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PAK के आतंकी कैंप ट्रेनिंग देते, जबकि PoK शिविर लॉन्चिंग पैड बने रहे, क्या-क्या चलता था इन आतंकी शिविरों में?

भारत ने पहलगाम हमले के जवाब में ऑपरेशन सिंदूर चलाते हुए पाकिस्तान और PoK में एयर स्ट्राइक की, जिसमें 21 आतंकी ठिकाने खत्म हो चुके. टैररिस्ट इन्हीं आतंकी बेसकैंप्स में ठहरते और ट्रेनिंग लेते थे. शुरुआती मीडिया रिपोर्ट्स में 9 कैंप नष्ट हुए माने जा रहे थे, जबकि हमलों के बाद रक्षा मंत्रालय ने कुल 21 आतंकी कैंपों की लिस्ट जारी की, जो सवाई नाला से लेकर बहावलपुर तक फैले हुए हैं.

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भारतीय सेना ने पाकिस्तान और पीओके दोनों जगहों पर आतंक को निशाना बनाया. (Photo- AP)
भारतीय सेना ने पाकिस्तान और पीओके दोनों जगहों पर आतंक को निशाना बनाया. (Photo- AP)

पहलगाम आतंकी हमले पर जवाबी कार्रवाई करते हुए इंडियन आर्मी ने 6 मई की देर रात पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक कर दी. ऑपरेशन सिंदूर नाम के इस सैन्य एक्शन की खास बात ये रही कि हमले छांट-छांटकर आतंकी कैंपों पर किए गए. रक्षा मंत्रालय ने कुल 21 टैरर कैंपों की लिस्ट जारी की, जो करीब 25 मिनट के भीतर मिट्टी में मिल गए. पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में बसे इन शिविरों का काम करने का तरीका और आतंकियों की संख्या काफी अलग हुआ करती थी. 

ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारतीय सेना ने पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले PoK में 21 ठिकानों को निशाना बनाया. जिन 21 जगहों पर आतंकी ठिकाने खत्म किए गए, उनके नाम हैं- सवाई नाला, सैयदना बिलाल, मस्कर-ए-अक्सा, चेलाबंदी, अब्दुल्ला बिन मसूद, डुलाई, गढ़ी हबीबुल्लाह, बतरासी, बालाकोट, ओघी, बोई, सेनासा, गुलपुर, कोटली, बराली, डुंगी, बर्नाला, महमूना जोया, सरजाल, मुरीदके और बहावलपुर.

इनमें एक जगह पर भी कई-कई कैंप थे, जैसे सियालकोट में हिजबुल मुजाहिदीन और जैश-ए-मोहम्मद दोनों के ट्रेनिंग शिविर थे. फिलहाल उन कैंपों को टारगेट किया गया, जहां बड़ी ट्रेनिंग्स होती हैं. 

क्यों पाकिस्तान और पीओके दोनों जगहों पर हुआ एक्शन

दरअसल दोनों जगहों पर अलग-अलग काम होते हैं. वैसे तो दोनों के मकसद एक हैं, लेकिन काम करने और संचालन का तरीका अलग है. जैसे, पीओके की बात करें तो ये आतंकी कैंप लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल के काफी करीब हैं. यहां नए आतंकी नहीं आते, बल्कि वही लोग रखे जाते हैं जो पाकिस्तान के ट्रेनिंग कैंपों में प्रशिक्षण पाकर आए हों.

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terror camps pakistan photo PTI

क्या होता है पीओके स्थित शिविरों में

इन्हें एलओसी के करीब रखते हुए भौगोलिक स्थिति से वाकिफ कराया जाता है, साथ ही घुसपैठ की ट्रेनिंग दी जाती है कि कैसे भारतीय सीमा में जाना है. कई बार आतंकी लंबे वक्त के लिए जंगलों में छिपे होते हैं. उनकी इसके लिए भी सर्वाइवल ट्रेनिंग चलती है. कई कैंपों जैसे गुलपुर, सैयदना बिलाल या सवाई नाला में खासतौर पर रूट प्लानिंग सिखाई जाती है. यानी ये एक तरह का फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस होते हैं, जहां से पके-पकाए आतंकी फटाक से भारतीय सीमा में भेजे जा सकें. 

