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दिल्ली: घर के बाहर खड़ी गाड़ी को जबरन पहुंचाया जा रहा स्क्रैप यार्ड! पुरानी कारों के मालिक परेशान

दिल्ली में घर के बाहर खड़ी पुरानी गाड़ियों को जबरदस्ती उठाया जा रहा है. उन्हें उठाकर स्क्रैप यार्ड भेज दिया जाता है. हालांकि, अब दिल्ली के रहवासियों ने सवाल उठाए हैं कि अगर गाड़ी चल नहीं रही है और सिर्फ घर के बाहर खड़ी हुई है तो उसे ले जाना कहां तक सही है?

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सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

प्रदूषण कम करने के लिए राजधानी दिल्ली में एमसीडी लंबे वक्त से अभियान चला रही है. इस अभियान के तहत 15 साल पुरानी पेट्रोल और 10 साल पुरानी डीजल गाड़ियों को कबाड़ में भेजा जा रहा हैं, लेकिन इस मुहिम पर अब लोग मनमानी का आरोप लगा रहे हैं. लोगों का कहना है कि घर के बाहर खड़ी उनकी गाड़ियों को भी जबरन स्क्रैप यार्ड भेजा जा रहा है, जबकि वह उस गाड़ी का इस्तेमाल भी नहीं करते हैं. कई लोगों ने तो अपने परिजनों की याद के तौर पर गाड़ियों को संजो कर रखा है, लेकिन उनकी गाड़ियां भी जब्त की जा रही हैं. आइए दिल्ली के कुछ मामलों के जरिए इस अभियान के पीछे चल रहे खेल के बारे में जानते हैं.

पिता की याद में कार को रखा था संजोकर

नॉर्थ दिल्ली के राणा प्रताप बाग में रहने वाले राघव गुप्ता की गाड़ी जुलाई महीने में एमसीडी की टीम उठाकर ले गई. राघव  के पास 2006 मॉडल की सेंट्रो जिंग थी. यह कार उनके पिता सत्य प्रकाश गुप्ता ने खरीदी थी, जो उनके परिवार की पहली कार थी. 2020 में कोरोना महामारी में राघव के पिता सत्य प्रकाश की मौत हो गई. 

बिना नोटिस दिए उठाकर ले गई टीम

2006 में जब यह गाड़ी राघव के घर आई थी तब से अब तक उन्होंने इस गाड़ी को परिवार के सदस्य के रूप में मेंटेन करके रखा था. पिता की यादें जुड़ी थीं, इसीलिए राघव कार को पूरी तरीके से मेंटेन रखते थे. कार इतनी मेंटेन थी कि हर कोई उनकी गाड़ी खरीदना चाहता था, लेकिन अचानक से एमसीडी की टीम आई और बिना नोटिस दिए उनकी गाड़ी उठाकर ले गई. उसके बदले उन्हें सिर्फ 15000 दिए गए. 

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पॉल्यूशन नहीं फैलाने का किया दावा

आजतक से बातचीत करते समय भावुक होकर राघव ने बताया कि उनके पिता की कार पॉल्यूशन नहीं फैला रही थी फिर भी उसे उठा लिया गया. राघव का आरोप है कि वह अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए अपने पिता की यादों को इस गाड़ी के जरिए संजो के रखना चाहते थे, लेकिन एमसीडी की टीम ने उनकी मेहनत पर पानी फेर दिया.

नोटिस मिलने के बाद नहीं हुआ कॉन्टेक्ट

वहीं, साउथ दिल्ली के जीके 1 में रहने वाली नेहा 3 जुलाई की सुबह जब उठीं, तो उनकी 2010 मॉडल की इंडिगो कार घर के बाहर ही खड़ी थी, लेकिन जब 11:45 बजे जब वह बालकनी में आईं तो वहां उनकी कार नहीं थी. आसपास से पता चला कि ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट की टीम उनकी गाड़ी स्क्रैप यार्ड ले गई है. उनके घर के बाहर एक नोटिस लगा हुआ था. नोटिस मिलने के बाद 1 हफ्ते तक नेहा कांटेक्ट करने की कोशिश करती रही, लेकिन कोई कॉल पिक नहीं कर रहा था.

मेंटेन कार के बदले ऑफर किए 20 हजार

बड़ी मुश्किल से उन्होंने ट्रांसपोर्ट विभाग का नंबर निकाला तो विभाग ने उनको गाड़ी के बदले 20 हजार रुपए (कीमत) देने की बात कही. जबकि नेहा का कहना है बाजार में उनकी गाड़ी की कीमत 70 से 80 हजार है. उनका सवाल है कि उन्हें ट्रांसपोर्ट विभाग कैसे अपनी मनमर्जी से गाड़ी की कीमत 20,000 रुपए दे सकता है. नेहा के पास एक i20 है, जिसे वह बाहर आने-जाने इस्तेमाल करती हैं, जबकि उनकी पुरानी इंडिगो कार घर के बाहर ही खड़ी रहती थी. उनका कहना है कि उनकी इंडिगो कार पूरी तरह से मेंटेन थी, फिर भी डिपार्टमेंट उसे उठाकर ले गया.

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प्रदूषण ना फैलाना वाली गाड़ियां क्यों उठाईं?

