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'अजित का लक्ष्य CM बनना... जो आज पैर पर गिरे, वही कल पैर खींचेंगे', पवार के इस्तीफे पर सामना में खरी-खरी

उद्धव गुट वाली शिवसेना ने अपने मुखपत्र 'सामना' में लिखे एक संपादकीय में एनसीपी प्रमुख शरद पवार के इस्तीफे को लेकर कई बातें कहीं हैं. इस लेख में कहा गया है कि अजित पवार के इस्तीफे और एनसीपी में संभावित टूट को देखते हुए पवार ने इस्तीफा देने का फैसला किया.

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शरद पवार के इस्तीफे को लेकर सामना में छपे लेख में अजित पवार पर निशाना
शरद पवार के इस्तीफे को लेकर सामना में छपे लेख में अजित पवार पर निशाना

शरद पवार द्वारा एनसीपी प्रमुख के पद से इस्तीफा देने के बाद से ही महाराष्ट्र की सियासत में कयासों का दौर जारी है. इस बीच उद्धव गुट वाली शिवसेना के मुखपत्र सामना में शरद पवार को लेकर एक संपादकीय लिखा गया है जिसमें कई बातों का जिक्र किया गया है. सामना में छपे इस लेख में शरद पवार के इस्तीफे पर कहा गया है कि हम इस दावे से सहमत नहीं हैं कि पवार साहब तो 1 मई को यानी महाराष्ट्र दिवस को ही रिटायर होने की घोषणा करनेवाले थे, लेकिन मुंबई में महाविकास आघाड़ी की ‘वङ्कामूठ’ सभा होने के कारण उन्होंने 2 मई को घोषणा की.

लेख में कहा गया है, 'पवार अपना भाषण लिखकर लाए थे. ऐसा कभी नहीं होता, मतलब उनका भावनात्मक आह्वान और इस्तीफे का मसौदा वह ध्यानपूर्वक तैयार करके लाए थे और उसके तहत उन्होंने सब कुछ किया. शरद पवार ने अपनी उम्र का 80 वर्ष कब का पार कर ली है और फिर भी पवार सक्रिय राजनीति में सक्रिय हैं. पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी उनके नाम से खड़ी है और चल रही है. पवार के इस्तीफे के बाद सभागृह में उपस्थित लोग भावनात्मक हो गए.'

पवार के मन की बात

लेख में आगे कहा गया है, 'पवार द्वारा सेवानिवृत्ति की घोषणा करते ही कई प्रमुख नेताओं के आंसू छलक पड़े, रोने-धोने लगे. पवार के चरणों पर नतमस्तक हो गए. ‘आपके बिना हम कौन? कैसे?’ ऐसा विलाप किया. लेकिन इनमें से कइयों के एक पैर भाजपा में हैं और पार्टी को इस तरह से टूटते देखने की बजाय सम्मान से सेवानिवृत्ति ले ली जाए, ऐसा सेकुलर विचार पवार के मन में आया होगा तो उसमें गलत नहीं है. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का एक गुट भारतीय जनता पार्टी की दहलीज पर पहुंच गया है और राज्य की राजनीति में कभी भी कोई भूकंप आ सकता है, ऐसे माहौल में पवार ने इस्तीफा देकर हलचल मचा दी.'

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सामना के इस लेख में कहा गया है कि पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस की स्थापना एक विशेष परिस्थितियों में की थी. पवार कांग्रेसी विचारधारा और भूमिका वाले नेता हैं. लेख में कहा गया है,  'शाहू, फुले, आंबेडकर के विचारों के रास्ते पर उन्होंने अब तक राजनीति की है. सामाजिक क्षेत्र में भी उनका योगदान बहुत बड़ा है. पवार ने दो बार कांग्रेस का त्याग किया और खुद की स्वतंत्र राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की स्थापना की. कभी सत्ता में तो कई बार विपक्ष में रहकर उन्होंने राजनीति की. देश की राजनीति में तकरीबन 60 वर्ष से अधिक समय तक पवार ने राजनीति की. 27 साल की उम्र में वे पहली बार विधायक बने.तब से लेकर उनकी गति राजनीति में कभी कम नहीं हुई. पवार ने अपने तरीके से राजनीति की और कइयों की राजनीति बिगाड़ दी.'

