जम्मू-कश्मीर की सत्ता संभाले मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को अभी एक साल ही हुआ है, लेकिन उनके कामकाज के तरीके और नीतियों पर सवाल उठने लगे हैं. ये सवाल किसी विपक्ष के द्वारा नहीं उठाए जा रहे हैं बल्कि उमर अब्दुल्ला की अपनी ही पार्टी के सांसदों द्वारा उठाए जा रहे हैं. कांग्रेस पहले से सियासी मौके की तलाश में है और वक्त की नज़ाकत को देखते हुए अपने तेवर दिखा दिए हैं.
नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद आगा सैयद रुहुल्ला और सांसद मियां अल्ताफ़ अहमद लारवी ने मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल रखा है. दोनों ही नेताओं ने अब्दुल्ला पर पार्टी को कमजोर करने और विधानसभा चुनाव में किए वादे को न पूरा करने को लेकर घेरा है.
कांग्रेस के साथ पहले से ही उमर अब्दुल्ला का सियासी तालमेल बिगड़ा हुआ है. नेशनल कॉन्फ्रेंस के लोकसभा सांसदों के रुख को देखते हुए कांग्रेस ने भी अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं और साथ ही कह दिया है कि अगर उमर अब्दुल्ला का मौजूदा रवैया जारी रहा तो उसे गठबंधन पर पुनर्विचार करना पड़ेगा. ऐसे में अब देखना है कि उमर अब्दुल्ला इस सियासी मझधार से कैसे पार पाते हैं?
उमर से एनसी के दो सांसद नाराज
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने और केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के पांच साल बाद 2024 में विधानसभा चुनाव हुए थे. उमर अब्दुल्ला के अगुवाई वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन चुनावी जंग जीतने में सफल रही. उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने और सत्ता की कमान संभाली, लेकिन कांग्रेस को मन के मुताबिक मंत्री पद न मिलने से वह सरकार में शामिल होने के बजाय बाहर से समर्थन कर रही है.
उमर अब्दुल्ला की सरकार को एक साल हुए अभी 15 दिन गुजरे हैं, लेकिन उनके कामकाज और रवैये को लेकर अपने ही नाराज़ हैं. अनंतनाग-राजौरी से एनसी सांसद मियां अल्ताफ अहमद ने सीधे मुख्यमंत्री की कार्यकुशलता पर सवाल उठाते हुए कहा था कि अगर मैं कहूं कि उमर साहब सही रास्ते पर हैं तो यह गलत होगा, और यह उन्हें धोखा देना होगा. वहीं, आगा सैयद रुहुल्ला तो बागी तेवर अपना रखे हैं और लगातार उमर अब्दुल्ला पर हमलावर हैं.
उमर से क्यों अपने ही नाराज़?
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से उनकी पार्टी के ही सांसद क्यों नाराज हैं? इस बात को नेशनल कॉन्फ्रेंस के दोनों सांसदों के बयान से समझा जा सकता है. मियां अल्ताफ अहमद कहते हैं कि उमर को देखना चाहिए कि उनके पास क्या अधिकार और सीमाएं हैं और वह उन लोगों की बेहतर सेवा कैसे कर सकते हैं, जिन्होंने उन्हें चुना है.
अल्ताफ मियां कहते हैं कि सत्ता में आए एक साल हो गए हैं, लेकिन जम्मू-कश्मीर से संबंधित महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दों पर प्रदेश सरकार ने कोई ठोस क़दम नहीं उठाया है. बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है, पढ़े-लिखे नौजवान हाथों में डिग्रियां लेकर घूम रहे हैं, लेकिन रोजगार के नाम पर कुछ नज़र नहीं आता.
उन्होंने कहा कि उमर अब्दुल्ला को बयानबाज़ी के बजाय अपने शासन पर ध्यान देना चाहिए, लेकिन लीडरशिप सिर्फ़ इस बात में उलझी है कि कौन बीजेपी के साथ है और कौन बीजेपी के ख़िलाफ है.
