दिल्ली विधानसभा की विशेषाधिकार समिति द्वारा जारी समन को चुनौती देने वाले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया पर समिति के साथ सहयोग न करने का आरोप लगाया गया है. विधानसभा सचिवालय ने सोमवार को दिल्ली हाई कोर्ट में कहा कि ‘फांसी घर’ मामले में समन जारी होने के बावजूद दोनों नेता एक बार भी समिति के सामने पेश नहीं हुए.
वो फांसी घर नहीं टिफिन रूम था?
सचिवालय के वकील ने दलील दी कि केजरीवाल और सिसोदिया ये कहते रहे कि उनकी याचिका कोर्ट में लंबित है, इसलिए वे समिति के सामने नहीं आए. अदालत में बताया गया कि दिल्ली विधानसभा के स्पीकर विजेंद्र गुप्ता ने सत्ता बदलने के बाद दावा किया था कि 2022 में केजरीवाल द्वारा 'फांसी घर' के रूप में उद्घाटन किया गया ब्रिटिश काल का ढांचा असल में 'टिफिन रूम' था. उन्होंने इसे झूठ फैलाना बताया और मामला विशेषाधिकार समिति को भेज दिया.
विधानसभा सचिवालय के वकील जयंत मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता लगातार गैर-सहयोग कर रहे हैं. वे एक बार भी समिति के सामने पेश नहीं हुए. कोर्ट ने साफ किया कि इस मामले में कोई अंतरिम आदेश नहीं दिया गया है.
केजरीवाल और सिसोदिया ने हाई कोर्ट में दायर याचिका में कहा है कि समन किसी शिकायत, रिपोर्ट या विशेषाधिकार भंग प्रस्ताव पर आधारित नहीं है. उनका कहना है कि समिति को भेजा गया यह मामला केवल 'प्रामाणिकता' जांचने के लिए है जो विधानसभा की शक्तियों के दायरे में नहीं आता.
क्या है आरोप
याचिका में आरोप लगाया गया है कि कार्यवाही अधिकार क्षेत्र से बाहर है, प्रक्रिया में खामियां हैं और ये उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है. विधानसभा ने पहले याचिका को गलत बताया था और कहा था कि इसे विशेषाधिकार भंग मामला न समझा जाए. समिति सिर्फ 'फांसी घर' की सच्चाई जानने में उनकी मदद चाहती है.
फांसी घर का उद्घाटन 22 अगस्त 2022 को केजरीवाल, सिसोदिया, उपाध्यक्ष राखी बिड़ला और स्पीकर गोयल की मौजूदगी में किया गया था. AAP का कहना है कि यह स्वतंत्रता संग्राम और शहीदों को समर्पित एक प्रतीकात्मक स्मारक था. स्पीकर गुप्ता ने 1912 के नक्शे का हवाला देते हुए कहा था कि इस जगह को कभी 'फांसी घर' के रूप में इस्तेमाल किए जाने का कोई रिकॉर्ड नहीं है और इसी की जांच के लिए मामला समिति को भेजा गया था.