
बदायूं में दो मासूमों की बेरहमी से हुई हत्या ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं. जिस खौफनाक तरीके से बच्चों को मौत के घाट उतारा गया. उससे आरोपी साजिद की मानसिक और मनोवैज्ञानिक हालत को लेकर भी कई तरह की चर्चा हो रही है. आखिर, वारदात के वक्त साजिद के दिमाग में चल क्या रहा था. क्या वह मानसिक रूप से बीमार था या फिर शांत सा दिखने वाले साजिद के अंदर कोई साइको किलर छिपा था, जो उस दिन ट्रिगर हो गया.
हर किसी के मन में बार-बार यह सवाल आ रहा है कि आखिर बच्चों से साजिद की ऐसी क्या नाराजगी होगी कि उन्हें जान से मार दिया. आरोपी का बच्चों के साथ उठना बैठना भी नहीं था. मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि सिर्फ एंगर इश्यू को लेकर इस वारदात को नहीं देखा जा सकता है. आरोपी की उम्र 22 साल के आसपास बताई जा रही है और उनका कोई क्रिमिनल रिकॉर्ड भी नहीं है.
मानसिक रूप से बीमार से बीमार था साजिद
एसएसपी आलोक प्रियदर्शी बताया कि जावेद से पूछताछ के दौरान पता चला कि साजिद मानसिक रूप से बीमार था. इस वजह से वह अक्सर एग्रेसिव भी हो जाता था. वहीं मोहल्ले वालों के मुताबिक वह शांत प्रवृत्ति का शख्स था. उसकी कभी किसी से लड़ाई झगड़े की बात भी सामने नहीं आई है. वहीं परिजनों के मुताबिक साजिद का दरगाह पर इलाज चल रहा था. साथ ही परिजनों ने बताया कि बचपन से ही वह गुस्सैल प्रवृत्ति का था.
कम उम्र में युवा हो रहे गुस्से का शिकार
किशोरावस्था में गुस्सैल होना आमबात है पुराने जमाने में भी लोगों को गुस्सा आता था पर उस वक्त लोगों को ज्यादा जानकारी भी नहीं होती थी और गाली-गलौज कर अपनी भड़ास निकला लेते थे. लेकिन आजतक के युवा अलग-अलग तरीकों से अपने गुस्सा एक्प्रेस करते हैं और कई बार खौफनाक कदम उठा लेते हैं. क्योंकि इनके पास अपने गुस्से को दिखाने के कई सोर्स हैं.
गुस्से को एक्सप्रेस करने का गलत तरीका अपनाते हैं युवा
आज के युवाओं को पता है कि वो अपने गुस्से को कई तरीके से एक्सप्रेस कर सकते हैं. गुस्से की वजह भी हमारे समाज में बहुत है. नौकरी, गरीबी, एजुकेशन की कमी, सोशल इंफ्लूएंस, क्राइम कंटेंट को ज्यादा देखना, इन वजहों से गुस्सा दिन पर दिन युवाओं में बढ़ता जा रहा है.

बच्चों से बात कर, उन्हें सिखाएं एंगर कंट्रोल
माता-पिता को भी यह सिखना चाहिए कि अगर बच्चा गुस्से में हो तो उसे कैसे समझाएं. बच्चें नहीं जानते हैं कि वो अपने एंगर को कैसे कंट्रोल कर सकते हैं. क्योंकि सिखाने वाले को ही नहीं पता होता है कि गुस्से को कैसे कंट्रोल किया जाए. इसलिए इन बातों पर डिस्कशन नहीं होता है. समाज में ऐसे बातचीत और डिस्कशन की जरूत है.
मां-पिता को समझना होगा बच्चों का एंगर इश्यू
बच्चों को अगर गुस्सा आ रहा है, या वो किसी परेशानी से जूझ रहे हैं तो उसके जिम्मेदार उनके अभिभावक हैं. हमें इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी. सिर्फ यह कह देना कि आजकल के बच्चे नहीं समझते है, इससे बात नहीं बनेगी. क्योंकि जो चीज आप अपने बच्चे को नहीं सिखा पाएं, तो कैसे उनसे अपेक्षा कर सकते हैं कि वह उन चीजों से निपटना खुद सीख जाएंगे.