राजनीति में आरक्षण कार्ड कोई नई बात नहीं है. लेकिन बिहार की राजनीति में इस ओर एक नया और नायाब उदाहरण देखने को मिला है. दलितों के लिए देश के कई राज्यों में नौकरी में आरक्षण है. लेकिन बिहार सरकार अब दलितों के लिए पुलिस थानों में एसएचओ यानी थाना प्रभारी का पद भी आरक्षित करने जा रही है. पुलिस मुख्यालय के कमजोर वर्ग शाखा ने इस बाबत एक एडवाइजरी भी जारी की है.
एडवाइजरी के मुताबिक, राज्य के सभी एसपी और सीआईडी को निर्देश दिया गया है कि जिले के 17 फीसदी थानों के एसएचओ दलित-आदिवासी होने चाहिए. इनमें 16 फीसदी दलितों और 1 फीसदी पद पर आदिवासी अधिकारी होंगे. कमजोर वर्ग शाखा के एडीजी अरविंद पांडे का कहना है कि पर्याप्त संख्या में दलित अफसर होने के बावजूद थानों में एसएचओ के पद पर इनकी तैनाती काफी कम है.
हालांकि इस पूरी कवायद में पुलिस महकमा दलित एजेंडे से साफ इनकार कर रहा है. अरविंद पांडे कहते हैं, 'राज्य के एक बड़े तबके में विश्वास का भाव जगाने के लिए जरूरी है कि उन्हें भी समुचित भागीदारी मिले.' पुलिस मुख्यालय ने इस दिशा-निर्देश को सही ठहराने के लिए एक लिस्ट भी जारी की है, जिसमें साफ दिखता है कि 17 से 20 फीसदी दलित अधिकारी होने के बावजूद इनकी तैनाती महज 12 फीसदी के आसपास है.
इस लिस्ट के मुताबिक, पटना के 73 थानों में से सिर्फ 7 में दलित-आदिवासी एसएचओ तैनात हैं. इसी तरह अररिया के 13 थानों में से एक में, सीतामढ़ी के 20 थानों में से तीन में, नवगछिया में 2, लखिसराय में 3 और भागलपुर सिर्फ 6 थानों में दलित-आदिवासी एसएचओ तैनात हैं.
बहरहाल, चुनाव से ठीक पहले बिहार में सरकार की यह कवायद कई सवाल खड़े करती है तो विभागीय चिट्ठ में 'सक्षम अधिकारी' शब्द का प्रयोग भी नई बहस की ओर इशारा करती है.