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कभी बाहरियों के लिए कसकर बंद थे दरवाजे, अब क्यों जापान अपने शहरों को अफ्रीकी युवाओं का होमटाउन बना रहा?

जापान अपने चार शहरों को अफ्रीकी लोगों का होमटाउन बनाने जा रहा है. यानी इन शहरों में चुने हुए अफ्रीकी देशों तंजानिया, नाइजीरिया, घाना और मोजाम्बिक के लोग बस सकेंगे. अब तक जापान अपनी बेहद, या यूं कहें कि सबसे सख्त प्रवासी नीतियों के लिए जाना जाता रहा. फिर क्या वजह है, जो वो गरीब मुल्कों से लोगों को बुला रहा है?

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जापान में सालाना मृत्यु दर, जन्म दर से काफी ऊपर जा चुकी. (Photo- Unsplash)
जापान में सालाना मृत्यु दर, जन्म दर से काफी ऊपर जा चुकी. (Photo- Unsplash)

जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (जेआईसीए) ने हाल में एलान किया कि वो देश के चार शहरों को चुनिंदा अफ्रीकी लोगों का होमटाउन बना देगा. यहां अफ्रीकी आबादी न केवल बस सकेगी, बल्कि उसे अपना घर मान सकेगी. ये तब है जबकि जापान वीजा देने के मामले में दुनिया के सबसे सख्त देशों में गिना जाता रहा. इस एशियाई देशों में लंबी पड़ताल के बाद भी कम ही लोगों को एंट्री मिलती रही. यहां तक कि अपनी भाषा को लेकर भी जापान में एक किस्म की जिद रही. फिर क्यों ये देश एकाएक अफ्रीका को लेकर उदार हो रहा है?

जापान की आबादी तेजी से बूढ़ी हो रही है. वहीं अफ्रीका में सबसे ज्यादा युवा हैं. जापान अमीर है, जबकि अफ्रीका इकनॉमिक स्तर पर स्ट्रगल कर रहा है. दोनों की जरूरतें मिल-जुलकर पूरी हो सकती हैं. यही हो रहा है. अब तक अपनी सीमाओं को लगभग बंद रखता आया जापान अब अपने यहां अफ्रीकी आबादी को जगह दे रहा है.

आंकड़े भी जापान की हालत को बताते हैं. साल 2024 में यहां जन्म की तुलना में एक मिलियन से ज्यादा मौतें हुईं. टोक्यो सरकार इसे साइलेंट इमरजेंसी मान चुकी. 

क्या देश में अपने स्तर पर कोई कोशिश नहीं हुई

यहां बर्थ रेट बढ़ाने पर जोर दिया गया. महिलाओं पर से काम का बोझ कम किया गया. यहां तक कि जन्म पर इंसेंटिव और लंबी छुट्टियों का वादा भी हुआ, लेकिन बेकार. जापान में बर्थ रेट का ग्राफ नीचे ही रहा. अब डेमोग्राफी सुधारने के लिए वहां नया तरीका निकाला गया. टोक्यो चार अफ्रीकी देशों से अपने यहां युवा जोड़े लेकर आएगा और उन्हें चार अलग-अलग शहरों में बसाएगा. 

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कहां, किसे बसाने का प्लान

तंजानिया के लोग नगाई शहर में, नाइजीरियन्स किसाराजु में,  घाना की आबादी सन्जो में और मोजाम्बिक के लोग इमाबारी में बसाए जाएंगे. द जापान टाइम्स के मुताबिक, ह्यूमन रिसोर्स के इस लेनदेन में उम्मीद की जा रही है कि जापान की आबादी का गिरता ग्राफ ठहर जाएगा. इन चुने हुए जापानी शहरों में स्थानीय आबादी काफी कम है या पलायन कर चुकी, जिसकी वजह से खाली घर लगातार बढ़ रहे हैं. कामकाजी लोगों की कमी की वजह से शहर भूतिया टाउन में बदल रहे हैं. 

japan welcoming youth immigrants (Photo- Unsplash)
जापान चुने हुए अफ्रीकी देशों से युवा आबादी को अपने यहां बसाने की तैयारी में है. (Photo- Unsplash)

नए लोग शरणार्थी होंगे, या कुछ और

नहीं. ये इमिग्रेशन स्कीम के तहत लाए जाएंगे. मतलब इन्हें वर्क या स्टडी वीजा दिया जाएगा. साथ ही काम पूरा होने के बाद भी उन्हें लंबे समय के लिए वीजा मिल सकेगा ताकि वे लॉन्ग टर्म में रहना प्लान कर सकें. युवा आबादी को लाने पर जोर दिया जाएगा, जो भाषा और कल्चर जल्दी सीख सकें. साथ ही उन्हें ट्रेनिंग भी दी जाएगी ताकि वर्कफोर्स बढ़ सके. 

