बिहार सरकार कोरोना को लेकर इस बार कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है. यही वजह है कि सरकार 17 अप्रैल को होने वाली सर्वदलीय बैठक का इंतजार कर रही है लेकिन इस बीच कोरोना संक्रमण का आकंड़ा तेजी से बढ़ रहा है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि होली के दिन यानी 29 मार्च को राज्य में एक्टिव मरीजों की संख्या दो हजार थी. अब उसमें 10 गुना से भी ज्यादा बढ़ोतरी हो चुकी हैं. आसार हैं कि सर्वदलीय बैठक के बाद बिहार में भी लॉकडाउन जैसे कठिन फैसले लिए जाएं लेकिन तब तक हालात कहीं और ज्यादा ना बिगड़ जाएं.
कोरोना के बढ़ते आंकड़े को देखते हुए राज्य सरकार ने अप्रैल के पहले सप्ताह में केवल स्कूल कॉलेज और कोचिंग संस्थान 11 अप्रैल तक बंद करने का ऐलान किया लेकिन हालत बिगड़ते चले गए. जिसके बाद मुंबई और महाराष्ट्र के अलावा केरल और पंजाब से आने वाले लोगों की जांच का फैसला लिया गया है. 10 अप्रैल को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद प्रेस कॉन्फ्रेंस कर स्कूल, कॉलेज और कोचिंग संस्थानों को 18 अप्रैल तक बंद करने को कहा था. साथ ही सभी धार्मिक संस्थाओं पर आमजनों की आवाजाही पर 30 अप्रैल तक रोक लगा दी थी. साथ ही बाजार को शाम 7 बजे के बाद बंद करने का निर्देश दिया था. दफ्तारों में 33 प्रतिशत कर्मचारियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने का आदेश भी दिया गया था लेकिन उसके बाद से सरकार की तरफ से कोई कदम नहीं उठाया गया है. हालात ये है कि इस बार के कोरोना विस्फोट ने पिछले साल के रिकॉर्ड को भी पीछे छोड़ दिया है.
पटना में अस्पतालों के बेड फुल
पटना के सभी अस्पतालों के बेड कोविड मरीजों भर चुके हैं. हर अस्पताल में नोटिस लगा दिया गया है कि बेड फुल हैं. पटना में कोविड के मरीजों के लिए सभी सरकारी अस्पालों को मिलाकर 450 बेड और गैर सरकारी यानी निजी अस्पतालों में करीब 700 बेड हैं. हालांकि बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने ये जरूर आश्वासन दिया है कि अस्पतालों मे कोविड मरीजो के लिए बेड बढ़ाएं जाएंगे. पटना में ही एक्टिव मरीजों की संख्या आठ हजार के करीब है इसके अलावा राज्य के दूसरे हिस्सों से भी लोग बेहतर इलाज के लिए पटना आते हैं ऐसे में 1200-1400 बेड भी रहे तो स्थिति कैसे संभलेगी.
दूसरे राज्यों से आने वाले मजदूरों का अपने घर बिहार लौटने का सिलसिला जारी हैं. एंटीजेन टेस्ट में ही काफी संख्या में ये मजदूर पॉजिटिव पाये जा रहे हैं. महाराष्ट्र से 106 ट्रेनें बिहार आने वाली है जहां का पॉजिटिविटी रेट 25 प्रतिशत है. ऐसे में हालत क्या होंगे इसका अंदाजा लगाया जा सकता हैं. लेकिन सरकार बिल्कुल खामोश है. इंतजार हो रहा हैं कि 17 अप्रैल को राज्यपाल फागू चौहन की अध्यक्षता में होने वाली सर्वदलीय बैठक का जिसमें सरकार सर्वसम्मति से कोई फैसला लेना चाहती है ताकि उसे आलोचना का शिकार न होना पडे.
पिछले साल कोरोना की शुरूआत में सरकार ने कुछ कठोर कदम उठाए थे जिसकी विरोधियों ने आलोचना तो की लेकिन बिहार के हालात बहुत नहीं बिगड़े. लेकिन इसक साल कोरोना की दूसरी वेव पिछले साल की तुलना में ज्यादा खतरनाक है. ऐसे में बिहार सरकार को कठोर कदम उठाने चाहिए क्योंकि यहां कि स्वास्थ्य व्यवस्था बेहद कमजोर है.
पिछले साल राज्य सरकार ने नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल को कोविड अस्पताल घोषित कर दिया था जिसमें अकेले 450 बेड उपलब्ध थे. डीआरडीओ की तरफ से कोविड अस्पातल पटना के बिहटा और मुजफ्फरपुर में बनाए गए थे लेकिन इस बार ऐसी कोई तैयारी नहीं दिख रही हैं. पिछले साल राज्य सरकार ने कोविड के इलाज के लिए भारी संख्या में वेंटिलेटर और तमाम उपकरणों की खरीद की थी लेकिन उनका उपयोग कहां हो रहा है ये पता नहीं. 90 प्रतिशत लोग होम आईशोलेशन में अपना इलाज करा रहे हैं. सरकार की तरफ से मरीजों को दवाइयां दी जानी चाहिए या निगरानी होनी चाहिए वो नहीं हो रहा है.
पीएम मोदी को खत
ऐसे में नीतीश सरकार में मंत्री रहे नरेंद्र सिंह ने मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर कुछ सुझाव दिए हैं. नरेंद्र सिंह बिहार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री सुमित सिंह के पिता भी हैं. उन्होंने पत्र में कहा है कि आशा करता हूं कि आप त्वरित रूप से सुझावों पर अमल करके यश के भागीदार बनेंगे अन्याथा अगर कोरोना से लोगो की जान जाती है तो इसके लिए जिम्मेदार आप और आपकी सरकार होगी. उन्होंने लिखा है कि मैं उम्मीद करता हूं कि आप निश्चित रूप से राज्य के लोगों की जान बचाने के लिए ठोस कदम उठाकर इतिहास के काले अक्षरों में नाम लिखाने से अवश्य बचना चाहेंगे. नरेन्द्र सिंह ने अपने सुझाव में लिखा है कि जयप्रभा मेदांता अस्पताल को पूर्ण कोविड अस्पताल बनाया जाये, पूरे बिहार में जितने भी बड़े निजी अस्पताल हैं उनको कोविड के इलाज के लिए सुरक्षित किया जाये और रोगियों के इलाज पर होने वाले खर्च का वहन राज्य सरकार करें.