सहकारिता क्षेत्र के लिए एक बड़ी खबर है. बहुप्रतीक्षित कोऑपरेटिव यूनिवर्सिटी को बनाने का रास्ता साफ हो गया है. इसे सहकारिता क्षेत्र में सबसे आगे खड़े गुजरात में बनाया जाएगा. यहां आणंद स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट (IRMA) को ही कोऑपरेटिव यूनिवर्सिटी बनाने का फैसला लिया गया है. इस यूनिवर्सिटी को बनाने के लिए संसद में "त्रिभुवन" सहकारी विश्वविद्यालय विधेयक पेश किया जाएगा. यूनिवर्सिटी बनने से ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिए पढ़ाई करवाने का एक बड़ा मंच मिलेगा. सरकार ने सहकारिता के जरिए किसानों और ग्रामीण क्षेत्रों के विकास का रोडमैप बनाया है. ऐसे में सहकारिता की पढ़ाई के लिए अलग से एक अलग यूनिवर्सिटी बनाए जाने से इस क्षेत्र में एक नई गति आएगी. यूनिवर्सिटी अपने खर्चों को पूरा करने में आत्मनिर्भर बनने का भी लक्ष्य रखेगी.
देश के पहली कोऑपरेटिव यूनिवर्सिटी का नाम "त्रिभुवन" सहकारी विश्वविद्यालय होगा. यह नाम भारत में सहकारी आंदोलन के जनक माने जाने वाले स्वतंत्रता सेनानी त्रिभुवन दास पटेल को समर्पित है. इस समय इरमा में पीजी कोर्स करवाए जाते हैं. जिससे एमबीए की डिग्री मिलती है. इरमा ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए समर्पित एक बिजनेस स्कूल है, जिसकी स्थापना 1979 में डॉ. वर्गीस कुरियन ने की थी. सहकारिता क्षेत्र के बड़े पदों पर यहीं के पढ़े लोग काबिज हैं.
इरमा की लोकप्रियता
रूरल मैनेजमेंट की पढ़ाई करवाने के कोई भी संस्थान इरमा के आसपास भी नहीं ठहरता. यह इतना प्रतिष्ठित इंस्टीट्यूट है कि इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह जैसे प्रधानमंत्री भी यहां का दौरा कर चुके हैं. गुजरात, सहकारिता क्षेत्र में पूरी दुनिया में एक बड़े सक्सेसफुल मॉडल के तौर पर देखा जाता है और अब यहीं पर सहकारिता विश्वविद्यालय का बनाया जाना अपने आप में खास है.
महाराष्ट्र को झटका
कोऑपरेटिव सेक्टर के मामले में महाराष्ट्र भी काफी आगे है. यहां कोऑपरेटिव शुगर मिलों का बड़ा तंत्र है. पुणे में वैकुंठ मेहता नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कोऑपरेटिव मैनेजमेंट (वैमनीकॉम) स्थित है, जिसे कोऑपरेटिव यूनिवर्सिटी बनाने की चर्चा थी लेकिन सरकार ने इसके लिए गुजरात को चुना. इसे आणंद शहर में में बनाया जाएगा, जहां नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड का कार्यालय और अमूल का मुख्य प्लांट है. विश्चविद्यालय बनाने के लिए इरमा के आसपास पर्याप्त जमीन मौजूद है.
क्या होगा फायदा
वर्ल्ड कोऑपरेटिव इकोनॉमिक फोरम के कार्यकारी अध्यक्ष बिनोद आनंद का कहना है कि "सहकार से समृद्धि" के विजन को साकार करने के लिए एक सहकारिता विश्चविद्यालय की जरूरत थी, जो अब पूरी होने जा रही है. सहकारिता ग्रामीण विकास की धुरी है फिर भी अब तक इस क्षेत्र के लिए काम नहीं किया गया था. पहली बार इसकी पढ़ाई के बारे में विश्चविद्यालय खोलने के बारे में सोचा गया. इसके बनने से सहकारिता क्षेत्र में अच्छा मैनपावर आएगा. केंद्रीय गृह और सहकारिता अमित शाह और नेशनल कोऑपरेटिव यूनियन ऑफ इंडिया (NCUI) के अध्यक्ष दिलीप संघानी का इस विश्चविद्यालय को बनवाने में महत्वपूर्ण भूमिका है.
आनंद का कहना है कि भारत में सहकारिता का इतिहास सौ वर्षों से भी अधिक पुराना है, लेकिन अगर 100 सफल सहकारी संस्थानों की लिस्ट बनाने की बात की जाए तो बहुत मुश्किल से बन पाएगी. सारी कहानी इफको, कृभको और अमूल तक सिमट जाती है. वजह यह है कि सहकारिता क्षेत्र के विकास के लिए प्रोफेशनल अप्रोच नहीं है. जब सहकारिता क्षेत्र की भी पढ़ाई होगी तो इस सेक्टर के लिए अच्छा मैनपावर उपलब्ध होगा. जिससे इस सेक्टर का विकास होगा.