बिहार विधानसभा चुनाव के लिए अभी से राजनीतिक बिसात बिछाई जाने लगी है. नीतीश कुमार और बीजेपी की नजर आरजेडी के कोर वोटबैंक पर हैं. जेडीयू-बीजेपी ने एमएलसी चुनाव में कैंडिडेट उतारकर एक तरफ जातीय समीकरण सेट करने की कवायद की है तो वहीं, नीतीश कुमार ने आरजेडी के पांच एमएलसी को तोड़कर तगड़ा झटका दिया. नीतीश कुमार के इस दांव से संभलना आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के लिए आसान नहीं होगा और पार्टी में मची भगदड़ से कार्यकर्ताओं के मनोबल पर असर पड़ सकता है?
जेडीयू और बीजेपी विधान परिषद के जरिए आगामी विधानसभा चुनाव पर दांव खेल रहे हैं. जेडीयू ने 6 जुलाई को होने वाले एमएलसी चुनाव के लिए तीन प्रत्याशी के नाम का ऐलान किया है, जिसमें जेडीयू ने गुलाम गौस, कुमुद वर्मा और भीष्म सहनी को उम्मीदवार बनाया गया है. पार्टी ने इस बार एक मुस्लिम, एक महिला और एक अत्यंत पिछड़ा समाज का उम्मीदवार उतारा है. भीष्म सहनी मल्लाह समुदाय से आते हैं और मोतिहारी इलाके से हैं. इस तरह से जातीय के साथ-साथ क्षेत्रीय समीकरण को साधने की कवायद भी की गई है.
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बीजेपी ने भी विधान परिषद के जरिए जातीय समीकरण को सेट करने की कोशिश की है. बीजेपी ने एमएलसी के लिए कायस्थ समुदाय से डॉ. संजय मयूख और ओबीसी समुदाय से आने वाले कुशवाहा जाति के सम्राट चौधरी को प्रत्याशी बनाया है. बिहार में कायस्थों की आबादी भले ही दो प्रतिशत से भी कम है, मगर इस जाति का राजनीतिक रसूख कहीं ज्यादा है और बीजेपी का परंपरागत वोटर माना जाता है. वहीं, उपेंद्र कुशवाहा की काट के लिए सम्राट चौधरी पर भरोसा जताया गया है.
नीतीश की नजर आरजेडी वोटबैंक पर
वहीं, नीतीश कुमार ने मंगलवार को आरजेडी के पांच एमएलसी को जेडीयू में शामिल कराकर तेजस्वी यादव को तगड़ा झटका दिया है. आरजेडी छोड़ जेडीयू का दामन थामन वालों में दिलीप राय यादव और कमरे आलम मुस्लिम समुदाय से आते हैं. वहीं, राधाचरण शाह अतिपिछड़ा हलवाई समुदाय से आते हैं. बता दें कि यादव, मुस्लिम, राजपूत और अतिपिछड़ा आरजेडी के परंपरागत वोटर माने जाते हैं.
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विधानसभा चुनाव से ऐन पहले नीतीश ने आरजेडी के इन नेताओं के जेडीयू में शामिल कर यह संदेश देने की कोशिश की है अब परंपरागत वोटरों का भी आरजेडी से मोहभंग हो गया है. वहीं, दलित समुदाय से आने वाले अशोक चौधरी को राज्यपाल कोटे से भेजने का आश्वासन देकर दलित कार्ड भी चला गया है. इस तरह से नीतीश एक साथ कई मोर्चे पर काम कर रहे हैं.
बिहार में बीजेपी का ओबीसी दांव
बिहार में बीजेपी के बड़े चेहरे भी पिछड़ी जाति से ही आते हैं. बीजेपी में सुशील मोदी, नंदकिशोर यादव, प्रेम कुमार, नित्यानंद राय और संजय जायसवाल सरीखे कई नेता पिछड़े समुदाय से आते हैं. वहीं, मंगल पांडे, गिरिराज सिंह और अश्वनी चौबे जैसे नेता बीजेपी के सवर्ण चेहरे माने जाते हैं लेकिन बिहार बीजेपी में सबसे ज्यादा दांव पिछड़े नेताओं पर ही खेला जा रहा है. बीजेपी ने पिछले दो बार से पिछड़े समुदाय से आने वाले नेता को ही अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दे रखी है.
बीजेपी ने संजय जायसवाल की टीम में भी पिछड़ों, अति पिछड़ों, दलित और वैश्य को खूब जगह दी है. बीजेपी की मूल टीम में 35 लोग हैं, जिसमें 20 पिछड़े, अति पिछड़े और ही दलित हैं. वहीं, सात मोर्चा और 19 प्रकोष्ठ में से 9 पिछड़े और दलित हैं. इस बार बीजेपी ने बैकवर्ड समीकरण को देखते हुए अपने संगठन और कार्यकारिणी में पिछड़े, अति पिछड़े और दलितों को जगह दी है.
आरजेडी भी अपने परंपरागत वोट बैंक को साध रही
बीजेपी-जेडीयू के चक्रव्यूह से घिरे आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने भी एमएलसी चुनाव के जरिए अपने कोर वोट बैंक पर ही दांव खेला है. लालू यादव ने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को विधान परिषद भेजने की चर्चाओं पर विराम लगाते हुए जातिगत समीकरण के लिहाज से अपने उम्मीदवार तय किए हैं. इसी के तहत राजपूत समाज से सुनील सिंह और मुस्लिम समुदाय से फारूख शेख जबकि अतिपिछड़ा समुदाय से आने वाले रामबली सिंह चंद्रवंशी को प्रत्याशी बनाया है. इस तरह से देखना है कि सेमीफाइल के जरिए बिछाए जा रहे जातीय समीकरण के बाद फाइनल कौन फतह करता है?