UNSC यानी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को दुनिया का मुखिया कहा जा सकता है. इसमें दुनिया के पांच ताकतवर देश हैं, जिनके फैसलों पर शायद ही कोई एतराज कर सके. इसी परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए भारत भी कोशिश करता रहा. एक तरफ चीन इसमें रोड़े अटकाता रहा, वहीं रूस भारत की पैरवी करता रहा. दिल्ली को अगर सुरक्षा परिषद की मेंबरशिप मिले तो इसमें मॉस्को का बड़ा रोल होगा.
क्यों यूएनएससी में शामिल होना बड़ी बात
यह संयुक्त राष्ट्र का सबसे शक्तिशाली अंग है जो अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए जिम्मेदार है. काउंसिल शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए तमाम बड़े फैसले लेती है, जिनका संबंध भू-राजनीति से है. इसमें किसी देश पर सैन्य कार्रवाई करने से लेकर अंतरराष्ट्रीय अदालत के लिए जजों का चुनाव भी शामिल है. यहां तक कि यह परमाणु सुरक्षा से जुड़े फैसले भी ले सकता है.
काउंसिल में पांच स्थायी सदस्य हैं - अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन. इसके अलावा 10 अस्थायी सदस्य भी रखे जाते हैं लेकिन उनकी शक्ति भी बेहद कम होती है. देश लंबे वक्त से चाहता रहा कि उसे यूएनएससी में शामिल कर लिया जाए ताकि वो भी बड़े फैसलों को ज्यादा निष्पक्ष तरीके से ले सके. एक फायदा और है.
काउंसिल की सदस्यता से भारत के पास वीटो पावर आ जाएगी जिससे वो गलत निर्णयों पर रोक भी लगा सकता है. इंटरनेशनल मंच पर वजूद की वजह से भारत बॉर्डर पर हो रहे आतंकवाद को भी ज्यादा मजबूती से रोक सकेगा.

फिर कहां अटक रही बात
भारत कई सालों से UNSC सदस्य बनने की कोशिश कर रहा है. उसे P5 में जगह चाहिए, यानी अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन जैसी पक्की सदस्यता. इस मांग की वजह भी है. भारत आबादी, सैन्य और आर्थिक तीनों ही तौर पर बेहद मजबूत है. ऐसे में ग्लोबल प्रतिनिधित्व की बात करें तो उसका हिस्सा भी होना चाहिए. लेकिन ये मामला अब तक अटका हुआ है. वजह है, पक्की सहमति न होना. कुछ देशों को डर है कि अगर नए स्थायी सदस्य आ गए, तो उनकी ताकत कम हो जाएगी.
इसमें चीन सबसे ऊपर है. वो भारत और पाकिस्तान विवाद की आग में घी डालता रहता है. ऐसे में भारत अगर स्थायी हो गया तो बॉर्डर पर अस्थिरता कम हो जाएगी. चीन को यह डर भी है कि भारत के संबंध बाकी चार देशों से अच्छे हैं, और स्थायी होते ही रिश्ते और सुधर जाएंगे. तब चीन अलग-थलग पड़ सकता है.
यही वजह है कि जैसे ही भारत की पक्की सदस्यता का प्रस्ताव आता है, चीन फट से उसे खारिज कर देता है. हालांकि रूस अब तक काफी जोर लगा चुका कि भारत को मेंबरशिप मिल जाए.
रूस को इससे क्या फायदा
- इससे भू-राजनीतिक संतुलन दिखेगा. जैसे रूस को ग्लोबल मंच पर भारत का सपोर्ट मिल सकता है और चीन और अमेरिका जैसी ताकतें अपना दायरा समझ सकती हैं.
- भारत और रूस के बीच लंबे समय से रक्षा और सैन्य सहयोग है. स्थायी सदस्यता से रक्षा और आतंकवाद विरोधी प्रयासों में ताकत बढ़ेगी.
- भारत रूस के तेल, गैस और ऊर्जा निर्यात का बड़ा ग्राहक रहा. मेंबरशिप के बाद दोनों के व्यापार और निवेश को राजनीतिक सहारा मिलेगा.

रूस कब-कब खुलकर दे चुका साथ
- साल 1955 में रूस (तब सोवियत संघ) ने भारत की स्थायी सदस्यता पर पहली बार बात की थी.
- सत्तर के दशक में भी कई हाई लेवल मीटिंग्स में वो ये बात करता दिखा.
- नब्बे में भारत की डेमोक्रेसी और आर्थिक योगदान के हवाले से इसका जिक्र किया.
- साल 2005 में एक बार फिर रूस ने संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी सदस्यता की मांग उठाई.
- पिछले डेढ़ दशक में भी BRICS और कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर रूस ने बार-बार भारत की दावेदारी को सहारा दिया.
अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस भी भारत की दावेदारी पर ठप्पा लगा चुके, लेकिन इस मुद्दे पर रूस जितना आक्रामक कोई देश नहीं. चीन का वीटो भारत की सदस्यता के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा रहा. दरअसल, UNSC में P5 के पास वीटो पावर है, यानी अगर कोई स्थायी सदस्य किसी प्रस्ताव के खिलाफ वोट करे तो वह प्रस्ताव पास नहीं हो पाता. इसमें मेजोरिटी या माइनोरिटी जैसा कुछ नहीं. एक का वीटो भी बाकी चारों की मर्जी के खिलाफ टिका रह सकता है.
लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कोई रास्ता नहीं बचा
राजनीतिक समझौते और दबाव से वीटो को टाला या कम किया जा सकता है. मसलन, अगर बाकी तीन देश भी रूस के साथ खड़े हो जाएं तो चीन पर राजनीतिक दबाव काफी बढ़ सकता है. चीन के अड़ियल रवैये को देखते हुए ही सुरक्षा परिषद में रिफॉर्म की बात हो रही है ताकि एक वीटो बाकी सबको कमजोर न बना दे.