फरवरी 2026 में रूस-यूक्रेन युद्ध को चार साल हो जाएंगे. इस बीच शांति की कई कोशिशें हो चुकीं. यहां तक कि ग्लोबल मुखिया अमेरिका भी 28-सूत्रीय पीस प्लान ला चुका. रूस की अपनी शर्तें हैं. उसका कहना है कि डोनबास क्षेत्र, जो कि खुद को यूक्रेन से ज्यादा रूस के करीब पाता है, आधिकारिक तौर पर उसके हवाले कर दिया जाए. ये वो इलाके हैं, जो लगभग दशकभर पहले खुद को यूक्रेन से आजाद घोषित कर चुके थे, और बाद में जिन्होंने रूस के साथ आने की इच्छा जताई.
रूस और यूक्रेन की कहानी राजकुमार और राक्षस की कहानी की तरह सीधी-सादी नहीं, बल्कि बेहद उलझी हुई है. इसमें चेहरे बार-बार रंग बदलते हैं. हाल में अमेरिका ने मध्यस्थता करते हुए कहा कि यूक्रेन को बात मानते हुए अपने कुछ हिस्से रूस को सौंप देने चाहिए. ये वही यूक्रेन है, जिसपर पिछले सालों में अमेरिका भारी पैसे लगा चुका. लेकिन अब सुपरपावर मॉस्को के पाले में दिख रहा है.
प्रस्तावित हिस्सों के बारे में रूस और यूक्रेन दोनों का अलग-अलग कहना है. राष्ट्रपति पुतिन के मुताबिक, यूक्रेन में कई चीजें अलग हैं, जैसे वहां रूसी भाषा बोलने वालों या ऑर्थोडॉक्स चर्च को मानने वालों के साथ हिंसा होती थी. इससे तंग आकर डोनबास क्षेत्र के दो इलाकों- डोनेट्स्क और लुहान्स्क ने खुद को अलग रिपब्लिक घोषित कर दिया.

रूस लंबे समय तक चुप्पी साधे रहा कि यूक्रेन इन हिस्सों को अपनाएगा या उनकी बात मानेगा, लेकिन ऐसा न होने पर रूस को ही आगे आकर उन्हें मान्यता देनी पड़ी. ये रूस का बयान है. यूक्रेन इससे अलग बात कहता है. उसके मुताबिक, रूस ने इन भागों में अलगाववाद को हवा दी और फिर अलग हो जाने के बाद रेफरेंडम कराते हुए उन्हें अपने से मिला मान लिया.
आज स्थिति ये है कि डोनेट्स्क और लुहान्स्क को मॉस्को अपना मानता है, जबकि यूक्रेन उन्हें छोड़ने को राजी नहीं. लेकिन इन हिस्सों की कहानी भी है, जो अलग है.
डोनाबास में आने वाले डोनेट्स्क और लुहान्स्क ऐतिहासिक रूप से ऐसे इलाके रहे हैं, जहां रूसी बोलने वाले काफी ज्यादा हैं. ये सोवियत काल से ही है. भाषा की वजह से रूस का सांस्कृतिक असर भी यहां गहरा रहा. सोवियत संघ के टूटने के बाद भी ये नहीं टूटा बल्कि लोग खुद को एथनिकली रशियन कहने लगे. वे रूस को सांस्कृतिक घर की तरह देखते. दूसरी तरफ वे यूक्रेन को खुद से अलग पाते थे. भाषा तो अलग थी ही, रहन-सहन भी अलग था. बंटवारे के बाद यूक्रेन ने समय देने की बजाए दोनों इलाकों पर खुद को थोपना शुरू कर दिया. उनपर यूक्रेनी भाषा को अपनाने का दबाव बढ़ा.

जब 2014 में कीव में पश्चिम-समर्थक सरकार आई, तो डोनबास में कई लोगों को लगा कि उनकी राजनीतिक पसंद हाशिए पर चली गई. यह डर विद्रोह की शुरुआत का बड़ा कारण बना. कथित तौर पर रूस ने भी इस डर को हवा दी. उसने जताया कि वो अपने रूसी-भाषी लोगों के साथ है. इससे वहां के अलगाववादी समूह मजबूत हो गए.
मार्च 2014 में जब मॉस्को ने क्रीमिया को अपने में शामिल किया तब अलगाववादियों को लगा कि अगर हम अलग देश घोषित करें, तो रूस हमें भी बचाने आएगा. आम लोग भी यही चाहते थे. वहां माइन्स और कारखाने बंद हो रहे थे और बेरोजगारी बढ़ चुकी थी. लोगों को लगता था कि कीव सरकार उनकी परवाह नहीं करती, जबकि रूस उनका अपना है. बस, बगावत हुई और दोनों ही इलाकों ने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया.
साल 2022 में युद्ध के बीच ही डोनबास में एक जनमत संग्रह हुआ, जिसमें कथित तौर पर लोगों ने माना कि वे रूस का हिस्सा बनना चाहते हैं. अब शांति प्रस्ताव में अमेरिका ने खुद इन क्षेत्रों को रूस को देने का प्रस्ताव दिया है. यूक्रेन फिलहाल इसके लिए राजी नहीं दिखता, लेकिन अमेरिका खुद रूस के साथ दिख रहा है. ऐसे में बड़े उलटफेर से इनकार नहीं किया जा सकता.