आई एक स्टडी में पाया गया है कि 620 गर्भवती महिलाएं जो डिलीवरी से 28 दिन पहले कोविड पॉजिटिव हुई हैं, उनकी डिलीवरी के बाद 14 बच्चे की मौत हुई है. 1000 बच्चों में ये आंकड़ा करीब 22 बैठता है यानि 22 बच्चों की मौत हुई है, मगर मार्च 2020 में यही आंकड़ा लगभग 6 था. तो तीसरी लहर में भारत में ओमिक्रोन का प्रेग्नेंट महिलाओं पर असर क्या इसी तरह है? और किसी भी औरत को उसके डिलिवरी से एक महीने पहले अगर कोविड होता है तो बच्चों का असर उस पर क्यों पड़ता है?
चुनावी तारीखों के ऐलान के बाद सियासत ने गोवा में भी रफ्तार पकड़ ली है. कांग्रेस और भाजपा के अलग अलग जतन तो चल ही रहे हैं. कल आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल भी गोवा में थे. तमाम वादे किए और गोवा के लिए चुनावी घोषणापत्र जारी किया. दूसरी तरफ, सत्तारूढ़ दल बीजेपी की मुसीबत लगातार बढ़ती दिख रही है. तमाम विधायकों के पार्टी छोड़ जाने के बाद अब मामले में नया ट्विस्ट आया है, पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के बेटे उत्पल पर्रिकर के टिकट मांगने पर. दरअसल उत्पल मनोहर पर्रिकर की सीट से ही टिकट चाहते हैं, और बीजेपी वहां से किसी और प्रत्याशी को उतारना चाहती है.देवेन्द्र फडणवीस जो महाराष्ट्र में बीजेपी के कद्दावर नेता हैं और गोवा में पार्टी के प्रभारी भी उनके बयान ने मामले को और जटिल बना दिया है.
दरअसल देवेन्द्र फणनवीस ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि कोई मनोहर पर्रिकर या किसी नेता का बेटा है, उसे भाजपा के टिकट के योग्य नहीं माना जा सकता है. फडणवीस की इस टिप्पणी के बाद उत्पल का भी बयान आया. उत्पल ने कहा कि क्या फडणवीस कह रहे हैं कि केवल जीतने की योग्यता ही मानदंड है? चरित्र कोई मायने नहीं रखता? और आप एक ऐसे व्यक्ति को टिकट देने जा रहे हैं जिसका आपराधिक इतिहास है और हमें चुपचाप घर बैठना है? अगर इस क्षेत्र के लिए मौजूदा विधायक अतानासियो मोनसेरेट को पार्टी का टिकट देती है तो वह चुप नहीं बैठेंगे. अब दोनों नेताओं के इस बयान के बाद भाजपा के अंदर संकट गहराता दिख रहा है. आप मुखिया अरविंद केजरीवाल ने भी उतपल पर्रिकर को आप मे शामिल होने का न्योता देकर सियासत और तेज़ कर दी. अब गोवा की सियासत में बढ़ती हलचल के बीच सवाल ये है कि बीजेपी उस सीट के लिए, जहां से उतपल लड़ना चाहते हैं , वहां से अलग कैंडिडेट क्यों लड़ाना चाहती है? क्या उतपल के जीत में कोई संशय है? या उत्पल से देवेन्द्र फडणवीस के कुछ अतिरिक्त मतभेद भी रहे हैं जिसका परिणाम हमें इस सीट पर दिख रहा है?
यूपी की सियासत में इन दिनों कई नेताओं के दलबदल की खबरें लगातार आ रही हैं. कुछ दिन पहले स्वामी प्रसाद मौर्य के सपा में जाने की आधिकारिक पुष्टि हुई थी. कल भाजपा सरकार में पूर्व मंत्री दारा सिंह चौहान भी सपा में शामिल हो गए. अखिलेश यादव की मौजूदगी में दारा सिंह चौहान ने सपा की सदस्यता ली. दारा सिंह चौहान मऊ के मधुबनी सीट से विधायक हैं. तो उनकी विधानसभा सीट के लोग उनके सपा में जाने के फैसले को किस तरह से देखते हैं. दारा सिंह चौहान के पांच साल के कार्यकाल में वो कितने सन्तुष्ट हैं?
दो दिन पहले भारतीय टेस्ट कप्तान विराट कोहली ने टेस्ट कप्तानी से हटने का ऐलान सोशल मीडिया के ज़रिए कर दिया. तीनों फॉर्मेट के कप्तान रहे विराट कोहली ने टी20 विश्वकप के बाद टी20 की कप्तानी से हटने का फैसला लिया था. बीसीसीआई ने वनडे से भी विराट को हटा कर रोहित शर्मा को कप्तान बनाने की घोषणा की. इस फैसले को लेकर भी काफी विवाद हुआ, जो सुर्खियों में आया. विराट ने कहा ओडीआई से उन्हें कप्तानी से हटाए जाने का फैसला लेने से पहले उनसे पूछा नहीं गया था.
कोहली के इस बयान के बाद हलकान हुई बीसीसीआई अभी चैन की सांस लेती कि साऊथ अफ्रीका से टेस्ट सीरीज खत्म होते ही विराट का टेस्ट कप्तानी छोड़ने का फैसला आ गया. क़रीब एक पन्ने के अपने पत्र में विराट ने कप्तानी छोड़ने की सूचना के अलावा उन सब लोगों को धन्यवाद कहा है जो उनके सात साल के कप्तानी करियर में सहायक रहे. सोशल मीडिया पर इसके बाद बीसीसीआई को लेकर तमाम बातें शुरू हो गईं. कहा जाने लगा विराट एक बार फिर बीसीसीआई के अंदर मची राजनीति का शिकार हो गए हैं. और तमाम बातें. इन्हीं सब बातों के बीच बीसीसीआई अध्यक्ष सौरभ गांगुली का बयान आया. उन्होने कहा कि विराट का टेस्ट कप्तानी छोड़ने का उनका फैसला नितांत निजी है. खिलाड़ी के तौर पर वो आज भी भारतीय खेमे के महत्वपूर्ण अंग हैं.
सवाल ये है कि विराट ने टी20 की कप्तानी जब छोड़ी थी, तो बड़े स्पष्ट रूप से कहा था कि वो बाकी फॉर्मेट्स में बेहतर कप्तानी और प्रदर्शन करने के लिए ऐसा कर रहे हैं. फिर ओडीआई की कप्तानी जाना और अब टेस्ट कप्तानी छोड़ देने का फैसला. ये सवाल उठाता है कि क्या विराट का ये फैसला वाकई निजी है? क्या वाकई इसमे बीसीसीआई का डायरेक्ट या इनडायरेक्ट कोई रोल नहीं?
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