
लहराती तलवारें, हाथों में बंदूकें और लाठी डंडे लेकर उत्पात मचाते उपद्रवी और बेबस पुलिस...अमृतसर के अजनाला से सामने आए इन दृश्यों को देखकर हर कोई हैरान रह गया. वारिस पंजाब दे' संगठन के प्रमुख अमृतपाल सिंह और उसके समर्थकों ने अपने एक करीबी की रिहाई को लेकर थाने पर धावा बोल दिया और उसपर कब्जा कर लिया. इसके बाद पुलिस ने अमृतपाल सिंह के करीबी लवप्रीत तूफान को बेगुनाह बताते हुए रिहा करने का आदेश दे दिया.
अमृतपाल सिंह ने थाने से खुले तौर पर खालिस्तान के मुद्दे को उठाया. उसने कहा कि हम खालिस्तान के मामले को बहुत ही शांतिपूर्ण तरीके से आगे बढ़ा रहे हैं. अमृतपाल ने कहा कि दिवंगत पीएम इंदिरा गांधी को खालिस्तान का विरोध करने की कीमत चुकानी पड़ी थी. हमें कोई नहीं रोक सकता, चाहे वह पीएम मोदी हों, अमित शाह हों या भगवंत मान. यह पहला मौका नहीं है, जब इस तरह से खालिस्तान का मामला सामने आया हो. हाल ही में कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूके में भी खालिस्तान आंदोलन देखने को मिले हैं.

ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में हिंदू मंदिरों में तोड़फोड़
ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में हाल ही में कई हिंदू मंदिरों में तोड़फोड़ की गई. इनका आरोप सीधे तौर पर खालिस्तान समर्थक आंदोलन के सदस्यों पर लगा. ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में 12 जनवरी को स्वामीनारायण मंदिर पर हमला किया गया. 16 जनवरी को विक्टोरिया में श्रीशिवा विष्णु मंदिर में तोड़फोड़ हुई, तो 23 जनवरी को मेलबर्न के इस्कॉन टेंपल में.
इतना ही नहीं शिवरात्रि पर क्वीन्सलैंड के गायत्री मंदिर को पाकिस्तान से फोन पर धमकी मिली थी. कॉल करने वाले ने मंदिर अध्यक्ष से खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने को कहा था. कॉलर ने धमकी दी थी कि खालिस्तान जिंदाबाद कहने पर ही शिवरात्रि मनाने की अनुमति होगी.

उधर, कनाडा में खालिस्तान समर्थकों ने गौरी शंकर मंदिर में तोड़फोड़ की. इस दौरान दीवारों पर खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लिखे गए. इतना ही नहीं अलग खालिस्तान की मांग को लेकर लंदन में भी आंदोलन देखने को मिलते रहे हैं.
हमलों के पीछे SFJ का हाथ
ऑस्ट्रेलिया में भारतीय उच्चायोग ने मेलबर्न में हिंदू मंदिरों में तोड़फोड़ की घटना की कड़ी निंदा की थी. उच्चायोग ने कहा था, जिस तेजी से इस तरह की घटनाएं बढ़ी हैं, वे खतरनाक और चिंताजनक हैं. इनमें भारत-विरोधी आतंकवादियों का महिमामंडन शामिल है. ये घटनाएं शांतिपूर्ण बहु-सांस्कृतिक भारतीय-ऑस्ट्रेलियाई समुदाय के बीच घृणा और विभाजन पैदा करने का प्रयास है. बयान में कहा गया था कि संकेत हैं कि खालिस्तान समर्थकऑस्ट्रेलिया में अपनी गतिविधियों को आगे बढ़ा रहे हैं. सिख फॉर जस्टिस जैसे प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों और अन्य ऑस्ट्रेलिया से बाहर अन्य दुश्मन एजेसियों द्वारा इसे बढ़ावा दिया जा रहा है.
पाकिस्तान में बैठे आतंकी भी भड़का रहे आग
माना जाता है कि जब से जम्मू कश्मीर में सुरक्षाबलों ने आतंकियों को की कमर तोड़ दी है. तब से पाकिस्तान और उसकी एजेंसियों ने अपनी दूसरी मुहिम तेज कर दी है. इनमें खालिस्तानी आंदोलन भी शामिल है. पाकिस्तान में बैठे आतंकी आका पंजाब में आतंकी घटनाओं द्वारा माहौल बिगाड़ने का प्रयास करते रहे हैं. पिछले कुछ महीनों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें आरोपियों के तार पाकिस्तान से सीधे मिले हैं.
अमृतपाल का दुबई कनेक्शन
अमृतपाल 2012 से दुबई में रह रहा था. वहां उसने ट्रांसपोर्ट का कारोबार किया. उसके ज्यादातर रिश्तेदार दुबई में रहते हैं. अमृतपाल ने शुरुआती शिक्षा गांव के ही स्कूल में पूरी की. उसने 12वीं तक पढ़ाई की है. वह हाल ही में भारत आया है. वह वारिस पंजाब दे संगठन का प्रमुख है. इसे अभिनेता दीप सिद्धू ने बनाया था. दीप सिद्धू की पिछले साल फरवरी में सड़क हादसे में मौत हो गई थी. दीप सिद्धू की मौत के बाद अमृतपाल सिंह ने संगठन की कमान संभाली.