वहीं, सांसद आगा सैयद रुहुल्ला मेंहदी काफ़ी दिनों से बागी तेवर अपना रखे हैं। रुहुल्ला कहते हैं उमर अब्दुल्ला को याद रखना चाहिए कि उन्हें लोगों ने चुना है और अगर वह लोगों की भलाई के बजाय उनके ख़िलाफ़ काम करेंगे तो लोग बख़्शेंगे नहीं. चुनाव से पहले नेशनल कॉन्फ्रेंस ने लोगों से जो छीना गया था उसे वापस दिलाने का वादा किया था, लेकिन अब, सत्ता में आने के बाद, हम समझौता कर रहे हैं और अपनी लड़ाई को केवल राज्य का दर्जा दिलाने तक ही सीमित कर रहे हैं.
रुहुल्ला ने कहा कि पार्टी ने 2024 के चुनावों से पहले दूसरों पर बीजेपी का साथ देने का आरोप लगाया था, लेकिन अब नेशनल कॉन्फ्रेंस उसी रास्ते पर जाती नज़र आती है. आरक्षण और स्मार्ट मीटर के मुद्दों पर सरकार के रवैये की आलोचना करते हुए वह कहते हैं कि पार्टी राजनीतिक और रोज़मर्रा के शासन के वादों को पूरा करने में विफल रही हैय अल्ताफ़ और रुहुल्ला की बातों से साफ है कि उमर अब्दुल्ला के कामकाज को लेकर नाराज़गी है, जो नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए महँगा पड़ सकता है.
कांग्रेस को मौके की तलाश
उमर अब्दुल्ला की सरकार बनने के बाद से ही कांग्रेस नाराज़ है और मौक़े की तलाश में है। इसीलिए मियां अल्ताफ़ और रुहुल्ला के तेवर दिखाने के बाद कांग्रेस भी आंख दिखाना शुरू कर दी है. उमर सरकार में उचित भागीदारी न मिलने और राज्यसभा चुनाव में सुरक्षित सीट न दिए जाने से कांग्रेस नाराज़ चल रही है और अब उसे मौका मिल गया है.
कांग्रेस के महासचिव शाहनवाज चौधरी ने कहा कि नेशनल कॉन्फ्रेंस को हमें अपना पिछलग्गू बनाकर चलने का सपना छोड़ देना चाहिए. नेशनल कॉन्फ्रेंस को अपना सियासी रवैया बदलना होगा और अगर हालात ऐसे ही रहे तो हमें गठबंधन पर पुनर्विचार करना पड़ेगा. ऐसे में साफ़ है कि उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर में सियासी संतुलन बनाकर नहीं चल पा रहे हैं, न ही पार्टी में और न ही सहयोगी के साथ.
उमर अब्दुल्ला की सियासी टेंशन
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो उमर अब्दुल्ला भले ही कांग्रेस के साथ बैलेंस बनाकर न चल रहे हों, लेकिन आगा सैयद रुहुल्ला और मियां अल्ताफ़ अहमद की बातें नज़रअंदाज़ कर चलना आसान नहीं, क्योंकि दोनों ही ज़मीन से जुड़े नेता हैं और उन्हें पता है कि लोग क्या चाहते हैं. इन दोनों नेताओं ने उमर अब्दुल्ला की कार्यकुशलता और नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए उन्हें संभलने की बात कही है.
आगा रुहुल्ला जम्मू-कश्मीर उपचुनाव प्रचार से पूरी तरह दूरी बनाए हुए हैं और अब सैयद अल्ताफ़ मियां भी सवाल खड़े कर रहे हैं. ऐसे में सवाल खड़े होने लगे हैं कि फारूक अब्दुल्ला इन सारे मामलों को कैसे सुलझाते हैं और उमर अब्दुल्ला अपने कामकाज के तरीक़े में क्या बदलाव लाएंगे. देखना होगा कि जम्मू-कश्मीर की सियासत किस दिशा में आगे जाती है?