महाराष्ट्र सरकार ने बॉम्बे हाईकोर्ट को सूचित किया है कि मुंबई स्थित सावरकर सदन को विरासत सूची में शामिल करने के लिए अब बीएमसी की मुंबई हेरिटेज कंज़र्वेशन कमेटी (MHCC) की ओर से एक नया प्रस्ताव आवश्यक है. ये जानकारी सरकार की ओर से अतिरिक्त सरकारी वकील (AGP) प्राची तातके ने एक हलफनामे के जरिए कोर्ट को दी.
हिंदुत्व विचारक विनायक दामोदर सावरकर का पूर्व निवास, सावरकर सदन बैठकों का स्थल हुआ करता था, लेकिन अब यह जर्जर अवस्था में है और इसकी मरम्मत की आवश्यकता है. कहा जा रहा था कि नए निर्माण के लिए इस इमारत को गिराया जा सकता है. लेकिन सावरकर के अनुयायियों ने इसका विरोध किया है.
हलफनामे में कहा गया है कि सावरकर सदन को विरासत सूची में शामिल करने का प्रस्ताव था और इस पर विचार भी किया गया था. नगर विकास विभाग ने 2009 में ही उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए सरकार को इस भवन को ग्रेड-IIA संरचना घोषित करने की सिफारिश की थी. इस मुद्दे पर सरकार के विभिन्न विभागों के बीच काफी पत्राचार हुआ था, लेकिन जून 2012 में मंत्रालय में भीषण आग लगने से इस विषय से जुड़ी फाइलें नष्ट हो गईं.
राज्य सरकार की ओर से उप नगर नियोजन निदेशक ललित खोबरागड़े द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया है कि सावरकर के योगदान को राज्य सरकार के सभी विभाग गर्व और सम्मान के साथ स्वीकार करते हैं और सरकार इस मामले में कानूनी प्रक्रिया के तहत ज़रूरी कदम उठाएगी. अब इस दिशा में BMC आयुक्त को 9 जुलाई को सूचित किया गया था और MHCC ने 22 जुलाई को हुई बैठक में तय किया है कि वह इस संबंध में एक नया प्रस्ताव जल्द राज्य सरकार को भेजेगी.
हालांकि इस मामले में याचिकाकर्ता पंकज फडनीस ने आपत्ति जताई है. वह अभिनव भारत कांग्रेस नामक संगठन के संस्थापक और सावरकर के एक प्रमुख शोधकर्ता और अनुयायी हैं. उन्होंने याचिका में मांग की है कि सरकार सावरकर के जीवित उत्तराधिकारियों को मुआवज़ा देने की स्पष्ट नीति बनाए, इसके बाद ही सावरकर सदन को विरासत सूची में शामिल किया जाए या राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया जाए. इसके साथ ही एक निर्माता (बिल्डर) भी इस मामले में कोर्ट पहुंचा है, जिसने सावरकर के उत्तराधिकारियों से सावरकर सदन की आधी संपत्ति खरीदी है. बिल्डर का कहना है कि संरचना को विरासत घोषित करने से पहले उन्हें भी सुना जाए.
मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की बेंच ने पंकज फडनीस को इस पर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है और तीन हफ्तों बाद फिर से इस मामले की सुनवाई की जाएगी.