यहां कैंप छोटे, तेजी से काम करने वाले और फील्ड ऑपरेशनल होते हैं. जैसे ही पाकिस्तानी सेना या आईएसआई इशारा करती है, ये अपना काम करने निकल जाते हैं. साथ ही यहां कमजोर आर्थिक हालात वाले या कट्टरपंथी सोच वाले युवाओं को जोड़कर उन्हें आत्मघाती हमलों के लिए भी तैयार किया जाता है. 

पाकिस्तान के भीतर बसे शिविरों में सालों ट्रेनिंग

अब बात करें, पाकिस्तान के अंदरूनी इलाकों में स्थित कैंपों की, तो वे ज्यादा सेफ होते हैं क्योंकि एलओसी के करीब न होने की वजह से इनपर उतनी निगरानी नहीं हो सकती. यहां लंबे समय तक चलने वाली ट्रेनिंग्स चलती हैं. विदेशी आतंकियों को भी यहीं पर प्रशिक्षित किया जाता रहा, जैसे अजमल कसाब और डेविड हेडली को मुरीदके में रखा गया था.

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यहां छुटपुट नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर होने वाले हमलों की प्लानिंग बनाई जाती है. बता दें कि यहां मध्य एशिया, खाड़ी और अफगानिस्तान से भी कट्टरपंथी सोच वालों की भर्तियां होती रहीं. देश के अंदर मौजूद इन शिविरों में आईएसआई और पाकिस्तानी सेना का ज्यादा दखल रहता है. यहां पर कम उम्र के बच्चे भी रखे जाते हैं जिन्हें सालों की ट्रेनिंग देकर पूरी तरह से आतंकवादी बना दिया जाता है, जिसका बाहरी दुनिया और इंसानियत से कोई नाता न हो. 

terrorists pakistan photo- Getty Images

फिलहाल 21 बड़े शिविर खत्म किए गए लेकिन पाकिस्तान और पीओके में इससे कहीं ज्यादा कैंप हो सकते हैं. कई बार जारी रिपोर्ट्स के मुताबिक ज्यादातर कैंप मोबाइल होते हैं, मतलब अपना ठिकाना बदलते रहते हैं ताकि सुरक्षित रह सकें. पीओके में ऐसा खासतौर पर होता है ताकि सुरक्षा एजेंसियों की नजर से बचे रहें. 

कैंपों के भी कई टाइप 

- ट्रेनिंग कैंपों में आतंकियों को हथियार चलाने, बम बनाने और घुसपैठ की ट्रेनिंग दी जाती है. 

- लॉन्च पैड्स एलओसी के पास वो अस्थाई ठिकाने हैं, जहां से भारत की सीमा पार होती है. 

- रैडिकलाइजेशन सेंटर भी हैं, जो कम उम्र के लड़कों को कट्टरपंथी बनाते हैं ताकि वे आतंकी बन सकें. 

क्यों आतंकियों को पालती-पोसती रही पाकिस्तान सरकार

सरकार भले ही इनकार करे, लेकिन आतंकी सरकार और सेना दोनों का हिस्सा रहे. ये टैररिस्ट संगठनों को स्ट्रैटजिक एसेस मानते रहे ताकि अपना मतलब निकाल सकें. जैसे भारत, अफगानिस्तान या किसी भी देश में अस्थिरता पैदा करते हुए अपना असर और पकड़ बढ़ाना. मसलन, अस्सी के दशक में सोवियत संघ के खिलाफ अमेरिका और पाकिस्तान ने मिलकर मुजाहिदीन तैयार किए. यहीं से पाकिस्तान को आउटसोर्स्ड मिलिट्री पावर का स्वाद मिला. या फिर भारत का मसला लें तो इस्लामाबाद जानता है कि वो युद्ध में नहीं जीत सकता, लिहाजा आतंकवादी हमले करता रहता है. 

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