होमटाउन कहने का क्या मतलब है

जब भी लोग किसी नए देश में आते हैं, उन्हें बड़ा कल्चरल शॉक लगता है. कई बार ये इतना ज्यादा होता है कि वे नई संस्कृति से घुलने-मिलने की बजाए, उससे भागने लगते हैं. इससे तनाव पैदा होता है. जैसा कि कई ऐसे मुल्कों में दिखता रहा, जो रिफ्यूजियों को शरण देते हैं. जापान ऐसे लोगों को 'घर से दूर घर' की तरह महसूस कराने की कोशिश में है. इसी वजह से उनके लिए शहर बसाए जाएंगे, जहां उनके समुदाय के लोग हों और उनकी जरूरतों का भी सामान मिल सके. 

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इससे पहले ये देश बाहरी लोगों को अपनाने के मामले में काफी सख्त रहा. वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू के मुताबिक, साल 2022 में जापान ने केवल दो सौ से कुछ ज्यादा शरणार्थियों को अपनाया था. वही साल 2023 में ये संख्या बढ़कर तीन सौ पार हो गई, जो कि पिछले कई सालों में सबसे ज्यादा है. अमीर और तकनीकी तौर पर एडवांस जापान में फिलहाल उम्रदराज आबादी इतनी बढ़ चुकी कि यहां तक नौबत आ गई.

अब तक क्या हाल रहा टोक्यो का

कल्चर बचाने के नाम पर उसने ऐसी नीतियां बना रखी हैं कि रिफ्यूजी थककर उम्मीद छोड़ दें. जैसे अगर किसी ने तीन बार शरण के लिए आवेदन कर दिया हो तो वो अपने-आप रिजेक्ट हो जाएगा. यूएन की शरणार्थी एजेंसी यूएनएचआरसी का कहना है कि जापान सिर्फ उनको शरण देने की बात करता है जो खुद पर आई मुसीबत को साबित कर सकें. ये साबित करना आसान नहीं, साथ ही प्रोसेस काफी लंबी होती है. बहुत से दस्तावेज जमा करने होते हैं, जो आमतौर पर युद्ध या आपदा से बचकर भागे लोगों के पास मिलना मुश्किल है. 

african youth population (Photo- Unsplash)
अफ्रीकी आबादी को कल्चरल शॉक से बचाने के लिए उनके हिसाब से शहर तैयार होंगे. (Photo- Unsplash)

धर्म भी हो सकता है एक मसला

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आमंत्रित किए जा रहे चारों ही देशों में मुस्लिम आबादी काफी मजबूत है. ऐसे में एक सवाल ये भी आ रहा है कि क्या नए लोग जापान के कल्चर से घुलमिल पाएंगे. दरअसल जापानी संस्कृति काफी सख्त मानी जाती है. वहां के लोग बाहरी लोगों को आसानी से स्वीकार नहीं करते. यही वजह है कि जापान हमेशा से इमिग्रेशन को लेकर हिचकता रहा है. वहां मुस्लिम शरणार्थियों का विरोध भी इसी कारण रहा. लोग मानते हैं कि नए कल्चर और धार्मिक तौर-तरीकों से जापान की सामाजिक व्यवस्था पर असर पड़ेगा. 

पहले भी बरतता रहा दूरी

मुस्लिम शरणार्थियों को लेकर जापान का सख्त रवैया कोई नई बात नहीं. सीरियाई संकट के दौरान जब यूरोप लाखों शरणार्थियों को अपना रहा था, जापान ने गिनती के लोगों को ही शरण दी. जापान में कुल मुस्लिम आबादी अभी भी बहुत कम है. ऐसे में वहां के समाज को इस्लामिक कल्चर की उतनी समझ नहीं है. यही वजह है कि जब मुस्लिम देशों से लोग आते हैं, तो तौर-तरीके लगभग नास्तिक या बौद्ध धर्म को मानते जापानियों को अलग लगते हैं. भाषा भी बड़ी रुकावट रही. 

अब क्या बदल सकता है

अफ्रीकी देशों से आने वाले लोगों की स्थिति कुछ अलग हो सकती है. नाइजीरिया और घाना जैसे देशों से आने वाले लोग मिले-जुले समुदायों से हैं, जैसे मुस्लिम और क्रिश्चियन भी. यानी जापान एक तरह का कल्चरल मिक्स लेकर आ रहा है. अगर वो नई आबादी की सही तरीके से ट्रेनिंग और भाषा सिखाने पर इनवेस्ट कर सके, तो वर्कफोर्स और घटती आबादी, दोनों की कमी पूरी हो सकेगी, बशर्तें स्थानीय लोगों को इससे एतराज न हो. 

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