इस्तीफे के पीछे की सियासत

लेख में आगे कहा गया है, 'यह सही है कि इंसान को ज्यादा मोह नहीं होना चाहिए, लेकिन राजनीति से किसका मोहभंग हुआ है? धर्मराज और श्रीकृष्ण का भी नहीं हुआ. प्रधानमंत्री तो खुद को फकीर मानते हैं. लेकिन उन्हें भी राजनीतिक मोह-माया ने जकड़ रखा है. उसमें पवार तो पूर्णकालिक राजनेता हैं. ऐसा राजनीतिक व्यक्ति इस्तीफा देकर हलचल मचाए, इसके पीछे की सियासत क्या है? इसका संशोधन कुछ लोग करने लगें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए. ‘ईडी’ जैसी जांच एजेंसी के कारण पार्टी में पहले ही बेचैनी और उससे सहयोगियों द्वारा चुना गया भाजपा का रास्ता, क्या इसके पीछे इस्तीफा देने की वजह हो सकती है? यह पहला सवाल. दूसरा, यानी अजित पवार और उनका गुट अलग भूमिका अपनाने की तैयारी में हैं, क्या उसे रोकने के लिए पवार ने यह कदम उठाया है?'

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लेख में कहा गया है कि शिवसेना टूटी चालीस विधायक छोड़कर चले गए लेकिन संगठन और पार्टी अपनी जगह पर है. कल राष्ट्रवादी के कुछ विधायक वगैरह चले गए फिर भी जिलास्तरीय संगठन हमारे पीछे रहे, इस दृष्टिकोण से जनमानस परखने का यह एक झटका देनेवाला प्रयोग हो सकता है. लेख में कहा गया है, 'शरद पवार द्वारा इस्तीफा देते ही उनको मनाने की कोशिश शुरू हो गई, यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है. पवार इस्तीफा वापस लें, ऐसी मांग नेता कर रहे हैं. लेकिन अजित पवार ने कहा कि पवार साहेब ने इस्तीफा दिया, वे वापस नहीं लेंगे. उनकी सहमति से दूसरा अध्यक्ष चुनेंगे.’

अजित का उद्देश्य सीएम बनना

लेख में कहा गया है कि अजित पवार की राजनीति का अंतिम उद्देश्य महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनना है. सुप्रिया सुले दिल्ली में रहती हैं.  उनकी वहां की स्थिति अच्छी है. संसद में वह बेहतरीन काम करती हैं. हालांकि, भविष्य में उन्हें पार्टी का नेतृत्व मिला तो पिता के समान ऊंचाई तक पहुंचने के लिए उन्हें कोशिश करनी चाहिए.  लेख में कहा गया है, 'राज्य के कई नेता आज दहलीज पर हैं और उनमें कई नाम पवार की पार्टी के हैं. इस दहलीज के कुछ नेताओं ने पवार के इस्तीफे के बाद सबसे ज्यादा विलाप किया. शरद पवार ने पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर सभी की पोल खोल दी. बादल और हवा स्वच्छ कर दी. आज जो पैर पर गिरे वही कल पैर खींचने वाले होंगे तो उनका मुखौटा खींचकर निकाल दिया. भले ही ये राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का अंदरूनी मसला हो फिर भी शरद पवार इस घटनाक्रम के नायक हैं. उनके इस्तीफे का फैसला आने तक महाराष्ट्र में हलचलें जारी ही रहेंगी. पवार राजनीति के भीष्म हैं, लेकिन भीष्म की तरह हम शैया पर पड़े नहीं, बल्कि हम सूत्रधार हैं, यह उन्होंने दिखा दिया है!'

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