Kidney damage in kids: किडनी पर लोग ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं, जबकि वो हमारी बॉडी के सुपरहीरोज होते हैं. दिन-रात वो बिना ब्रेक लिए हमारे ब्लड को छानते हैं और खराब चीजों को बाहर निकालते हैं. किडनी ही शरीर में लिक्वि़ड चीजों का बैलेंस बनाए रखती है और ब्लड प्रेशर को भी कंट्रोल करती है. इतना ही नहीं हमारी हड्डियों और खून को भी हेल्दी रखने में किडनी का बड़ा रोल होता है. यह चुपचाप अपना काम करती है, जबतक कोई चीज उनका बैलेंस नहीं बिगाड़ती है.
खराब खाना और कम पानी, हाई बीपी, शुगर जैसी चीजें किडनी पर प्रेशर डालती हैं, जिसकी वजह से किडनी ठीक से काम नहीं कर पाती है और शरीर से टॉक्सिन बाहर निकलने में दिक्कत होती है. इसकी वजह से किडनी से जुड़ी गंभीर बीमारियां सामने आ सकती हैं. सिर्फ बड़े ही नहीं बल्कि छोटे बच्चों को भी किडनी एक गंभीर समस्या अपनी चपेट में ले लेती है.
नेफ्रोटिक सिंड्रोम बच्चो के लिए एक खतरनाक समस्या है, ये खासतौर पर छोटे बच्चों, जैसे प्रीस्कूल या प्राथमिक स्कूल के शुरुआती बच्चों के लिए बड़ा चैलेंज है. नेफ्रोटिक सिंड्रोम तब होता है जब किडनी के अंदर मौजूद छोटे फिल्टर खराब हो जाते हैं और पेशाब में अत्यधिक प्रोटीन रिसने लगता है. इससे कई समस्याएं शरीर में शुरू हो जाती हैं, लिक्विड जमा होने लगता है, सूजन आ जाती है और बल्ड का बैलेंस भी बिगड़ जाता है. अगर इस बीमारी का समय रहते पता ना चले तो बच्चे को भविष्य में कई बड़ी परेशानियां हो सकती हैं. इसलिए इस बीमारी के शुरुआती संकेतों को पहचानना बहुत जरूरी होता है, तभी बच्चें को आने वाले खतरे से बचाया जा सकता है.
यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें ग्लोमेरुली नाम के किडनी के फिल्टर ठीक से काम नहीं करते.जरूरी प्रोटीन पेशाब के साथ बाहर निकलने लगता है, यहीं से नेफ्रोटिक सिंड्रोम की शुरुआत होती है. इसकी वजह से शरीर में सूजन और खून में एल्ब्यूमिन की कमी हो जाती है.नेफ्रोटिक सिंड्रोम के बारे में अहमदाबाद स्थित एशियन चिल्ड्रन हॉस्पिटल के फाउंडर और चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ. इमरान पटेल ने अपनी इंस्टाग्राम पोस्ट में बताया है.उन्होंने एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें उन्होंने 6 साल के बच्चे में नेफ्रोटिक सिंड्रोम का उदाहरण दिखाया. उन्होंने इसके शुरुआती लक्षणों के बारे में भी बताया इसे हर माता-पिता को भूलकर भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.
इडियोपैथिक नेफ्रोटिक सिंड्रोम उसे कहते हैं, जिसमें इसके कारण का पता नहीं होता है और यह अचानक हो जाता है. जबकि छोटे बच्चों में सबसे आम मिनिमल चेंज डिजीज है, माइक्रोस्कोप के नीचे देखने पर किडनी लगभग नॉर्मल दिखती है, लेकिन असल में वो ठीक से काम नहीं कर रही होती है. बड़े बच्चों में कभी-कभी फोकल सेगमेंटल ग्लोमेरुलोस्क्लेरोसिस (एफएसजीएस) नामक स्थिति हो जाती है, जिसमें फिल्टर के कुछ हिस्से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं. मेम्ब्रेनस नेफ्रोपैथी भी होती है, जो इम्यूनिटी सिस्टम से संबंधित है और बच्चों में बहुत कम पाई जाती है.
ज्यादातर मामलों में 2 से 7 साल के बच्चों में नेफ्रोटिक सिंड्रोम ज्यादा होता है और लड़कियों के मुकाबले लड़कों में थोड़ा ज्यादा देखा जाता है. अधिकांश इसका कोई कारण साफ नहीं होता है, यह बस कुछ अज्ञात कारणों की वजह होता है. हालांकि कभी-कभी इसके पीछे कोई दूसरी बीमारी, इंफेक्शन या दवाओं का रिएक्शन भी हो सकता है. कई मामलों में बच्चा जन्म से पहले हुए इंफेक्शन से जुड़े नेफ्रोटिक सिंड्रोम के रूपों के साथ पैदा होता है.
डॉक्टरों के मुताबिक, सही इलाज से ज्यादातर बच्चे पूरी तरह ठीक हो सकते हैं, बस समय रहते इसके लक्षणों की पहचान करना जरूरी है.
पीडियाट्रिशियन इमरान पटेल का कहना है कि समय पर जांच, नियमित फॉलोअप और पैरेंट्स की सतर्कता से बच्चों में किडनी डैमेज को रोका जा सकता है.