
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को फिर से अपना सरकारी बंगला मिल गया है. सोमवार को ही उनकी लोकसभा की सदस्यता बहाल हुई है. लोकसभा की हाउसिंग कमेटी ने राहुल को उनका सरकारी बंगला 12, तुगलक लेन अलॉट कर दिया है.
इस साल मार्च में सूरत कोर्ट ने 'मोदी सरनेम' पर टिप्पणी करने पर राहुल को दो साल की सजा सुनाई थी. इसके बाद उनकी लोकसभा की सदस्यता निरस्त हो गई थी, इसलिए उन्हें सरकारी बंगला खाली करना पड़ा था.
लेकिन बीते हफ्ते सुप्रीम कोर्ट की ओर से सजा पर रोक लगाए जाने के बाद उनकी सांसदी फिर से बहाल कर दी गई. इसके साथ ही अब उन्हें फिर से सरकारी बंगला अलॉट कर दिया गया है.
हालांकि, राहुल अब तक इसमें शिफ्ट नहीं हुए हैं. राहुल 12, तुगलक लेन में 2005 से रह रहे थे. ये बंगला खाली करने के बाद से राहुल अपनी मां सोनिया गांधी के साथ 10, जनपथ में रह रहे थे.
कैसे मिलता है सरकारी बंगला?
- राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रियों, सुप्रीम कोर्ट के जजों, सांसदों और ब्यूरोक्रेट्स को दिल्ली में जो सरकारी आवास दिए जाते हैं, वो लुटियंस जोन में आते हैं.
- इन सरकारी आवासों के आवंटन, रख-रखाव और किराये का काम डायरेक्टोरेट ऑफ एस्टेट देखता है. इसे 1922 में बनाया गया था, जो शहरी आवास मंत्रालय के अधीन आता है.
- दिल्ली में सरकारी आवास आवंटित करने के लिए अलॉटमेंट ऑफ गवर्नमेंट रेसिडेंस (जनरल पूल इन दिल्ली) 1963 है. इसमें दिल्ली का मतलब वो इलाका है जो केंद्र सरकार के अधीन आता है. इन बंगलों का बंटवारा सैलरी और सीनियॉरिटी के आधार पर होता है.
- लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों को आवास बांटने का काम दोनों सदनों की हाउसिंग कमेटी करती है. टाइप-4 से टाइप-8 के आवास सांसदों, केंद्रीय मंत्रियों और राज्य मंत्रियों को दिए जाते हैं.
- पहली बार चुने गए सांसदों को टाइप-4 के बंगले मिलते हैं. एक से ज्यादा बार चुने गए सांसद को टाइप-8 बंगला दिया जाता है.

कितने खास होते हैं ये बंगले?
- पहली बार सांसद बनने वालों को टाइप-5 और टाइप-6 के बंगले दिए जाते हैं. टाइप-7 के बंगले पांच बार के सांसद, राज्य मंत्रियों और दिल्ली हाईकोर्ट के जजों को मिलते हैं.
- टाइप-8 का बंगला सबसे उच्च श्रेणी का होता है. ये बंगले आमतौर पर कैबिनेट मंत्री, सुप्रीम कोर्ट के जज, पूर्व प्रधानमंत्री, पूर्व राष्ट्रपति, पूर्व उप राष्ट्रपति और वित्त आयोग के चेयरमैन को मिलते हैं.
- टाइप-8 के बगलों में पांच तो टाइप-7 में चार बेडरूम होते हैं. दोनों ही टाइप के बंगलों में सर्वेंट क्वार्टर, लॉन और गैरेज भी होता है.
- सभी सांसदों को सरकारी आवास में सालाना 4 हजार लीटर पानी और 50 हजार यूनिट तक की बिजली फ्री मिलती है. अगर किसी साल बिजली या पानी का इस्तेमाल ज्यादा हो जाता है तो उसे अगले साल एडजस्ट किया जाता है. इसके अलावा हर तीन महीने में पर्दों की धुलाई भी फ्री में होती है.
कब खाली कराए जाते हैं ये बंगले?
- सदस्यता खत्म होने के बाद सांसद को एक महीने के भीतर सरकारी बंगला खाली करना होता है.
- नेताओं से बंगले खाली कराने के मकसद से 2019 में मोदी सरकार एक कानून लेकर आई थी. इसके मुताबिक, समय पर बंगले खाली न करने पर 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने का प्रावधान है.
- इसके अलावा इसमें ये भी प्रावधान है कि नोटिस मिलने के तीन दिन बाद सरकार बंगला खाली करवाने की प्रक्रिया शुरू कर सकती है.
- 2014 में मोदी सरकार आने के बाद पूर्व मंत्रियों और पूर्व सांसदों से तेजी से सरकारी बंगले खाली कराए जाने लगे. एक रिपोर्ट के मुताबिक, मोदी सरकार के पहले ही साल 460 नेताओं से सरकारी आवास खाली कराए गए थे. 2020 में प्रियंका गांधी से भी सरकारी आवास खाली करवाया गया था.
नेहरू-राजीव को कौन सा बंगला मिला था?
- देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू त्रिमूर्ति भवन में रहते थे. 1964 में उनका निधन हो गया. इसके बाद कांग्रेस ने त्रिमूर्ति भवन को कांग्रेस मेमोरियल बनाने का फैसला लिया.
- नेहरू के बाद लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने. शास्त्री को 10, जनपथ बंगला मिला था. दो साल बाद जनवरी 1966 में ताशकंद में उनकी मौत हो गई.
- जनवरी 1990 में राजीव गांधी और सोनिया गांधी 10, जनपथ में रहने आए. मई 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद ये बंगला सोनिया गांधी को अलॉट कर दिया गया. तब से ही सोनिया गांधी 10, जनपथ में रह रहीं हैं.
- 1997 में प्रियंका गांधी वाड्रा को लुटियंस जोन में 35, लोधी एस्टेट बंगला दिया गया. 2020 में प्रियंका गांधी को ये बंगला खाली करना पड़ा.
- साल 2004 में लोकसभा सांसद बनने के बाद राहुल गांधी को 12, तुगलक लेन बंगला दिया गया. राहुल इस बंगले में 2005 में रहने आए.

क्या है लुटियंस दिल्ली?
- अंग्रेजों ने जब अपनी राजधानी बंगाल से दिल्ली शिफ्ट करने का प्लान किया तो उसे तैयार करने का जिम्मा ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडवर्ड लुटियंस को सौंपा गया.
- दिल्ली को राजधानी बनाने का काम 1912 में शुरू हुआ और 10 फरवरी 1931 को पूरा हुआ. किंग्सवे के पास लुटियंस दिल्ली बनाई गई जहां बड़े-बड़े अफसर रहा करते थे. उस समय ये 20 वर्ग किलोमीटर से भी कम दायरे में था.
- आजादी के बाद भी इस इलाके में भारत के उस समय बड़े नेता, अफसर और उद्योगपति रहने लगे. अभी लुटियंस बंगलो जोन 28 वर्ग किमी से ज्यादा दायरे में है.
- मौजूदा वक्त में लुटियंस जोन में एक हजार से ज्यादा बंगले हैं, जिनमें से 65 निजी हैं. बाकी बंगलों में बड़े-बड़े नेता, अफसर, जज और सेना के अधिकारी रहते हैं.