खालिस्तान को पनपने नहीं देंगे- अमित शाह
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में चर्चा में आईं खालिस्तानी घटनाओं को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा था कि पहले भी ऐसी चर्चाएं चलती रही हैं. लेकिन खालिस्तान पर हम नजर बनाए हुए हैं, हम इसे पनपने नहीं देंगे. खालिस्तान पर कनाडा, यूके से बात करने के सवाल पर शाह ने कहा कि टीवी चैनल पर इंटरव्यू में इस तरह के मुद्दों पर बात करना आंतरिक सुरक्षा के लिए ठीक नहीं है.
खालिस्तान आंदोलन और उसका इतिहास
- 31 दिसंबर 1929 में लाहौर अधिवेशन में शिरोमणि अकाली दल के मास्टर तारा सिंह ने हली बार सिखों के लिए अलग राज्य की मांग की थी. आजादी के बाद भारत का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान अलग देश बना. इससे पंजाब भी दो हिस्सों में बंट गया. एक हिस्सा पाकिस्तान के पास गया और दूसरा हिस्सा भारत में रहा. इसके बाद अकाली दल ने सिखों के लिए अलग प्रदेश की मांग तेज कर दी. इसी मांग को लेकर 1947 में 'पंजाबी सूबा आंदोलन' शुरू हुआ.
- सिखों के लिए अलग राज्य की मांग को लेकर 19 साल तक आंदोलन चला. 1966 में इंदिरा गांधी ने इस मांग को मान लिया. इंदिरा गांधी की सरकार में पंजाब को तीन हिस्सों में बांटा गया. सिखों के लिए पंजाब, हिंदी बोलने वालों के लिए हरियाणा और तीसरा हिस्सा चंडीगढ़ था.
- 1969 में पंजाब में विधानसभा चुनाव हुए. इस चुनाव में टांडा विधानसभा सीट से रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया के उम्मीदवार जगजीत सिंह चौहान भी खड़े हुए, लेकिन हार गए. चुनाव हारने के बाद जगजीत सिंह चौहान ब्रिटेन चले गए और वहां खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत की. खालिस्तान यानी खालसाओं का देश.
- 1980 के दशक में पंजाब में हिंसक घटनाएं बढ़ने लगीं. इन घटनाओं के पीछे जरनैल सिंह भिंडरावाले का नाम आया. 1982 में भिंडरावाले ने स्वर्ण मंदिर को अपना घर बना लिया. कुछ महीनों बाद भिंडरावाले ने सिख धर्म की सर्वोच्च संस्था अकाल तख्त से अपने विचार रखने शुरू कर दिए. जल्द अलग खालिस्तान की घोषणा होने वाली थी. इसके खिलाफ इंदिरा गांधी की सरकार ने 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' लॉन्च किया. 6 जून को भिंडरावाले को मार दिया गया.
- भिंडरावाले की मौत के चार महीने बाद ही 31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उनके दो सिख बॉडीगार्ड्स सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने कर दी. इसके बाद देशभर में सिख विरोधी दंगे हुए.
- 23 जून 1985 को कनाडा के मोन्ट्रियल से लंदन जा रही एअर इंडिया की फ्लाइट को हवा में ही बम से उड़ा दिया गया. इससे विमान में सवार सभी 329 यात्रियों और क्रू मेंबर्स की मौत हो गई. बब्बर खालसा ने इस हमले की जिम्मेदारी लेते हुए इसे भिंडरावाले की मौत का बदला बताया था.
- 31 अगस्त 1995 को एक सुसाइड बॉम्बर ने पंजाब के सीएम बेअंत सिंह की कार के सामने खुद को उड़ा लिया. इसमें बेअंत सिंह की मौत हो गई.
- हालांकि, इसके बाद भारत में खालिस्तानी घटनाएं कम हो गईं. लेकिन भारत के बाहर ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में आंदोलन होते रहे, इनमें खालिस्तान की मांग जारी रही.