Edible beads to lose weight: वजन बढ़ना और वजन कम करना आज के समय में दुनिया भर की समस्या बना हुआ है. ऐसे में वैज्ञानिक अलग-अलग तरह के अविष्कार भी कर रहे हैं. वजन कम करने वाले इंजेक्शन सामने आई ही थे कि फिर वेट लॉस पिल्स की चर्चा शुरू हो गई थी. अब खबर सामने आई है कि वैज्ञानिकों ने छोटे-छोटे एडेबल मोती (माइक्रोबीड्स) बनाए हैं जिन्हें कुछ ड्रिंक्स और मिठाइयों में मिलाया जा सकेगा और उनसे वजन कम करने में मदद मिल सकती है.
चीन के रिसर्चर्स का कहना है कि पौधों से बने ये छोटे मोती पेट से होकर भोजन नली, पेट, आंत में जा सकते हैं, जहां वे फैट से चिपक जाते हैं और उसे फंसा लेते हैं. इसका मतलब यह है कि लोग अपने भोजन से कम फैट अवशोषित करते हैं और मल के माध्यम से अधिक फैट बाहर निकालते हैं, जिससे उनकी कैलोरी बर्न कम करने और वजन कम करने में मदद मिलती है.
अमेरिकन कैमिकल सोसायटी की Fall 2025 मीटिंग में इस स्टडी को पिछले हफ्ते पेश किया गया था. सिचुआन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने चूहों पर एक स्टडी की जिसमें चूहों को खास तरह के माइक्रोबीड्स (एडेबल) खिलाए गए और परिणाम में सामने आया कि चूहों का 30 दिनों में 17 प्रतिशत वजन कम हो गया है जब कि इन चूहों का खाना 60 प्रतिशत तक फैट (चर्बी) वाला था.
लेकिन यह रिसर्च अभी शुरुआती स्तर पर है और अभी इंसानों पर भी इसकी टेस्टिंग नहीं हुई है. हालांकि, अब चीन में इंसानों पर ट्रायल करने की तैयारी हो रही है. रिसर्च करने वाली टीम को उम्मीद है कि आने वाले कुछ सालों में ये दवा बाजार में आ सकती है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि हो सकता है इन मोतियों (Beads) के कुछ साइड इफेक्ट हों, जैसे कि आंत में जलन होना या फिर शरीर में पोषक तत्वों का सही तरीके से अवशोषण न होना. लेकिन ये साइड इफेक्ट्स शायद ओजेम्पिक से होने वाले साइड इफेक्ट के मुकाबले कम हो सकते हैं.
ओजेम्पिक लेने से उल्टी, जी मिचलाना और पेट दर्द जैसी परेशानियां होती हैं और वहीं कुछ मामलों में यह अग्न्याशय में सूजन भी पैदा कर सकते है जिससे आंत ब्लॉक हो सकती है और सेप्सिस (खून में संक्रमण) या कोई और अंग फेल होने जैसी जानलेवा स्थिति भी बन सकती है.
इन माइक्रोबीड्स की खासियत ये भी है कि इनकी कीमत सस्ती हो सकती है. ओजेम्पिक अभी इंडिया में तो आधिकारिक रूप से लॉन्च नहीं हुआ है लेकिन अमेरिका में ओजेम्पिक की कीमत करीब 83,000 से 99,600 रुपये प्रति महीने (बिना इंश्योरेंस के) है.
हार्वर्ड की ओबेसिटी एक्सपर्ट डॉ. फातिमा स्टैनफोर्ड ने डेली मेल से कहा, 'यह रिसर्च वाकई उम्मीद जगाने वाली है लेकिन अभी शुरुआती स्तर पर है. यह स्टडी वजन घटाने का एक नया और रोचक तरीका दिखाती है जिसमें माइक्रोबीड्स का इस्तेमाल करके शरीर में फैट (चर्बी) के अवशोषण को ब्लॉक किया जाता है. लेकिन जानवरों पर मिले नतीजे हमेशा इंसानों पर लागू नहीं होते, क्योंकि इंसानों और जानवरों की शरीर-क्रिया और मेटाबॉलिज़्म अलग होते हैं.'
'इसकी सुरक्षा को लेकर भी कई सवाल हैं. जैसे ये आंतों की सेहत पर क्या असर डालेंगे, पोषक तत्वों के अवशोषण को कितना प्रभावित करेंगे और क्या ये शरीर में माइक्रोप्लास्टिक के रूप में जमा हो सकते हैं? इन सब पर भी अभी काफी रिसर्च करनी है. यह रिसर्च आगे के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है और मोटापे के इलाज में नई राह खोल सकती है लेकिन अभी यह कहना भी जल्दबाजी होगी कि यह अग्रणी साबित होगी या नहीं.'
इन माइक्रोबीड्स को ग्रीन टी में पाए जाने वाले प्राकृतिक यौगिक और विटामिन ई से बनाया गया है और इन पर समुद्री शैवाल की कोटिंग की गई है ताकि ये पेट के अम्ल से बच सकें. ये माइक्रोबीड्स लगभग बिना स्वाद के होते हैं. इन्हें रिसर्चर्स टैपिओका बॉल्स (0.2 से 0.4 इंच आकार की छोटी-गोल बॉल्स, जो एशियाई मिठाइयों में इस्तेमाल होती हैं) जितना बनाने की सोच रहे हैं.