46 साल पहले आज ही के दिन इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया था. 25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा के साथ ही सभी नागरिकों के मौलिक अधिकार खत्म कर दिए गए थे और कई मनमाने फैसले लिए गए थे. इसमें ही एक फैसला था संसद और विधानसभा का कार्यकाल 6 साल करने का फैसला. आपको जानकर हैरानी होगी कि इंदिरा गांधी का यह फैसला 2019 तक जिस प्रदेश में लागू था, उसका नाम जम्मू-कश्मीर है.
जम्मू कश्मीर देश का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां 1975 से विधानसभा का कार्यकाल छह साल का चला आ रहा था, लेकिन 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिलने के बाद अब विधानसभा का कार्यकाल देश के बाकी राज्यों की तरह पांच साल का हो गया है. इस तरह से आपातकाल की अंतिम निशानी छह साल की विधानसभा 2019 में इतिहास का हिस्सा बनकर रह गई.
संविधान संशोधन के जरिए बढ़ाया गया कार्यकाल
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल लागू करने के बाद संविधान में 42वां संशोधन संसद और राज्य की विधानसभा का कार्यकाल छह साल का कर दिया था. शेख मोहम्मद अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे. हालांकि कांग्रेस के सहयोग से मुख्यमंत्री बने हुए थे. यही वजह थी कि शेख अब्दुल्ला ने इंदिरा गांधी के पद चिह्नों पर चलते हुए राज्य के विधानसभा का कार्यकाल छह साल कर दिया था.
शेख अब्दुल्ला ने उस समय कहा था कि जम्मू-कश्मीर भी पूरे हिंदुस्तान के साथ चलेगा. वह हिंदुस्तान की मुख्यधारा में है, इसीलिए संविधान संशोधन के जरिए विधानसभा का कार्यकाल छह साल के लिए कर दिया गया है. 1977 में आपातकाल के हटने के बाद मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी जनता पार्टी की सरकार ने इंदिरा गांधी के सारे फैसलों को पलट दिया. इसके तहत मोरारजी देसाई ने संसद और विधानसभा के कार्यकाल को फिर पांच साल कर दिया, लेकिन जम्मू कश्मीर में कोई बदलाव नहीं किया. इसी का नतीजा था कि छह साल का कार्यकाल 44 साल से चला आ रहा था.
पैंथर्स पार्टी के हर्षदेव सिंह ने 1996 में आपातकाल की इस निशानी करने और विधानसभा का कार्यकाल पांच साल किए जाने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिल सकी. 5 अगस्त 2019 को जब जम्मू-कश्मीर से धारा 370 इतिहास बन गई तो विधानसभा का छह साल वाला कार्यकाल भी हट गया.