
राजधानी दिल्ली देश की सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में से एक है. ठंड के दस्तक के साथ दिल्ली में हवा और जहरीली होते जा रही है. हवा की जहरीली स्थिति से भी बड़ा संकट सामने आया है - वह डेटा जो हवा की गुणवत्ता मापता है. 2 नवंबर से 5 नवंबर के बीच दिल्ली का औसत एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 366 से गिरकर 281 तक पहुंच गया.
जो ये आंकड़े हैं, वो कागजों पर ठीक लग रहे हैं कि प्रदूषण कम हो रहा है. लेकिन असली सवाल यह है कि क्या दिल्ली की हवा वाकई साफ हुई है या यह डेटा की कमी और हवा के रुख में बदलाव का असर है?
इंडिया टुडे की OSINT टीम के विश्लेषण में सामने आया कि इस गिरावट की वजह सिर्फ सरकारी उपाय नहीं, बल्कि मौसम का रुख बदलना भी है. आमतौर पर उत्तर-पश्चिमी हवाएं दिल्ली की ओर आती हैं और पराली का धुआं लेकर राजधानी तक पहुंचती हैं. लेकिन इस बार वेस्टर्न डिस्टर्बेंस के कारण हवाओं की दिशा उलट गई.
इस बदलाव के चलते पराली का धुआं सीधे दिल्ली की ओर आने के बजाय पंजाब और हरियाणा की ओर लौट गया. इससे दिल्ली में अस्थायी तौर पर हवा साफ़ दिख रही है, जबकि पराली जलाने की घटनाएं अब भी जारी हैं.

Copernicus के ERA5 प्रोजेक्ट के आंकड़ों के आधार पर तैयार एनिमेशन में भी यह स्पष्ट हुआ कि हवाएं अब उत्तर की ओर मुड़ रही हैं, जिससे धुएं का गुबार दिल्ली से हटकर हरियाणा और पंजाब के ऊपर मंडरा रहा है.
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हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्थिति स्थायी नहीं है. अगले कुछ दिनों तक आसमान साफ दिख सकता है, लेकिन यह प्राकृतिक राहत है, न कि प्रदूषण की समस्या का समाधान.

डेटा में खामियां
इंडिया टुडे की जांच में यह भी सामने आया कि 96 घंटे (2 से 4 नवंबर) के डेटा में स्टेशनों का गायब डेटा भी एक बड़ी वजह है. दिलचस्प बात यह है कि डेटा रैंडम तरीके से नहीं, बल्कि ज्यादातर प्रदूषित घंटों के दौरान ही गायब था. इससे रिकॉर्ड पर दिल्ली की हवा वास्तविकता से साफ़ दिखने लगी.

उदाहरण के लिए, PM2.5 डेटा का अध्ययन बताता है कि स्टेशन ज्यादातर दोपहर 12 से 3 बजे तक रिकॉर्डिंग कर रहे थे - यानी दिन के वे घंटे जब हवा अपेक्षाकृत साफ़ होती है. जबकि सुबह 7 से 11 बजे तक और रात 2 बजे के आसपास का डेटा सबसे अधिक गायब था - ये वे घंटे हैं जब प्रदूषण सबसे ज्यादा होता है.
इस पैटर्न के कारण औसत AQI नीचे दिखा, जिससे रिपोर्ट में हवा साफ़ दिखने लगी, जबकि हकीकत इससे कहीं ज़्यादा खराब थी.