साउथ दिल्ली जीकेएस ब्लॉक प्रेसिडेंट एम के गुप्ता के मुताबिक यह पॉलिसी बिल्कुल गलत है. उनका सवाल है कि जो गाड़ियां सड़कों पर पॉल्यूशन फैला नहीं रही हैं और घरों के बाहर खड़ी हैं या किसी के सेंटीमेंट से जुड़ी हैं. इन गाड़ियों को उठाना कहां तक जायज है? एमके गुप्ता के मुताबिक एमसीडी और ट्रांसपोर्ट विभाग की टीम इन दिनों उनकी कॉलोनी से गाड़ियां उठा रही है वो आरडब्लू को बिना इन्फॉर्म किए सोसाइटी में एंटर करती है और गाड़ियों को उठाकर के ले जाती है जबकि इन टीमों को गाड़ी मालिकों को नोटिस देना चाहिए, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं करते. उनकी कॉलोनी से भी पिछले एक हफ्ते में कई गाड़ियां उठाई गई हैं.

किसने तय किया 22 रुपये किलो का भाव?

उन्होंने आगे कहा कि 15 साल पुरानी कार जबरन घर के बाहर से उठाई जा रही है. चाहे एनजीटी का आदेश हो, पर क्या दिल्ली और केंद्र सरकार ने जनता का पक्ष मजबूती से रखा. और 22 रुपये किलो का स्क्रैप भाव किसने तय किया? हर तरफ से ये नीति जानती है, देश और पर्यावरण के खिलाफ है. लोहे का रेट 40-60 रुपये है, गाड़ी में तांबा और अन्य कीमती धातुएं भी होती हैं। जब ये कार के बदले नई कार खरीदो तो खनन और उत्पादन में पर्यावरण को ज्यादा नुकसान होगा. 10 साल पुरानी डीजल कार का रोड टैक्स 5 साल का भी बकाया बनता है. किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि गाड़ी चलाने से प्रदूषण होता है ना कि उम्र से.

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गाड़ियों को लेकर सजग रहता है आम आदमी

उन्होंने कहा कि जो गाड़ियां मेंटेन है. जिनको दूसरे राज्यों को फिटनेस सर्टिफिकेट मिला हुआ है, उन गाड़ियों को क्यों उठाया जा रहा है. सरकार के पास क्या पॉलिसी इंप्लीमेंट करने के लिए कोई मेकैनिज्म नहीं है. जिससे यह पता लगाया जाए कि कौन सी गाड़ी सड़क पर प्रदूषण फैला रही है और कोन सी नहीं. आम लोग अपनी गाड़ियों को लेकर के बहुत सजग होते हैं समय पर सर्विस कराते हैं और मेंटेन भी रखते हैं, जो गाड़ी मेंटेन नहीं है, जिसका फिटनेस सर्टिफिकेट है उस गाड़ी को उठाना चाहिए. लेकिन जो गाड़ी पॉल्यूशन फैला ही नहीं रही. उसको उठाना बिल्कुल गलत है. इसके अलावा जो कंपनियां इन गाड़ियों को स्क्रैप यार्ड में ले जाती हैं वह 16 रुपये किलो के हिसाब से कीमत अदा करती हैं, जबकि पुराना स्क्रैप 40 से 60 रुपये किलो बिकता है.

घर के बाहर खड़ी गाड़ी कैसे फैला सकती है प्रदूषण?

वहीं, पर्यावरण विशेषज्ञ और वसंत कुंज आरडब्ल्यूए मेंबर अनिल सूद के मुताबिक घर के बाहर खड़ी गाड़ी कैसे पॉल्यूशन कर रही है यह समझ से बाहर है. सवाल यह भी है कि कैसे सीपीसीबी ने आईआईटी कानपुर की रिपोर्ट को इंप्लीमेंट करते हुए एक्सेप्ट कर लिया कि दिल्ली में पॉल्यूशन गाड़ियों की वजह से होता है. जबकि दिल्ली में थर्मल पावर प्लांट की वजह से 35 फीसदी प्रदूषण फैलता है.

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क्या कहना है गाड़ी टो करने वाले ऑपरेटर का? 

साउथ दिल्ली के ग्रेटर क्लास से गाड़ी टो कर रहे क्रेन ऑपरेटर दयाराम ने बताया कि उनको ट्रांसपोर्ट विभाग की तरफ से ऑर्डर दिया जाता है. किस इलाके से गाड़ियां उठाकर लानी हैं. जब हम वहां जाते हैं तो ट्रांसपोर्ट विभाग के अधिकारी पहले से वहां मौजूद होते हैं, वह जिन गाड़ियों को उठाने के लिए कहते हैं उनको उठाया लिया जाता है. इसके साथ गाड़ियां उठाने के बाद गाड़ी ऑनर को गाड़ी की रसीद दी जाती है. जिससे उसको उसकी गाड़ी की मौजूदा कीमत वेट के अकॉर्डिंग दी जाती है. हां अगर गाड़ी ओनर वहां नहीं है तो उसके घर के बाहर वह नोटिस चिपका भी दिया जाता है.

कहा लेकर जाते है आपकी गाड़ियां?

दिल्ली में अलग-अलग कंपनी हैं जो गाड़ियों को अल-अलग स्क्रैप यार्ड में लेकर जाती हैं. ये कंपनियां हैं एसजी जंक्यार्ड, भारत मोटर्स, Chunk Recycle इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, भारत व्हीकल रिसाइकल्स, महिंद्रा रिसाइकल्स प्राइवेट लिमिटेड. इनमें से कुछ गाड़ियों को हरियाणा, दिल्ली के अलग-अलग इलाको में लेकर जाया जा रहा है. मायापुरी, रोहिणी, वसंत कुंज जैसी जगहों में इन कंपनियों के यार्ड बन हुए हैं. दिल्ली में ज्यादातर गाड़ियों को मायापुरी लेकर जाते हैं. इसके अलावा हरियाणा के कुंडली लेकर जाया जाता है. जहां मालिक को गाड़ी की स्क्रैप वैल्यू दी जाती है.

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